लोकसभा चुनाव से पहले बसपा को जोड़नी होंगी कमजोर कड़ियां

लखनऊ, 2 मई (आईएएनएस)। यूपी विधानसभा चुनाव के बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बसपा के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। जिनसे पार पाना काफी मुश्किल दिखाई दे रहा है। बसपा को लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले अपनी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने की जरूरत है।
लोकसभा चुनाव से पहले बसपा को जोड़नी होंगी कमजोर कड़ियां
लोकसभा चुनाव से पहले बसपा को जोड़नी होंगी कमजोर कड़ियां लखनऊ, 2 मई (आईएएनएस)। यूपी विधानसभा चुनाव के बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बसपा के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। जिनसे पार पाना काफी मुश्किल दिखाई दे रहा है। बसपा को लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले अपनी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने की जरूरत है।

अभी हाल में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ है। उसकी सीटों तो कम आयी ही साथ में कोर वोटर भी दरकता दिखाई दे रहा है जो आगे चलकर पार्टी के लिए चुनौती खड़ा कर सकता है। मायावती ने मुस्लिम, ब्राम्हण, और दलितों की सोशल इंजीनियरिंग का फारमूला विधानसभा चुनाव में अपनाया था जो नकार दिया गया। मुस्लिम वोट का खिसकना उनकी परेशानी को बढ़ा रहा है। क्योंकि मुस्लिम का पूरा वोट बैंक सपा के खाते में शिफ्ट हो गया। इससे भाजपा के मुकाबले में सपा का खड़ा होना साफ संकेत है। 2007 से बसपा का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। 2014 के लोकसभा में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। 2017 में बसपा का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है।

राजनीतिक पंडितों की विधानसभा की सभी 403 सीटों पर प्रदेश में चुनाव लड़ने वाली बसपा ने सिर्फ एक सीट जीती है। कई दर्जन सीटों पर तो पार्टी के उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए। पार्टी की ओर से इस बाबत सफाई भी पेश की गई और इशारा किया गया कि न तो उनकी सोशल इंजीनियरिंग चल पाई और न ही मुस्लिमों ने बसपा को तवज्जो दी। मुस्लिमों ने सपा का दामन थामा तो अन्य जातियों ने भी बसपा से मुंह मोड़ लिया। विधानसभा चुनाव के समय ज्यादातार बसपा के नेता सपा में चले गये। क्योंकि वह मान के चल रहे हैं भाजपा का विकल्प सपा बन सकती है बसपा नहीं। इसके अलावा जो भाजपा से नाराज वोट था वह भी सपा के पाले में ही गिरा। ऐसे में मायावती को फिर से नई जगह बनानी पड़ रही है। विधानसभा के परिणाम से संगठन, वजूद और भविष्य पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

बसपा के एक नेता ने बताया कि इस बार के चुनाव में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। चुनाव में न दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग का पुराना फामूर्ला चला और न ही दलित-मुस्लिम गठजोड़ कामयाब होता दिखा। जबकि बसपा ने मुस्लिम वोट पाने के लिए तकरीबन 88 टिकट इसी वर्ग को दिए, फिर भी कामयाब नहीं हो सकी। मुस्लिमों ने सपा को एकतरफा वोट दिया। इस बात को खुद बसपा प्रमुख ने भी स्वीकार किया है। इस बार बसपा की न केवल सीटें और घट गईं बल्कि जनाधार भी तेजी से घटा है। अबकी चुनाव में बसपा के दलित वोट बैंक में भी गहरी सेंध लगी है। इसका ज्यादातर प्रतिशत भाजपा को गया है। कुछ हिस्सा सपा को मिलने से नकार नहीं सकते हंै। चुनाव परिणाम साफ दिखाता है कि अबकी मुसलमान तो पार्टी के साथ आए नहीं, उसकी दलित वोट भी छिटक गए। पिछड़ों में से भी ज्यादातर ने पार्टी से किनारा कर लिया। ऐसे में पार्टी को नई रणनीति बनानी पड़ेगी।

दशकों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में बसपा के सामने जाटव वोट को संभालने की बड़ी चुनौती है। जाटव वोट को यह भी बताने की जरूरत है हम मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। वरना इसके खिसकने का डर है। अगर आप इस वोट बैंक को संभाल लेते हैं तो मुस्लिम और अन्य जातियों पर ध्यान देना होगा। आपको भाजपा के सामने विकल्प बनना पड़ेगा। मायावती के बाद की लीडरशिप खड़ी करनी होगी। आकाश आनंद यूपी में कम राजस्थान, पंजाब और आंध्र में ज्यादा सक्रिय हैं। चुनौती आपको यूपी के अपने घर से मिलनी है। इसे देखना बहुत जरूरी है।

--आईएएनएस

विकेटी/एसकेपी

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