चीन के कारोबारी रवैये को लेकर केन्याई लोगों में असंतोष

नई दिल्ली, 8 जनवरी , (इंड़ियानैरेटिव) केन्या और चीन ने अभी-अभी छह व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और व्यापार असंतुलन को कम करने के तरीके निकालने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह बनाने का भी प्रस्ताव रखा है। लेकिन चीन के इस रवैये को लेकर स्थानीय लोगों में काफी रोष है क्योंकि वे चीन के विस्तारवादी रूख को भली भांति जानते हैं।
चीन के कारोबारी रवैये को लेकर केन्याई लोगों में असंतोष
चीन के कारोबारी रवैये को लेकर केन्याई लोगों में असंतोष नई दिल्ली, 8 जनवरी , (इंड़ियानैरेटिव) केन्या और चीन ने अभी-अभी छह व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और व्यापार असंतुलन को कम करने के तरीके निकालने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह बनाने का भी प्रस्ताव रखा है। लेकिन चीन के इस रवैये को लेकर स्थानीय लोगों में काफी रोष है क्योंकि वे चीन के विस्तारवादी रूख को भली भांति जानते हैं।
इस सप्ताह की शुरूआत में नैरोबी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दोहराया था कि चीन द्वारा वित्त पोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाएं दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से लाभकारी हैं। लेकिन इस बयानबाजी के बावजूद, स्थानीय केन्याई लोगों में चीनी कंपनियों और ठेकेदारों के प्रति उदासीनता और असंतोष की भावना बढ़ रही है।

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि चीनी कंपनियों ने स्थानीय लोगों के लिए छोटे और अनुबंधित काम के अलावा अधिकांश प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को हासिल कर लिया है।

केन्या स्थित समाचार संगठन पूर्वी अफ्रीकी के अनुसार, केवल कुछ चीनी कंपनियों ने जुबली प्रशासन के तहत 8.8 बिलियन डॉलर के सड़क और बुनियादी ढांचे के अनुबंध किए हैं।

समाचार संगठन ने वांग की यात्रा के दौरान प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट में कहा, चीनी कंपनियों के प्रभुत्व के कारण स्थानीय ठेकेदारों को बहुत ही कड़वा अनुभव ह ुआ है, जो अब छोटी सड़कों और रियल एस्टेट परियोजनाओं के ठेके भी हाािसल नहीं कर पा रहे हैं।

भारत में अफ्रीकी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के प्रमुख विद्वान राजेन हर्षे ने इंडियानैरेटिव को बताया, चीनी कंपनियों के संचालन के तरीके के तौर पर साम्राज्यवाद का एक अजीब और नया रूप उभर रहा है। हर्ष ने कहा, चीनियों का ध्यान क्षमता निर्माण पर कम है और यह सत्ता पर कब्जा करने और संसाधनों के दोहन के बारे में अधिक है।

समाचार संगठन के मुताबिक चीनी फमें जिस गति के साथ काम करती है, वित्तपोषण के मामले निपटाती हैं और बातचीत की शक्ति ने उन्हें लगभग सभी सरकारी विभागों, मंत्रालयों में सबका प्रिय बना दिया है और ये चीनी कंपनियां स्थानीय कंपनियों के हिस्से में आनी वाली परियोजनाओं का हक भी मार रही हैं। इन स्थानीय कंपनियों पर सरकार घटिया नौकरियों और गैर-प्रतिस्पर्धी बोलियों का आरोप लगाती रही है, ।

चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी (सीसीसीसी) और उसकी सहायक चाइना रोड एंड ब्रिजेज कॉपोर्रेशन (सीआरबीसी) को सड़क और रेलवे निर्माण का बड़ा काम सौंपा गया है, जिसकी कुल लागत 6.9 अरब डॉलर है।

इसके अलावा, सैकड़ों अरब की केन्याई म ुद्रा चीन अन्य चीनी कंपनियों चाइना वू यी, सिनोहाइड्रो, चाइना रेलवे 21 ब्यूरो ग्रुप, जियांग्शी इंजीनियरिंग और चाइना सिटी कंस्ट्रक्शन थर्ड इंजीनियरिंग ब्यूरो सहित अन्य चीनी फर्मों के पास गई है, जिन्होंने केन्या में कई परियोजनाओं को हथिया लिया है।

कट्स इंटरनेशनल के महासचिव प्रदीप एस मेहता ने चीन के इस विस्तारवादी रवैये की आलोचना करते ह़ुए कहा कि अफ्रीकी सरकारों को स्थानीय निजी क्षेत्र को फलने-फूलने में सक्षम बनाना चाहिए।

अधिकांश अफ्रीकी देशों को जिस समस्या का सामना करना पड़ता है वह सरकारी परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण की कमी है और जहां तक बुनियादी ढांचे के विकास का सवाल है तो इसके लिए सुविचारित सरकारी नीति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, वैश्विक निविदा प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी होने की आवश्यकता है।

मेहता ने कहा, चीनी कंपनियों के कारण स्थानीय फर्में चुभन महसूस कर रही हैं और और जब लोग प्रतिक्रिया देना शुरू कर देंगे तो यह समय के साथ चीनियों को प्रभावित करेगा, क्योंकि अफ्रीका से एक औपनिवेशिक अतीत और इतिहास जुड़ा है। लेकिन समय बदल गया है और लोग अधिक जागरूक हैं तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान आसान है, ।

उन्होंने कहा कि भारत सहित अन्य देशों में स्थित वैश्विक बुनियादी ढांचा विकास कंपनियों को भी अफ्रीकी देशों में उचित मौका दिया जाना चाहिए।

--इंड़ियानैरेटिव

जेके

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