India–Israel relations : भारत इजरायल का समर्थन कर रहा है या ईरान का?
अब हमारे इंडिया के साथ मसला ये है कि हमारी दोस्ती ईरान से भी बहुत अच्छी है... और इज़रायल से तो है ही गहरी, ये आप बहुत अच्छी तरह जानते हैं..बात करें अगर ईरान की तो ये एक ऐसा देश रहा है, जिससे भारत का रिश्ता हजारों साल पुराना रहा है... भारत के मौजूदा समय के राष्ट्र के तौर पर शक्ल लेने से पहले दोनों देश अपनी सीमाएं साझा करते रहे हैं... भारत और ईरान 1947 तक सीमा साझा करते रहे हैं. दोनों देशों की भाषा, संस्कृति और कई सामान्य विशेषताएं भी साझा हैं... भारत ने आजादी के बाद 15 मार्च 1950 को ईरान से Diplomatic relations स्थापित किए... 1956 में ईरान के शाह ने भारत और 1959 में भारतीय पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ईरान का दौरा किया था... दोनों देशों ने कई अहम समझौते किए... दक्षिण एशिया और फारस की खाड़ी दोनों देशों के मजबूत Commercial, energy और Cultural areas हैं... इसके अलावा ईरानी कच्चे तेल का भारत बड़ा खरीदार रहा है... 2009-10 में भारत ईरानी कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा बाजार था... भारत की ओर से ईरान को निर्यात में पेट्रोलियम उत्पाद, चावल, मशीनरी और उपकरण, विनिर्माण शामिल रहा है... भारत और ईरान International North-South Corridor Project के भी सदस्य हैं... आपको बता दें कि भारत में कई हजार ईरानी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं... और तो और भारत, ईरानियों के लिए पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से भी एक रहा है...
चलिए अब बात करते हैं इज़रायल के साथ भारत के ताल्लुकातों पर... तो आपको मालूम होना चाहिए कि इजरायल, भारत की हमेशा मदद करता रहा है... आपको एक एग्जांपल देता हूं... 3 मई 1999 को कारगिल के द्रास सेक्टर में पाकिस्तान के सैनिकों की ओर से घुसपैठ की गई... इसके जवाब में ऑपरेशन विजय की शुरुआत की गई... हालांकि तब भारतीय सेना के पास ऐसे एडवांस मिलिट्री और टेक्निकल उपकरण नहीं थे, जो पाकिस्तानी सैनिकों के बंकर को लोकेट कर तबाह कर सके... इसलिए भारत ने दुनिया से मदद मांगी... लेकिन तब परमाणु परीक्षण के चलते प्रतिबंध लगे थे, जिससे कोई मदद नहीं मिली... ऐसे मुश्किल वक्त में सिर्फ इजरायल ही इकलौता देश था जिसने भारत की मदद की... अमेरिका का सहयोगी होने के बावजूद इजरायल ने भारत को मोर्टार और हथियार दिए... इसके अलावा भारतीय वायु सेना को लेजर गाइडेड मिसाइल दिए... Nicolas Blarel की किताब 'The Evolution of India's Israel Policy' के मुताबिक, इजरायल पर अमेरिका और इंटरनेशनल कम्युनिटी की ओर से दबाव था कि वो defense equipments की डिलीवरी में देरी करें... लेकिन इज़रायल ने जरूरी हथियारों को समय पर पहुंचाया... इतना ही नहीं, इजरायल ने अपनी मिलिट्री सैटेलाइट के जरिए पाकिस्तानी सेना की स्ट्रैटेजिक लोकेशन की तस्वीरें भी दीं..
तो इन तमाम बातों से ऐसा मालूम होता है कि ईरान जो है वो भारत का बेहद खास दोस्त है और इज़रायल भारत का संकटमोचक... भारत ना तो ईरान से अपनी दोस्ती तोड़ सकता है और न ही इज़रायल के एहसानों को भूल सकता है... और अब जब दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं, तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहां ये निकल कर आता है कि भारत का रुख, इस युद्ध पर क्या है? भारत के राजनेता इस युद्ध को लेकर क्या सोच रखते हैं और किसका समर्थन करते हैं? ये तो हम जानेंगे आगे, लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि ईरान और इज़रायल की लड़ाई से भारत पर क्या असर पड़ने वाला है...
आपको बता दें कि भारत मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शेयर बाजारों में से एक है और ये लगातार उभरते बाजार के रूप में पहचाना जा रहा है... अगर ईरान और इजरायल के बीच का वॉर, और बढ़ता है तो भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है... इसमें से एक है शेयर बाजार के लिए चुनौतियां... आने वाले समय में क्या होगा कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है... ऐसे में, विदेशी इंवेस्टर भारत के एसेट्स से अपना कैपिटल निकालकर ज्यादा सुरक्षित जगहों पर लगा सकते हैं जिससे भारत का मार्केट प्रभावित होगा...
इसके अलावा ईरान इजरायल में युद्ध बढ़ने से समुद्री मार्ग पर भी असर पड़ेगा... लाल सागर में बढ़ता तनाव भारत की अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है... युद्ध के कारण समुद्र का व्यापारी मार्ग प्रभावित होगा जिस कारण इंपोर्ट-एक्सपोर्ट मुश्किल हो जाएगा... साथ ही, भारत-मिडिल ईस्ट और यूरोप के बीचन बनने वाले इकनॉमिक कॉरिडोर प्रोजक्ट पर भी असर पड़ सकता है...
इस साल सोने की कीमतें दूसरे एसेट्स से बेहतर परफॉर्म करते हुए आसमान छू रही हैं... केंद्रीय बैंकों ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम किया है और इंस्टिट्यूशनल इंवेस्टर्स अपना पोर्टफोलियो बढ़ा रहे हैं... इंवेस्टर्स का सोने में निवेश पर खास ध्यान है... इसके चलते, सोना रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है... लेकिन अब युद्ध के माहौल में सोने में निवेश और बढ़ सकता है और इसकी कीमतों में बढ़ोतरी भारत के बड़े त्यौहारों को खराब कर सकती है...
एक और मुश्किल की बात ये है कि भारत अपना तेल ईरान से Import करता है... ईरान और इजरायल के संघर्ष का असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ना ज़ाहिर है... जबसे ईरान ने इजरायल पर मिसाइल अटैक किया है तब से कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे हैं... अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं तो इसका सीधा असर भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों पर भी पड़ेगा...
तो कुल मिलाकर सीधा मतलब ये निकलता है कि अगर ईरान और इजरायल के बीच सिचुएशन और ज्यादा गंभीर होती है तो भारत को आर्थिक तौर पर एक तगड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है... जो कि भारत कभी नहीं चाहेगा...
खैर, चलिए अब बात कर लेते हैं कि भारत के सियासतदानों का झुकाव किस तरफ है, ईरान की तरफ या इजरायल की तरफ? शुरुआती तौर पर देखा जाए तो भारत के नेता शुरुआत में इज़रायल के विरोध में थे... दरअसल, 14 मई 1948 को जब इजरायल को आजादी मिली, तो संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल और फिलिस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पेश हुआ तो भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया था... तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू फ़िलिस्तीन के बंटवारे के ख़िलाफ़ थे... इसी आधार पर भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के गठन के ख़िलाफ़ वोट किया था... हालांकि फिर भारत ने 17 सितंबर, 1950 को आधिकारिक रूप से इजरायल को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी... हालांकि ऐसा करने के बाद भी भारत और इजरायल के बीच Diplomatic relations लंबे समय तक नहीं रहे... लेकिन फिर भारत ने 1992 में इजरायल के साथ Diplomatic relations बहाल किया... ये तब हुआ जब भारत में पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने... बस तभी से भारत और इजरायल के ताल्लुकात इतने मजबूत हो गए कि वो आज तक सलामत हैं...
लेकिन अभी की situation देखें तो इज़राइल और ईरान के बीच वॉर को लेकर भारत में सत्ता पक्ष के लोगों और विपक्षी लोगों की अपनी अलग-अलग राय हैं... मतलब ये समझ लीजिए कि सत्ता पक्ष के लोग डायरेक्टली ना सही लेकिन इनडायरेक्टली इज़रायल को ही सपोर्ट कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टियों के नेता भी डायरेक्टली ना सही लेकिन इनडायरेक्टली ईरान को सपोर्ट कर रहे हैं... दरअसल, भारत में ईरान-इज़रायल वॉर को लेकर एक अलग ही आंधी चली हुई है... यहां के लोग इस वॉर को भी हिंदू-मुस्लिम के एंगल से देख रहे हैं... जो कट्टर हिंदुत्व विचारधारा का समर्थन करते हैं उनका झुकाव इज़रायल की तरफ है और जो भारत में कट्टरपंथी मुस्लिम जमातें हैं और ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले कुछ विपक्षी पार्टियों के नेताओं का झुकाव ईरान की तरफ है... उदाहरण के तौर पर बताएं तो असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े नेता हेमंत बिस्वा शर्मा ने खुलेआम बयान दिया है कि भगवान इज़राइल को इतनी शक्ति दे कि वो सभी नसरुल्लाह को खत्म कर दें... हम शांतिप्रिय लोगों के साथ हैं, उनके साथ नहीं जो आतंकवाद को अपना धर्म मानते हैं...
लेकिन यहां आपको एक इंटरेस्टिंग बात बताना बहुत ज़रूरी है... हिंदुत्व की लौ जलाने वाले अटल बिहारी वाजपेई इसराइल नहीं बल्कि फिलिस्तीन के समर्थक थे... 1977 के एक भाषण में उन्होंने खुलकर फिलिस्तीन के समर्थन में बयान दिया था... उन्होंने कहा था कि अरबों की जिस जमीन पर इजराइल कब्जा करके बैठा है, वो जमीन उसको खाली करना होगी... अगर आपको यकीन नहीं आता तो चलिए आपको उनका वो बयान सुना ही देते हैं...
अटल बिहारी वाजपेई जी का बयान लगाएं
तो सुना आपने, बीजेपी को केंद्र तक पहुंचने वाले अटल बिहारी वाजपेई की इज़रायल को लेकर पहले क्या राय थी, ये आपको मालूम चल गया है... लेकिन 1999 में जब भारत का पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध चला तो उसमें जब हमें किसी बाहरी ताकतों की ज़रूरत पड़ी तो ना तो अमेरिका हमारे साथ खड़ा था और ना ही सोवियत संघ, उस युद्ध में फिर जब अटल बिहारी वाजपेई ने इज़रायल से मदद मांगी तो इज़राइल ने सब कुछ भुलाकर पाकिस्तान को हराने में भारत की खुलकर मदद की... बस फिर क्या था, भारत और इज़रायल में ऐसी गहरी दोस्ती हुई, जो आज तक कायम है.