कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए मिलेगा प्रोत्साहन

नई दिल्ली, 21 नवंबर (आईएएनएस)। आईएएनएस-सी वोटर सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों और उनके नेताओं को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए मिलेगा प्रोत्साहन
कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए मिलेगा प्रोत्साहन नई दिल्ली, 21 नवंबर (आईएएनएस)। आईएएनएस-सी वोटर सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि कानूनों को निरस्त करने से ट्रेड यूनियनों और उनके नेताओं को श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।

सर्वेक्षण के अनुसार, इस पर लगभग 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अपनी सहमति व्यक्त की है। इस बारे में एनडीए और विपक्षी समर्थकों की राय में ज्यादा अंतर नहीं है।

दिलचस्प बात यह है कि 25 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कोई निश्चित राय व्यक्त नहीं की, जिसका अर्थ है कि वे श्रम सुधारों को लेकर अनिश्चित हैं।

पिछले साल से मुखर विरोध कर रहे किसानों का एक वर्ग और मोदी शासन के कट्टर आलोचक तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद अपनी जीत का जश्न मनाने में व्यस्त हैं।

सरकार द्वारा आक्रामक तरीके से अपनाए जा रहे सुधार के उपाय केवल कृषि कानून ही तक सीमित नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई अन्य सुधारों के अलावा दो और सुधार उपायों पर बहुत अधिक जोर दिया है। पहला प्राचीन श्रम कानूनों में बदलाव से संबंधित है, जो केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं, जबकि अधिकांश श्रमिकों (विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत श्रमिकों) को किसी भी लाभ से वंचित कर रहे हैं। 2020 से वे श्रम संहिताओं में परिवर्तन लागू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

कुछ ऐसा ही तब सामने आया जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या सरकार के विरोधी महत्वाकांक्षी निजीकरण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे, तो लगभग 48 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने एनडीए और विपक्षी समर्थकों के बीच बहुत अंतर नहीं होने से सहमति व्यक्त की। लगभग 25 प्रतिशत लोग अनिश्चितता को दर्शाते हुए एक राय नहीं दे सके।

आईएएनएस-सी वोटर सर्वेक्षण ने उत्तरदाताओं से पूछा कि क्या भारतीय और विदेशी निवेशकों को यह संदेश मिलेगा कि भारत में सुधार नहीं हो रहे हैं? इसपर लगभग समान 36 प्रतिशत सहमत और बाकी लोग असहमत दिखे, लेकिन फिर से 29 प्रतिशत एक राय व्यक्त नहीं कर सके। इसका स्पष्ट अर्थ है कि आम भारतीय अब सुधार के एजेंडे को मोदी शासन द्वारा जोश के साथ आगे बढ़ाने के बारे में निश्चित नहीं है।

इसका मतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य की संभावनाओं के लिए यह एक बुरी यह खबर हो सकती है।

--आईएएनएस

एमएसबी/आरजेएस

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