सुनिश्चित करना कि पति की नौकरी चली जाए, मानसिक क्रूरता है : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 13 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के एक दंपति के बीच करीब दो दशक तक चली कड़वी कानूनी लड़ाई पर से पर्दा हटा दिया, जो कभी एक दिन भी साथ नहीं रहे।
सुनिश्चित करना कि पति की नौकरी चली जाए, मानसिक क्रूरता है : सुप्रीम कोर्ट
सुनिश्चित करना कि पति की नौकरी चली जाए, मानसिक क्रूरता है : सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली, 13 सितंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु के एक दंपति के बीच करीब दो दशक तक चली कड़वी कानूनी लड़ाई पर से पर्दा हटा दिया, जो कभी एक दिन भी साथ नहीं रहे।

शीर्ष अदालत ने पति की याचिका पर तलाक का आदेश देते हुए कहा कि पत्नी ने मानसिक क्रूरता का सहारा लिया। अपने कार्यस्थल पर पति का अपमान करना, यह सुनिश्चित करने के लिए शिकायत दर्ज कराना कि वह अपनी नौकरी खो दे और उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही जारी रहे, यह मानसिक क्रूरता है।

जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि पत्नी का आचरण वैवाहिक एकता के विघटन और इस प्रकार, विवाह के विघटन को दर्शाता है।

पीठ ने कहा, वास्तव में, कोई प्रारंभिक एकीकरण नहीं था, जो बाद में विघटन की अनुमति देगा। तथ्य यह है कि लगातार आरोप और मुकदमेबाजी की कार्यवाही की गई है और इसे क्रूरता कहा जा सकता है। यह इस अदालत द्वारा नोट किया गया एक पहलू है।

न्यायमूर्ति कौल ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा, यह एक ऐसा मामला है, जिसमें शादी के टूटने का आधार क्रूरता का आधार है, इसलिए तलाक की डिक्री अपीलकर्ता (पति) के पक्ष में होगी।

पीठ ने कहा कि उत्पीड़न के कई मामले हैं, जहां पत्नी ने छात्रों और अन्य प्रोफेसरों के सामने पति का अपमान किया, जो एक सहायक प्रोफेसर है। कहा जाता है कि उसने अपने सहयोगियों के सामने पति को शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दी थी और अपने नियोक्ता को आपराधिक शिकायत की धमकी भी दी थी।

इस जोड़े ने 2002 में शादी कर ली और मार्च 2008 में ट्रायल कोर्ट ने तलाक की डिक्री को मंजूरी दे दी। आदेश के छह दिन के भीतर पति ने दूसरी शादी कर ली।

इस पर पहली पत्नी ने एक अपील दायर की। जहां अदालत ने दाम्पत्य अधिकार की बहाली के लिए याचिका की अनुमति देते हुए तलाक के फरमान को खारिज कर दिया।

साल 2018 में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दी गई तलाक की डिक्री को बहाल कर दिया। महिला ने इस आधार पर एक समीक्षा याचिका दायर की कि शादी के टूटने के आधार पर तलाक का डिक्री देना उच्च न्यायालय या ट्रायल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं था, और फरवरी 2019 में इसकी अनुमति दी गई थी।

इस आदेश का विरोध करते हुए पति ने शीर्ष अदालत का रुख किया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्नी ने दूसरी शादी के मामले में पति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग की, जबकि दूसरी शादी तलाक की डिक्री के तुरंत बाद हुई थी। इस प्रकार, उसने किसी तरह यह सुनिश्चित करने की मांग की कि अपीलकर्ता अपनी नौकरी खो दे। अपने पति को नौकरी से हटाने की ऐसी शिकायतों को दर्ज करना मानसिक क्रूरता माना जाता है।

--आईएएनएस

एसजीके

Share this story