मसूद ने अपने पुराने साक्षात्कार में अफगानिस्तान की अशांति में पाकिस्तान को ही माना था जिम्मेदार

नई दिल्ली, 9 सितम्बर (आईएएनएस)। यह कमोबेश वही स्थिति है, जिसके बारे में अहमद शाह मसूद ने मुझे दो दशक से भी अधिक समय पहले बताया था, जब मैंने 1997 में पंजशीर में उनका साक्षात्कार लिया था। अब केवल एक ही बदलाव है, अहमद शाह मसूद की जगह उसके बेटे अहमद मसूद ने ले ली है, जिसकी पाकिस्तान द्वारा समर्थित तालिबान और अल-कायदा द्वारा 9 सितंबर, 2001 को हत्या कर दी गई थी।
मसूद ने अपने पुराने साक्षात्कार में अफगानिस्तान की अशांति में पाकिस्तान को ही माना था जिम्मेदार
मसूद ने अपने पुराने साक्षात्कार में अफगानिस्तान की अशांति में पाकिस्तान को ही माना था जिम्मेदार नई दिल्ली, 9 सितम्बर (आईएएनएस)। यह कमोबेश वही स्थिति है, जिसके बारे में अहमद शाह मसूद ने मुझे दो दशक से भी अधिक समय पहले बताया था, जब मैंने 1997 में पंजशीर में उनका साक्षात्कार लिया था। अब केवल एक ही बदलाव है, अहमद शाह मसूद की जगह उसके बेटे अहमद मसूद ने ले ली है, जिसकी पाकिस्तान द्वारा समर्थित तालिबान और अल-कायदा द्वारा 9 सितंबर, 2001 को हत्या कर दी गई थी।

आज, एक बार फिर तालिबान पाकिस्तान के समर्थन से वापस आ गया है और अहमद मसूद अपने पिता की पंजशीर की विरासत को बचाने के लिए जंग लड़ रहा है।

1997 में वापस चलें तो हम पाएंगे कि तालिबान और अहमद शाह मसूद के नॉर्दन अलायंस के बीच तब भी संघर्ष अपनी ऊंचाई पर था। मैं और मेरी टीम एक विशिष्ट असाइनमेंट के साथ युद्धग्रस्त देश की हमारी दूसरी यात्रा पर थे- नॉर्दन अलायंस के प्रमुख अहमद शाह मसूद का साक्षात्कार करने के लिए, जिसने घोषणा की थी कि 1996 में काबुल पर तालिबान के अवैध कब्जे के बाद भी वह देश का कार्यवाहक रक्षा मंत्री है।

भारत मसूद को मदद करने के लिए सहमत हो गया था, जिसे पंजशीर का शेर कहा जाता था। उसे सोवियत सेना द्वारा पंजशीर घाटी पर कब्जा करने के नौ प्रयासों को विफल करने के उसके रिकॉर्ड के कारण यह उपाधि दी गई थी। जब 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया, तो मसूद ताजिकिस्तान भाग गया और अफगानिस्तान को वापस जीतने के लिए गठबंधन बनाना शुरू कर दिया। वह अफगानिस्तान के उद्धार के लिए या जिसे दुनिया नॉर्दन अलायंस के रूप में जानती है, संयुक्त इस्लामिक फ्रंट का नेता बन गया। नई दिल्ली ने कमांडर को गुप्त सहायता प्रदान करना शुरू किया, क्योंकि अहमद शाह ने उससे नॉर्दन अलायंस के साथ संबंध स्थापित करने की अपील की थी।

इसी पृष्ठभूमि में हमने 1997 की शुरूआत में ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे की यात्रा की और वहां से हमें तजाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर भारत द्वारा अनुरक्षित फरखोर हवाई अड्डे पर ले जाया गया। अगले हेलिकॉप्टर की सवारी अफगानिस्तान में तखर प्रांत के ख्वाजा बहाउद्दीन गांव तक सीमा पार थी, जिसे पंजशीर घाटी के रास्ते पर पहला पड़ाव कहा जाता है।

नॉर्दर्न अलायंस के गेस्ट हाउस में एक रात रुकने के बाद, अगली सुबह हम गंतव्य के लिए रवाना हुए। पहाड़ी सड़कों के माध्यम से 8 घंटे की लंबी ड्राइव और जंग लगे सोवियत टैंक, बख्तरबंद वाहन, खत्म हो चुकी मशीनों के कब्रिस्तान, विशाल तोपों, खामोश और जंग खा चुके हथियारों के साथ अविस्मरणीय बनी हुई थी। आखिरकार हम पंजशीर प्रांत की राजधानी बाजारक पहुंचे, जहां हमारी मुलाकात मसूद से हुई।

वह चे ग्वेरा के तरह एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व लग रहा था - खासतौर पर अपने ट्रेडमार्क डबल लेयर्ड ऊनी कैप के साथ। उसने हमें उस समय के बारे में भी बताया जब काबुल के एक फ्रांसीसी स्कूल से स्नातक होने के बाद, वो युवावस्था के समय पर एक वास्तुकार बनना चाहता था। तब उसने वास्तुकला का अध्ययन करने के लिए एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में प्रवेश लिया था। इसके बजाय, उसे अपना आधा जीवन गुरिल्ला युद्ध में महारत हासिल करके अफगानिस्तान की मुक्ति के वास्तुकार के रूप में बिताना था।

मसूद ने हमें बताया कि तालिबान का अफगानिस्तान के 90 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करने का दावा झूठ है।

उसने कहा, अगर उन्होंने अफगानिस्तान के 90 प्रतिशत क्षेत्र पर कब्जा कर लिया होता, तो ऐसी स्थिति नहीं होती। दावा पूरी तरह से झूठा है और इसका कोई मतलब नहीं है। वास्तव में, अफगानिस्तान का 30 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र, जो मायने रखता है और भारी आबादी वाला है, हमारे नियंत्रण में है।

उसने कहा, हमारा मुख्य लक्ष्य अफगानिस्तान में शांति बहाल करना और पाकिस्तानियों को हराना है। हम मानते हैं कि अफगानिस्तान की समस्या का कोई सैन्य समाधान नहीं है। लेकिन एक सैन्य संतुलन हासिल करना आवश्यक है।

मसूद ने कहा कि इस्लाम के बारे में उसकी धारणा तालिबान के उपदेश से अलग है।

मसूद ने कहा कि उसका इस्लाम उतना ही नरम है, जहां भेदभाव या लिंग भेद का कोई स्थान नहीं है।

उसने हमें बताया कि उसने सिर्फ 20 आदमियों, 10 कलाश्निकोव (राइफल), एक मशीन-गन और दो रॉकेट लॉन्चरों के साथ युद्ध छेड़ना शुरू किया था।

मसूद ने कहा, मैंने पंजशीर में हमारे साथ बातचीत के लिए आए तालिबान प्रतिनिधिमंडलों से कहा कि आप पश्तून जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं - ठीक है, हम सहमत हैं। आप कहते हैं कि अधिकांश अफगानिस्तान हमारे नियंत्रण में है - हम सहमत हैं। आप कहते हैं कि लोग हमें स्वीकार करते हैं - हम मानते हैं। ठीक है, अगर इतना आत्मविश्वास है - तो चलो चुनाव की ओर चलते हैं, आपको किस बात की चिंता है? इतने युद्ध और रक्तपात के स्थान पर चुनाव की ओर बढ़ें और वैध रूप से सत्ता हासिल करें।

लेकिन मसूद के मन में इतना तो स्पष्ट था कि जब तक पाकिस्तान तालिबान के पीछे है, तब तक उसके देश में शांति नहीं होगी।

एक घंटे के साक्षात्कार में, मसूद ने स्वीकार किया कि अफगानों की आंतरिक समस्याओं में उनकी हिस्सेदारी है और इस संकट का वह हिस्सा आंतरिक कारणों से उपजा है।

उसने कहा, मैं दोहराता हूं कि जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान पर आवश्यक दबाव नहीं डालता और जब तक वह अफगान मामलों में पाकिस्तानी हस्तक्षेप नहीं रोकता, तब तक यह निश्चित है कि इस देश में युद्ध की ज्वाला कभी नहीं बुझेगी।

पाकिस्तान के प्रति उसकी नफरत जगजाहिर थी।

उसने कहा, पाकिस्तान दिखाना चाहता है कि अफगान असंस्कृत और असभ्य हैं और उनके पास अतीत में कुछ भी नहीं था और वे हमेशा एक आदिवासी जीवन जीते आए हैं और आदिवासी आदतों के आदी हो गए हैं और यही हमेशा रहेगा। इस प्रकार यह अफगानों की पहचान को नष्ट करने की उनकी रणनीति है।

भारत की बात करें तो मसूद ने मदद की काफी सराहना की।

मसूद ने कहा, हमें समर्थन देने के लिए हम भारत को धन्यवाद देते हैं। हमने एक अच्छा रिश्ता बनाया है और हम इसे एक सकारात्मक कदम मानते हैं। भारत हमें समझता है। दिल्ली में हमारा एक दूतावास है। मैं आपका, आपके भारत के लोगों का आभारी हूं। भारत और अफगानिस्तान के संबंध पाकिस्तान के जन्म से भी पुराने हैं। हम दोनों के कुछ समान दुश्मन हैं।

हम वहां दो दिन रुके, उनके दुभाषिए के साथ उनके साक्षात्कार का अनुवाद कराया और उनके कमांडरों के साथ घाटी में घूमते रहे। मसूद से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। पिछली बार मैं उससे तब मिला था, जब वह 1990 में रूस समर्थित शासन के खिलाफ युद्ध छेड़ रहा था।

बैक टू प्रेजेंट : अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद उसी ताकत के खिलाफ लड़ रहा है, लेकिन इस बार उसके पास वैसा बाहरी समर्थन नहीं है, जैसा उसके पिता को मिला था। कुछ नहीं बदला है, वही पाकिस्तान और वही तालिबान- क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

(यह आलेख इंडिया नैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है)

--इंडिया नैरेटिव

एकेके/एएनएम

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