Lok Sabha Election 2024: नारे की कहानी... नारे का इतिहास और राजनीतिक संबंध
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समाचार डेस्क, नई दिल्ली। सन 1974 में गुलजार निर्देशित एक फिल्म आई थी ‘आंधी'। यह फिल्म चुनावी राजनीति और दांपत्य संबंध पर आधारित थी। चुनाव प्रचार के कई बारीक तरीकों को उद्घाटित करती यह फिल्म चुनावी गानों को भी एक संवेदनशील अर्थ देती है।
सलाम कीजिए‚ आली जनाब आए हैं।
ये पांच सालों का देने हिसाब आए हैं।
हमारे वोट खरीदेंगे‚ हमको अन्न देकर।
ये नंगे जिस्म छुपा देते हैं‚ कफन देकर।
इस गाने की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही मुखर और प्रश्नांकित है। आज चुनाव प्रचार की पूरी पद्धति परिवÌतत हो गई है। इसके पीछे तकनीकी विकास और सोशल मीडिया के साथ–साथ चुनाव आयोग की सख्ती भी एक हद तक प्रभावी है। साइकिल‚ रिक्शा‚ टमटम‚ बैलगाड़ी से जो चुनाव प्रचार शुरू हुआ था‚ आज वह चार्टर प्लेन और हेलीकॉप्टर तक पहुंच गया है। चुनाव के वक्त दीवारें चुनावी पोस्टरों से पटी रहती थीं‚ आज उसमें भी कमी आई है। दरअसल‚ चुनाव प्रचार का पूरा व्याकरण ही बदल गया है।
नारे का राजनीति से क्या संबंध है?
सूचना और तकनीकी क्रांति ने चुनाव के पूरे समाजशास्त्र को नया आयाम दिया है। मीडिया की बढ़ती दखलअंदाजी‚ फोन और सोशल साइट पर आम जन की सक्रियता ने चुनाव प्रचार को इससे जोड़ दिया है। तुलनात्मक रूप से प्रचार का यह तरीका कम खर्चीला भी है‚ और प्रभावी भी। परंपरागत चुनाव प्रचार के तरीकों में बदलाव समय का तकाजा है। अपनी बातों को प्रभावी तरीके से जनता के बीच रखना भी एक कला है। चुनावी रणनीतिकार इन मामलों में सिद्धहस्त होते हैं।
चुनावी नारे क्या हैं?
लोकसभा चुनाव 1952 से लेकर अब तक के चुनाव में नारों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। 16वीं लोक सभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं है। ‘नारा' दरअसल‚ कम शब्दों में बहुत कुछ कहने का एक ताकतवर माध्यम है। इस बार चुनाव में फिर नारों की जबरदस्त गूंज है। सोशल मीडिया से लेकर गली –मोहल्लों तक नारे गढ़े और बांचे जा रहे हैं। एक चिंतित नारा है–‘तोड़ दो सारे बंधन को‚ वोट करो गठबंधन' को इस नारे के विपरीत दूसरा नारा है–‘लहर नहीं आंधी बना दो‚ ठगबंधन की समाधि बना दो'।
राम नाम के नारे का महत्व क्या है?
नारों के माध्यम से जनता को आकर्षित करने और अपने पक्ष में वोट देने की अपील की जाती है। इस वर्ष बहुप्रतीक्षित राम मन्दिर की प्राण–प्रतिष्ठा से जुड़े नारे भी चुनावी फिजाओं में गूंज रहे हैं। वैसे राम मन्दिर निर्माण को लेकर भी कई चुनावी नारे लोकप्रिय रहे हैं। ‘हम सौगंध राम की खाते हैं मन्दिर वहीं बनाएंगे'। ‘भाजपा के साथ चलो‚ राम राज्य के साथ चलो'। एक समय भारतीय जनता पार्टी का नारा था–‘भारत मां के तीन धरोहर‚ अटल आडवाणी मुरली मनोहर'। राम मन्दिर से प्रेरित नारा है–‘जो राम को लेकर आए हैं‚ हम उनको लेकर आएंगे'।
भारतीय आत्मा में बसने वाला नाम राम
राम भारतीय आत्मा में बसने वाला नाम है। राम एक संस्कृति है। राम एक आस्था है। चुनावों में आस्था को अवसर में बदलने की रचनात्मक कला सफलता का पर्याय है। भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगियों का नारा ‘एक बार फिर मोदी सरकार' आज का बहुत ही लोकप्रिय नारा बन गया है वहीं दूसरी ओर ‘इंडिया' गठबंधन ने इस नारा के उत्तर में ‘अब होगा न्याय' का नारा दिया है। भारतीय जनता पार्टी के नारों में व्यक्ति की केंद्रीयता है। अटल बिहारी बाजपेयी के दौर में इनका नारा था–‘अटल आडवाणी कमल निशान‚ मांग रहा है हिन्दुस्तान' या फिर ‘अटल बिहारी बोल रहा है‚ इंदिरा शासन डोल रहा है'।
इंदिरा गांधी के नारे क्या हैं?
चुनावी नारों का इतिहास अपने समय की जरूरतों से एक सार्थक संवाद करता है। 1971 में इंदिरा गांधी ने एक नारा दिया था–‘गरीबी हटाओ'। इस नारे ने इंदिरा गांधी को आशातीत बहुमत दिलाया। यह बात अलग है कि गरीबी हटाओ के नारे ने गरीबों को ही हटाना शुरू कर दिया। भारतीय राजनीति में समाजवादियों ने समय–समय पर नारों के द्वारा जोरदार दस्तक दी है। उनका नारा था–‘रोटी कपड़ा और मकान‚ मांग रहा है हिन्दुस्तान'।
हिन्दीभाषी प्रदेशों में उत्तर प्रदेश की राजनीति सदैव अतिरिक्त मुखर रही है। बहुजन समाज पार्टी ने अपने उत्कर्ष काल में एक विवादास्पद नारा दिया था–‘ठाकुर बाभन बनिया चोर‚ बाकी सब डीएस फोर'। बसपा द्वारा इससे भी आपत्तिजनक नारे लगाए गए–‘तिलक तराजू और तलवार‚ इनको मारो जूते चार'। सपा अपने धुर विरोधी बसपा से गठबंधन के बाद नारा दिया–‘मिले मुलायम कांशी राम‚ हवा हो गए जय श्रीराम'। सपा और बसपा गठबंधन टूटने पर नया नारा दिया गया–‘चढ़ गुंडन की छाती पर‚ मुहर लगेगी हाथी पर'। इसके प्रतिउत्तर में सपा ने नारा दिया–‘गुंडे चढ़ गए हाथी पर‚ मोहर लगेगी साइकिल पर'।
आपातकाल में कौन से नारे दिए गए थे?
भारतीय राजनीति में आपातकाल का दौर हमेशा याद किया जाएगा। लोकतांत्रिक मूल्यों को जिस तरह से सत्ता के लिए दुरुपयोग किया गया‚ वह एक करु ण कहानी है। उस दौर में नसबंदी को लेकर नारे लगे–‘नसबंदी के तीन दलाल‚ इंदिरा संजय बंसीलाल'। यह नारा इंदिरा गांधी के विरोध के प्रतीक रूप में खूब चला। नसबंदी से संबंधित एक और नारा था–‘जमीन गई चकबंदी में‚ मकान गया हदबंदी में‚ द्वार खड़ी औरत चिल्लाए‚ मेरा मरद गया नसबंदी में'। आपातकाल के उभरते नेता संजय गांधी को लेकर नारा लगा–‘संजय की मम्मी‚ बड़ी निकम्मी'।
भाजपा और कांग्रेस के नारे क्या हैं?
विगत चुनाव में राहुल गांधी ने नारा दिया था–‘चौकीदार चोर है'। इसके जबाब में भारतीय जनता पार्टी ने एक नारा दिया–‘मैं भी चौकीदार'। इस नारे ने ‘चौकीदार चोर है' को शिकस्त दे दी। इसके अलावा‚ भाजपा ‘अच्छे दिन आएंगे'‚ ‘सबका साथ‚सबका विकास‚सबका विश्वास' आदि नारों के माध्यम से चुनावी माहौल में अपनी बढ़त बनाती रही।
नारों के माध्यम से चुनावी जीत का बिगुल बजाने वालों ने कभी नारे की आत्मा से साक्षात्कार नहीं किया। यह बात अलग है कि इन्हीं नारों के द्वारा अधिकांश दल सत्ता के सिंहासन पर बैठते रहे हैं। नारों के प्रवाह में जन चेतना चैतन्य होती रही लेकिन नारों के ख्वाब ने जनता को सदा छला ही है। नारे अपने हित साधने के लिए बनाए जाते हैं। जनता को तो सिर्फ भुलाया जाता है। भूलने के सच को भूल कर सत्ता को नारों की अनुगूंज सुनाई पड़े। तो यह लोकतंत्र की जीत होगी।