सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराने के खिलाफ शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया

नई दिल्ली, 15 जनवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक स्कूल शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराने के खिलाफ शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराने के खिलाफ शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया नई दिल्ली, 15 जनवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक स्कूल शिक्षक की याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी गई है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने कहा, आवेदन और आधिकारिक अनुवाद के सी/सी दाखिल करने से छूट के लिए आवेदन की अनुमति है। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क है कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान वास्तविक सबूत नहीं है, केवल इसका इस्तेमाल किया गया है। जब सभी गवाह मुकर गए तो याचिकाकर्ता को दोषी ठहरा दिया गया।

आदेश में कहा गया है, विशेष अनुमति याचिका के साथ-साथ जमानत की प्रार्थना पर नोटिस जारी करें।

निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को पोक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 506 (1) के तहत दोषी ठहराया था और उसे सात साल कैद की सजा सुनाई थी। आरोपी ने निचली अदालत के उस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने पिछले साल अक्टूबर में उसकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था।

अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया था कि आरोपी पीड़िता के स्कूल में शिक्षक था। साल 2019 में आरोप लगाया गया था कि लंच ब्रेक के दौरान आरोपी ने पीड़िता को स्कूल की इमारत के पास एक सुनसान गली में ले जाकर उसका यौन शोषण किया।

आरोपी ने अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 164 के तहत पीड़िता के बयान को उसे दोषी ठहराने के लिए ठोस सबूत नहीं माना जा सकता।

पिछले साल अक्टूबर में उच्च न्यायालय ने एक अलग मामले में पुडुचेरी में एक नाबालिग छात्र के यौन उत्पीड़न के आरोप का सामना कर रहे एक निचली अदालत द्वारा एक स्कूल शिक्षक को बरी कर दिया था।

हाईकोर्ट ने आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

उच्च न्यायालय ने इस मामले में नोट किया था, पीड़िता बच्ची, जो घटना के समय केवल चार वर्ष की थी, तोते की तरह रटी-रटाई बात नहीं कह सकती। पीड़िता से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उसे सभी घटनाओं और आरोपी के कृत्यों को याद रखना चाहिए।

--आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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