अनुसुईया उइके जनजाति वर्ग का बड़ा चेहरा

भोपाल/रायपुर, 8 मई (आईएएनएस)। देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई माह में पूरा होने वाला है और उससे पहले नए राष्ट्रपति के लिए नामों की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। जिन नामों की चर्चा जोरों पर है उनमें एक नाम मध्यप्रदेश में जन्मी और वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके का भी है। वे आदिवासी वर्ग का बड़ा चेहरा भी हैं।
अनुसुईया उइके जनजाति वर्ग का बड़ा चेहरा
अनुसुईया उइके जनजाति वर्ग का बड़ा चेहरा भोपाल/रायपुर, 8 मई (आईएएनएस)। देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई माह में पूरा होने वाला है और उससे पहले नए राष्ट्रपति के लिए नामों की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। जिन नामों की चर्चा जोरों पर है उनमें एक नाम मध्यप्रदेश में जन्मी और वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके का भी है। वे आदिवासी वर्ग का बड़ा चेहरा भी हैं।

रामनाथ कोविंद का कार्यकाल इसी साल जुलाई में पूरा होने वाला है। उनका स्थान कौन लेगा इसको लेकर एक तरफ जहां सियासी कयास जारी हैं तो दूसरी ओर कई नामों पर मंथन भी हो रहा है। वर्तमान में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की राजनीति अनुसूचित जनजाति वर्ग पर खास तौर पर जोर देने वाली है और यही कारण है कि इस वर्ग से जुड़े लोगों के नाम भी राष्ट्रपति पद के लिए सामने आ रहे हैं।

वर्तमान राजनीतिक परि²श्य के लिहाज से अनुसूचित जनजाति वर्ग से एक बड़ा चेहरा छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके का भी है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव रोहना कला में जन्मी अनुसुईया उइके ने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। छात्र जीवन से ही उनका लगाव सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में रहा है, साथ ही उन्होंने अनुसूचित जन जाति वर्ग के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर कोशिश की। उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद महाविद्यालय में व्याख्याता के तौर पर पढ़ाया भी है और इसी दौरान उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में भी कदम रखा। वर्ष 1985 में दमुआ से विधायक निर्वाचित हुई और उसके बाद उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे राज्यसभा सदस्य रहीं, महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री भी रहीं, इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न आयोगों की सदस्य होने का भी उन्हें मौका मिला। उन्होंने अनसूचित जनजाति वर्ग के कल्याण के लिए कई कदम उठाए। उन्हें जागरूक विधायक के सम्मान से भी नवाजा गया और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर फैलोशिप भी उन्हें हासिल हुआ।

आदिवासी वर्ग के प्रतिनिधि और इस वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ने वाले गुलजार सिंह मरकाम का कहना है कि अनुसुइया उइके ने हमेशा ही इस वर्ग के उत्थान के लिए कदम उठाए हैं और यही कारण है कि इस वर्ग के लोग उन्हें सम्मान देते हैं। वे जहां भी रही और जब भी उन्हें इस वर्ग के लिए काम करने का मौका मिला तो उन्होंने कभी भी हिचक नहीं दिखाई।

अनुसुईया उइके द्वारा आदिवासी वर्ग के लिए किए गए कामों को इस एक उदाहरण से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है कि उन्होंने आदिवासी वर्ग की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 22 राज्यों के 80 से ज्यादा जिलों का भ्रमण कर एक प्रतिवेदन तैयार किया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को सौंपा था। उन्होंने कई देशों की यात्राएं भी की हैं।

राजनीतिक विश्लेषक और मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के जानकार गिरजा शंकर का कहना है कि राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया राजनैतिक है, पद भले ही संवैधानिक हो। यही कारण है कि राजनीतिक कंपल्शन के चलते राष्ट्रपति के उम्मीदवारों के नाम तय होते हैं। अब्दुल कलाम इसका उदाहरण हैं जो राजनीतिक कंपल्शन के चलते राष्ट्रपति बनाए गए थे। उसी राजनीतिक कंपल्शन में रामनाथ कोविंद बने और अब यदि अनुसुइया उइके का नाम आता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वास्तव में हमारे देश की राजनीति में यह हो गया है कि एक बहुत बड़े समुदाय को जब विकास की धारा से नहीं जोड़ पाते तो सांकेतिक रूप से उस समुदाय के व्यक्ति को बड़े पद पर बैठा कर यह बताने की कोशिश करते हैं कि हमने इस समुदाय को आगे बढ़ाया है, वास्तव में ऐसा होता नहीं है। अल्पसंख्यक को इस पद पर बिठाना इस बात का संकेत था कि हम अल्पसंख्यकों को भी मुख्यधारा में शामिल किए हुए हैं। उसी तरह अनुसूचित जनजाति के लोगों को भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

--आईएएनएस

एसएनपी/एसकेपी

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