बिहार की सियासत में बदलाव, राजनीतिक दलों के लिए सवर्ण बने महत्वपूर्ण !

पटना, 9 मई (आईएएनएस)। बिहार की राजनीति में इन दिनों बड़ा बदलाव दिख रहा है, जब सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सवर्णों को रिझाने में जुट गए हैं। सबसे बड़ा बदलाव मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की रणनीति में दिखाई दे रहा है, जो आज सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की बात कर रही है।
बिहार की सियासत में बदलाव, राजनीतिक दलों के लिए सवर्ण बने महत्वपूर्ण !
बिहार की सियासत में बदलाव, राजनीतिक दलों के लिए सवर्ण बने महत्वपूर्ण ! पटना, 9 मई (आईएएनएस)। बिहार की राजनीति में इन दिनों बड़ा बदलाव दिख रहा है, जब सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सवर्णों को रिझाने में जुट गए हैं। सबसे बड़ा बदलाव मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की रणनीति में दिखाई दे रहा है, जो आज सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की बात कर रही है।

वैसे, एक समय बिहार में ऐसा भी था जहां पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के सहारे सियासत चमकाई जाती रही थी। इसके बाद अब बिहार की राजनीति एक बार फिर से पुरानी पुरानी धूरी पर लौटती नजर आ रही है, जब सवर्णों के जरिए सत्ता तक पहुंचा जाता था।

राजद के शासनकाल में कहा जाता है कि राजद के प्रमुख लालू प्रसाद सांकेतिक भाषा में सवर्णों के लिए भूरा बाल साफ करो की बात कही थी, तब से उनकी पहचान सवर्ण विरोधी नेता की हो गई है। भूरा बाल का तात्पर्य यहां भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ से था।

माना जाता है कि सवर्ण मतदाताओं को साधना अब राजनीतिक दलों की मजबूरी हो गई है। कहा जाता है कि राजद के पारंपरिक वोट बैंक एम वाई (मुस्लिम, यादव) समीकरण में कई दलों ने सेंध लगा ली है। ऐसे में राजद की रणनीति सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करने की है।

कहा यह भी जा रहा है कि बिहार में जिस तरह से भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभरी है तथा जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी अपनी-अपनी जातियों में प्रभुत्व बढ़ाते जा रहे, उससे अन्य दलों में बेचैनी बढ़ी है।

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में अगड़ी जातियों की जनसंख्या 20 फीसदी के करीब है। फिलहाल, सवर्ण को भाजपा अपना वोटबैंक मानती है।

इधर, बोचहा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। कहा जाता है कि सवर्ण मतदाता यहां भाजपा से नाराज थे। इस बीच भाजपा ने वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव को भव्य तरीके से मनाकर अगड़ी जातियों को खुश करने की कोशिश की है।

इस बीच, राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी परशुराम जयंती समारोह में सम्मिलित होकर अगड़ी जातियों में अपने पैठ बनाने की शुरूआत कर दी है।

भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी कहते भी हैं कि ब्राह्मण-भूमिहार समाज को भाजपा ने हमेशा यथोचित सम्मान दिया है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भूमिहार समाज के 15 और ब्राह्मण समाज के 11( कुल 26) लोगों को पार्टी ने टिकट दिये, जबकि राजद ने इन दोनों जातियों का अपमान करते हुए केवल एक टिकट दिया था।

भाजपा ने ही भूमिहार समाज को पहली बार केंद्रीय मंत्री का पद दिया। बिहार में भाजपा कोटे से आज दो कैबिनेट मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष इसी समुदाय से हैं।

उन्होंने कहा कि लालू-राबड़ी राज में भूमिहार-ब्राह्मण समाज का जितना अपमान-उत्पीड़न हुआ, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उस दौर में जाति पता कर इनका नरसंहार हुआ और इन्हें पलायन के लिए मजबूर किया गया था। ऊंची जातियों को 10 फीसद आरक्षण देने का विरोध करने वाली लालू प्रसाद की पार्टी आज किस मुंह से भूमिहार-ब्राह्मण समाज की हितैषी बन रही है?

इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि राजद प्रारंभ से ही सभी वर्गों को साथ लेकर चलने पर विश्वास करती है। उन्होंने कहा तेजस्वी यादव कई बार बोल चुके हैं कि राजद ए टू जेड की पार्टी है।

--आईएएनएस

एमएनपी/एएनएम

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