जानलेवा है Airpollution कानून का सही पालन न करने से स्थिति हुई गंभीर

जानलेवा है Airpollution कानून का सही पालन न करने से स्थिति हुई गंभीर

National News Desk -Air Pollution Control Act का सही तरीके से पालन न कर पाने के कारण इंडिया में 16,70,000 मौतें हुई हैं जिसका कारण फैक्ट्री से निकलने वाला धुंआ और गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ है साथ ही दीपावली पर निकलने वाले झूले भी इस पर बड़ा कारण होते हैं और इसमें मौतों का आंकड़ा बढ़ता चला जाता है इसके लिए कई बार एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा लेकिन एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index) सुधरने का नाम नहीं ले रहा है अगर इधर कुछ दिनों की बात करें तो कोविड-19 के दौरान एयर इंडेक्स काफी अच्छा हुआ था लेकिन जैसे ही लोग बाहर निकलना शुरू हुए वैसे ही धुंआ निकलना शुरू हुआ और लोग बीमार पड़ने से हो गए पोलूशन कंट्रोल (Pollution Control)अब सरकार के लिए बहुत बड़ा मुश्किल होता जा रहा है और जो अभी ताजा आंकड़े निकले हैं उसमें भारत की स्थिति और भी गंभीर हो गई है।

घरेलू वायु प्रदूषण(Domestic Air Pollution) में तो कमी आयी है, मगर बाहर पीएम2.5 का चिंताजनक स्तर बरकरार है। अब देश में सेहत के लिये वायु प्रदूषण (Air Pollution In India )बना गया है सबसे बड़ा खतरा।

पिछले साल, वायु प्रदूषण के चलते हर मिनट, औसत, तीन लोगों ने अपनी जान गँवा दी। बात बच्चों की करें तो साल 2019 में हर पन्द्रह मिनट पर तीन नवजात अपने जन्म के पहले महीने ही इन ज़हरीली हवाओं की भेंट चढ़ गए।

इन हैरान करने वाले तथ्यों का ख़ुलासा स्‍टेट ऑफ ग्‍लोबल एयर 2020 (State Of Global Air 2020) नाम से आज जारी हुई एक वैश्विक रिपोर्ट से हुआ।

नवजात बच्‍चों पर वायु प्रदूषण के वैश्विक प्रभाव को लेकर किये गये अपनी तरह के पहले अध्‍ययन के मुताबिक वर्ष 2019 में भारत में जन्‍मे 116000 से ज्‍यादा नवजात बच्‍चे घर के अंदर और बाहर फैले वायु प्रदूषण की भेंट चढ़ गये। स्‍टेट ऑफ ग्‍लोबल एयर 2020 (एसओजीए 2020) शीर्षक वाले इस वैश्विक अध्‍ययन के मुताबिक इनमें से आधी से ज्‍यादा मौतों के लिये बाहरी वातावरण में फैले पीएम 2.5 के खतरनाक स्‍तर जिम्‍मेदार हैं।

लम्‍बे समय तक घरेलू और बाहरी प्रदूषण के सम्‍पर्क में रहने के परिणामस्‍वरूप वर्ष 2019 में(Side Effect Of Air Pollution) भारत में लकवा, दिल का दौरा, डायबिटीज, फेफड़े के कैंसर, फेफड़ों की गम्‍भीर बीमारी और नवजातों की बीमारियों से 16 लाख 70 हजार मौतें हुईं। मतलब हर दिन औसतन 4500 लोगों की जान गयी इसके चलते। वहीँ बात नवजात बच्‍चों की करें तो 1,16,000 मौतों का मतलब हुआ हर पन्द्रह मिनट पर लगभग तीन बच्चे जान से हाथ धो बैठे इस प्रदूषण के असर के चलते।

इन बच्चों में से ज्‍यादातर की मौत जन्‍म के वक्‍त वजन कम होने और समय से पहले पैदा होने के कारण हुई और इसके पीछे असल वजह थी वायु प्रदूषण। एसओजीए 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक कुल मिलाकर वायु प्रदूषण सभी तरह के स्‍वास्‍थ्‍य जोखिमों में से सबसे बड़ा खतरा बन गया है। हेल्‍थ इफेक्‍ट्स इंस्‍टीट्यूट (एचईआई) द्वारा www.stateofglobalair.org वेबसाइट पर आज प्रकाशित की गयी रिपोर्ट में भी यही बात कही गयी है।

इस रिपोर्ट में बाह्य वायु प्रदूषण के उच्च स्तर की मौजूदा चुनौती का खास तौर पर जिक्र किया गया है। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल समेत दक्षिण एशियाई देश वर्ष 2019 में पीएम2.5 के उच्चतम स्तर के मामले में शीर्ष 10 देशों में रहे। इन सभी देशों में वर्ष 2010 से 2019 के बीच आउटडोर पीएम 2.5 के स्तरों में बढ़ोत्‍तरी देखी गई है। खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन का इस्तेमाल हालांकि कुछ कम हुआ है। वर्ष 2010 से अब तक घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में 5 करोड़ से ज्यादा की कमी आई है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Prime Minister Ujjawala Yojna PMUY)तथा अन्य कार्यक्रमों की वजह से स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच बनाने में नाटकीय ढंग से विस्तार हुआ है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में इसका खासा असर देखा जा रहा है। अभी हाल ही में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम ने विभिन्न शहरों और देश के अनेक राज्यों में वायु प्रदूषण के स्रोतों के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं।

यह रिपोर्ट ऐसे वक्त आई है जब दुनिया में कोविड-19 महामारी(Covid19 Pandemic) का जोर है। इस वायरस के कारण दिल और फेफड़ों के रोगों से जूझ रहे लोगों में संक्रमण और मौत का खतरा और भी बढ़ गया है। भारत में इस वायरस से अब तक 110000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि वायु प्रदूषण और कोविड-19 के बीच संबंध की मुकम्मल जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन वायु प्रदूषण और दिल तथा फेफड़े के रोगों के बीच संबंध जगजाहिर है। इसकी वजह से दक्षिण एशियाई तथा पश्चिम एशिया के देशों में लोगों के सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आने से कोविड-19 के प्रभाव और भी ज्यादा नुकसानदेह होने की आशंका बढ़ रही है।

एचईआई के अध्यक्ष डैन ग्रीनबॉम ने कहा कि किसी भी नवजात शिशु की सेहत उस समाज के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है और इस रिपोर्ट से मिले ताजा सबूतों से यह पता चलता है कि खासकर दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के देशों में नवजात बच्चों पर खतरा बहुत बढ़ गया है। हालांकि घरों में खराब गुणवत्ता का ईंधन जलाए जाने के चलन में धीमी रफ्तार से, मगर निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। हालांकि ऐसे ईंधन से फैलने वाला वायु प्रदूषण अब भी नवजात बच्चों की मौत की प्रमुख वजह बना हुआ है।

नवजात बच्चों का पहला महीना उनकी जिंदगी का सबसे जोखिम भरा दौर होता है, मगर भारत में आईसीएमआर https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/1819569/ के हालिया अध्ययनों समेत दुनिया के विभिन्न देशों से प्राप्त वैज्ञानिक प्रमाण यह संकेत देते हैं कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बच्चे का वजन कम होता है और समय से पहले जन्म लेने की घटनाएं भी होती हैं। यह दोनों ही स्थितियां गंभीर गड़बड़ियों से जुड़ी हैं, जिनकी वजह से शैशवावस्था में ज्यादातर बच्चों की मौत होती है (वर्ष 2019 में 455000)। 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर' में इस साल प्रकाशित नए विश्लेषण में अनुमान लगाया गया है कि विभिन्न कारणों से होने वाली नवजात बच्चों की मौत की कुल घटनाओं में से करीब 21% के लिए वातावरणीय और घरेलू वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।


वायु प्रदूषण एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉक्टर कल्पना बालाकृष्णन ने कहा ''निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों के लिए गर्भावस्था से जुड़े प्रतिकूल परिणामों और नवजात बच्चों की सेहत पर वायु प्रदूषण के नुकसानदेह प्रभावों से निपटना बेहद जरूरी है। यह न सिर्फ कम वजन के बच्चों के पैदा होने बल्कि समय से पहले जन्म लेने और उनका ठीक से विकास ना होने के लिहाज से ही महत्वपूर्ण नहीं है। यह जोखिम वाले समूहों पर मंडराते खतरे को टालने के लिए रणनीतिक समाधान तैयार करने के लिहाज से भी जरूरी है।

द स्टेट ऑफ ग्लोबल ईयर 2020 की वार्षिक रिपोर्ट और उसकी संवादात्मक वेबसाइट को हेल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट ने डिजाइन करने के साथ-साथ जारी भी किया है। इस काम में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई2)और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया ने भी सहयोग किया है। इसमें बताए गए निष्कर्ष ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज (जीबीडी3) के बिल्कुल ताजा अध्ययन पर आधारित हैं। इस अध्ययन को अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लांसेट ने 15 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित किया है। एचईआई, जीबीडी के वायु प्रदूषण से जुड़े हिस्से का नेतृत्व करता है। एचईआई की रिपोर्ट और वेबसाइट अपनी तरह के पहले दस्तावेज और वेबसाइट हैं, जहां वायु प्रदूषण के संपर्क और उनके कारण उत्पन्न बीमारियों के बोझ के अनुमानों को जीबीडी वायु प्रदूषण विश्लेषण में शामिल करके इसे सभी के लिए पूरी तरह उपलब्ध कराया गया है।

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