शराब पर राजस्व : देश के कई राज्यों का मुख्य स्त्रोत (आईएएनएस विश्लेषण)

चेन्नई, 31 जुलाई (आईएएनएस)। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाएं मुख्य रूप से शराब कर राजस्व से वित्त पोषित हैं।
शराब पर राजस्व : देश के कई राज्यों का मुख्य स्त्रोत (आईएएनएस विश्लेषण)
शराब पर राजस्व : देश के कई राज्यों का मुख्य स्त्रोत (आईएएनएस विश्लेषण) चेन्नई, 31 जुलाई (आईएएनएस)। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाएं मुख्य रूप से शराब कर राजस्व से वित्त पोषित हैं।

हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि शराब से कर राजस्व देश के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और अन्य के लिए एक प्रमुख स्रोत है।

मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक डॉ केआर शनमुगम ने आईएएनएस को बताया कि भारतीय राज्यों को शराब की बिक्री से 2.70 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमाई होती है। यह एक प्रमुख स्रोत है और इस तरह का दूसरा स्रोत नहीं मिल सकता।

उनके मुताबिक, राज्य शराब पर उत्पाद शुल्क, वैट और अन्य टैक्स वसूलते हैं।

तमिलनाडु मुफ्तखोरी के लिए जाना जाता है और सरकार शराब की खुदरा बिक्री भी करती है।

राज्य ने हाल ही में शराब की कीमतों में बढ़ोतरी की है। शनमुगम ने कहा कि यह राजस्व के रूप में लगभग 37,000 करोड़ रुपये कमाता है, जो कि इसके कुल राजस्व का लगभग 21 प्रतिशत है।

शनमुगम ने कहा, इसके अलावा राज्य का कर्ज वित्त वर्ष 2013 के अंत में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) 26 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है।

उनके अनुसार, एक स्थायी ऋण, एसजीडीपी अनुपात 20 प्रतिशत होगा।

भारतीय राज्यों को अपने कर्ज को नियंत्रित करने और अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए अपने फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाना चाहिए।

शनमुगम ने कहा कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और अल्पावधि में इसे सरकार से राजस्व मिल सकता है, लेकिन लंबे समय में स्वास्थ्य सेवा के रूप में खर्च अधिक होगा।

इसके अलावा शराब का सेवन करने वाले व्यक्ति की आर्थिक लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, आजकल स्कूल जाने वाले भी शराब पीने लगे हैं, जो राज्य और देश के लिए स्वस्थ संकेत नहीं है।

राज्यों के लिए वैकल्पिक राजस्व स्रोतों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह बहुत सीमित है।

शराब पर उत्पाद शुल्क राज्य के अपने कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। इसलिए राज्य इसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत नहीं चाहते हैं।

शनमुगम ने कहा, शायद केंद्र सरकार राज्यों को अपने नागरिकों पर आयकर लगाने की अनुमति दे सकती है। ऐसे राज्य हैं जो शिकायत कर रहे हैं कि उनके नागरिक केंद्र सरकार को बड़ी मात्रा में करों का योगदान करते हैं, लेकिन केंद्र से केवल एक छोटा सा हिस्सा प्राप्त करते हैं।

अलग-अलग राज्यों द्वारा शराबबंदी लागू करने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि शराब का सेवन करने वाले पड़ोसी राज्यों से शराब खरीद सकते हैं।

शनमुगम ने कहा, केंद्र सरकार द्वारा एक अखिल भारतीय नीति होनी चाहिए और राज्यों द्वारा शराब की उपलब्धता को प्रतिबंधित करने के लिए लागू की जानी चाहिए।

तमिलनाडु में, दो प्रमुख दल - अन्नाद्रमुक और द्रमुक - शराबबंदी लागू नहीं करना चाहते, क्योंकि शराब एक प्रमुख राजस्व स्रोत है।

सत्ता से बाहर रहते हुए तमिलनाडु में शराबबंदी की मांग करने वाली द्रमुक अब इस मुद्दे पर खामोश है।

केवल पीएमके पार्टी ही शराब पर प्रतिबंध लगाने की अपनी मांग पर अडिग है। पीएमके के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में आने वाले करीब 30 फीसदी लोगों की सेहत से जुड़ी समस्याएं शराब से जुड़ी होती हैं। पार्टी ने कहा, इस खर्च में कमी से सरकार के पास उपलब्ध राशि में वृद्धि होगी।

हालांकि, राजनीतिक दलों के पास सत्ता पर कब्जा करने/बनाए रखने का एक अल्पकालिक लक्ष्य है और मुफ्त उपहार एक उपकरण बन गए हैं।

जबकि सुप्रीम कोर्ट मुफ्तखोरी के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रहा है।

--आईएएनएस

एचके/एसकेपी

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