वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे: धूम्रपान न करने वालों में बीमारी का बढ़ना चिंता का विषय

बेंगलुरू, 1 अगस्त (आईएएनएस)। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती घटनाएं देश में चिंता का विषय बन गई हैं।
वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे: धूम्रपान न करने वालों में बीमारी का बढ़ना चिंता का विषय
वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे: धूम्रपान न करने वालों में बीमारी का बढ़ना चिंता का विषय बेंगलुरू, 1 अगस्त (आईएएनएस)। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर की बढ़ती घटनाएं देश में चिंता का विषय बन गई हैं।

फेफड़ों के कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 1 अगस्त को विश्व फेफड़े कैंसर दिवस (वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे) के रूप में मनाया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, फेफड़ों का कैंसर काफी फैल रहा है और कोलन, स्तन और यकृत कैंसर की तुलना में अधिक लोग इस घातक बीमारी के शिकार होते हैं।

फेफड़े का कैंसर 25 से अधिक देशों में पुरुषों में होने वाले कैंसर से संबंधित मौतों का प्रमुख कारण है और इसका खतरा बढ़ता ही जा रहा है।

आईएएनएस से बात करते हुए, मणिपाल अस्पताल सरजापुर के मेडिकल ऑन्कोलॉजी और हेमेटो-ऑन्कोलॉजी के सलाहकार डॉ. नितिन यशस ने बताया कि धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि हालांकि धूम्रपान इसका एक महत्वपूर्ण कारण बना हुआ है, मगर साथ ही इनडोर और बाहरी प्रदूषण और धूम्रपान करने वालों के संपर्क में आना भी महत्वपूर्ण कारक माना गया है।

ग्लोबोकैन 2020 के आंकड़ों का हवाला देते हुए, यशस ने कहा कि फेफड़ों का कैंसर देश में होने वाले शीर्ष पांच कैंसर में से एक है, जिसमें अनुमानित लगभग 75,000 नए मामले हैं। उन्होंने कहा कि फेफड़ों के कैंसर के अधिकांश रोगियों का निदान 50-70 वर्ष के आयु वर्ग में किया जाता है।

ग्लोबोकैन का मतलब ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी है, जो एक इंटरैक्टिव वेब-आधारित प्लेटफॉर्म है जो गोबल कैंसर के आंकड़े पेश करता है।

उन्होंने कहा, हालांकि, ट्यूमर के जीनोमिक सीक्वेंसिंग के आगमन के साथ, कई नए उपचार ²ष्टिकोण उपलब्ध हैं। विशेष रूप से धूम्रपान न करने वालों में फेफड़े के कैंसर कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन (जेनेटिक म्यूटेशन) द्वारा संचालित होते हैं, जिसके लिए हम मुंह से ली जाने वाली गोलियों (ओरल टैबलेट्स) के रूप में लक्षित चिकित्सा की पेशकश करते हैं जो लंबे समय तक जीवित रहने के लिए अच्छी प्रतिक्रियाएं दिखाती हैं।

डॉ. नितिन ने आगे कहा कि इम्यूनोथेरेपी, जिसमें कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय है, ने फेफड़ों के कैंसर के उपचार में क्रांति ला दी है और इसे अक्सर कीमोथेरेपी के साथ संयोजन में दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप रोगियों के एक सबसेट में वर्षों में लंबे समय तक जीवित रहता है और अब पहले के चरणों में भी इसकी प्रभावकारिता के लिए मूल्यांकन किया जा रहा है।

डॉ. संदीप नायक पी, निदेशक - सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग और रोबोटिक और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, फोर्टिस अस्पताल, बेंगलुरु के अनुसार, फेफड़ों का कैंसर भारत में कैंसर से संबंधित मौत का सबसे आम कारण है। इसका कारण यह है कि अधिकांश फेफड़ों के कैंसर का निदान बहुत देर से होता है।

उनका कहना है कि फेफड़ों का कैंसर प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करता है या ऐसे लक्षण उत्पन्न कर सकता है, जो एलर्जी, साधारण खांसी आदि होते हैं, जिससे रोगी भ्रमित होते हैं और उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि रोग इतना बड़ा है। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 70 प्रतिशत से अधिक फेफड़ों के कैंसर धूम्रपान करने वालों में होते हैं।

डॉ. संदीप नायक ने आगे कहा, हम जानते हैं कि धूम्रपान करने वाले फेफड़े के कैंसर के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं और हम यह भी जानते हैं कि अधिक धूम्रपान करने वालों के लिए साल में एक बार फेफड़ों का एक स्क्रीनिंग सीटी स्कैन फेफड़ों के कैंसर को रोकने के लिए जरूरी होता है, जो कि जल्दी ही फेफड़ों के कैंसर को पकड़ सकता है।

उन्होंने बताया कि यह हाल ही में एक शोध अध्ययन का परिणाम था। स्क्रीनिंग सीटी स्कैन एक कम खुराक वाला स्कैन (लो-डोज स्कैन) है और इससे बहुत जल्दी फेफड़ों के कैंसर का पता लगा सकता है और कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

डॉ. नायक ने कहा कि फेफड़ों के कैंसर के इलाज के दौरान सर्जरी मुख्य उपचार बनी हुई है। पिछले कुछ वर्षों में सर्जरी भी बहुत सूक्ष्म हो गई है। एक समय था, जब फेफड़ों के कैंसर को दूर करने के लिए पूरे फेफड़े को निकालना पड़ता था।

उन्होंने आगे कहा, रोबोटिक सर्जरी और फ्लोरोसेंस तकनीक के उद्भव के साथ आज हम फेफड़ों के केवल एक छोटे से हिस्से को हटाने में सक्षम हैं, जो ट्यूमर को हटाता है और बाकी स्वस्थ फेफड़ों को छोड़ देता है। यह हाल के दिनों में हुए व्यापक शोध के कारण संभव हो गया है।

--आईएएनएस

एकेके/एएनएम

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