Pataudi family Connection with Pakistan : पूर्वजो के डिफेक्ट से सैफ पर इफ़ेक्ट
हां वो बात अलग है कि उनकी चर्चा बड़े निगेटिव अंदाज में हो रही है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी को एक बेहतर लीडर बताना उनके लिए गली की हड्डी साबित हो गया और लोग अब उन्हें ट्रोल कर रहे हैं... कोई उनके धर्म को लेकर निशाना साध रहा है तो कोई सीधे उनके खानदानी इतिहास को सबके सामने रख रहा है... धर्म की बात तो चलो समझ में आती है लेकिन खानदानी इतिहास से राहुल गांधी का सैफ अली खान की पसंद होने का क्या पॉइंट है, ये समझ से परे है... जिसे चलिए हम और आप मिलकर समझने की कोशिश करते हैं...
नमस्कार, मेरा नाम है राजीव श्रीवास्तव और आप मेरे साथ बने हुए हैं आपकी खबर के पॉलिटिकल प्लेटफार्म पर...आज हम आपको बताएंगे पटौदी परिवार का इतिहास और आपको ये भी बताएंगे कि पटौदी परिवार नवाब कैसे बना..आप ये बात जानते होंगे कि सैफ अली खान पटौदी रियासत के 10वें नवाब हैं... उन्हें ये खिताब अपने पिता मंसूर अली खान पटौदी के बाद मिला, जो कि 9वें नवाब थे... लेकिन सैफ अली खान के दादा-परदादा का इतिहास क्या है, वे पटौदी रियासत के नवाब कैसे बने, और उनका परिवार कहां से आया? इस बारे में बहुत से लोगों को अभी जानकारी नहीं हैं...
दरअसल, पटौदी रियासत का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है, जिसकी स्थापना 1804 में हुई थी... हरियाणा के गुड़गांव जिसे अब गुरुग्राम के नाम से जाना जाता है, वहां से करीब 26 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में स्थित ये रियासत अपने वक्त में काफी अहम थी... इस रियासत के पहले नवाब फैज तलब खान थे... कहा जाता है कि फैज तलब खान के पूर्वज अफगानिस्तान से आए थे और वो सलामत खान के वंशज थे जो 1408 के आसपास भारत आए थे..
आपको जानकर हैरानी होगी कि पटौदी रियासत के लोग सर्बानी जनजाति के थे, जो अफगानिस्तान में बड़े ही नीचे तबके के लिए समझे जाते थे... ये भेड़ बकरियां चरा कर अपना पेट पालते थे... इन्हें किसी भी लायक नहीं समझा जाता था... बस इसीलिए ये अपना देश छोड़कर भारत आ गए... यहां आने के बाद इनका नसीब ही बदल गया... जिन्हें दो वक्त की रोटी भी बहुत जद्दोजहद करने के बाद हासिल हुआ करती थी, वो अब यहां आकर नवाब बन गए... बेशुमार दौलत भी आ गई और शोहरत भी... लेकिन ये सब कुछ कैसे हुआ? तो हम आपको बता दें कि जिनकी नियत में दूसरों को धोखा देना लिखा हुआ होता है, वो अक्सर कामयाब हो जाते हैं... जिस भारत देश के लोगों ने उनको इज़्ज़त दी, बराबरी का दर्जा दिया, उन्हीं लोगों के साथ इन पटौदियों ने धोखेबाज़ी की...
पटौदी रियासत का मुगलों से भी गहरा संबंध था... सन् 1408 में, सैफ अली खान के पुरखे सलामत खान अफगानिस्तान से भारत आए थे... उनके पोते अल्फ खान ने मुगलों के साथ कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया था, जिसके चलते उन्हें दिल्ली और राजस्थान में जमीनें तोहफे के रूप में दी गईं... और इन्हीं जमीनों पर पटौदी रियासत की स्थापना हुई थी.पटौदी रियासत के नवाबों की वंशावली में फैज तलब खान के बाद दूसरे नवाब अकबर अली सिद्दिकी खान बने... फिर मोहम्मद अली ताकी सिद्दिकी खान, मोहम्मद मोख्तार सिद्दिकी खान, मोहम्मद मुमताज सिद्दिकी खान, मोहम्मद मुजफ्फर सिद्दिकी खान और मोहम्मद इब्राहिम सिद्दिकी खान इस जिम्मेदारी को संभालते रहे... 8वें नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी थे, जो एक मशहूर क्रिकेटर भी थे... उन्होंने इंग्लैंड की तरफ से भी टेस्ट खेला और बाद में भारतीय टीम को भी रिप्रेजेंट किया था...
इफ्तिखार अली खान पटौदी के बेटे मंसूर अली खान पटौदी, जो 'टाइगर पटौदी' के नाम से मशहूर थे, 9वें नवाब बने. उन्होंने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और वे भारत के सबसे कम उम्र के क्रिकेट कप्तान बने. उनकी कप्तानी में भारत ने एशिया के बाहर पहला टेस्ट मैच जीता था.मंसूर अली खान पटौदी के निधन के बाद, सैफ अली खान को 10वां नवाब घोषित किया गया... हालांकि, सैफ ने इस पदवी को आधिकारिक तौर पर नहीं अपनाया क्योंकि सरकार ने नवाबों की पदवी को मान्यता नहीं दी है... फिर भी, अपने लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, उन्होंने ये जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली.
बात करें अगर पटौदी रियासत की तो इन्हें वतन परस्ती का सर्टिफिकेट कभी भी नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन्होंने हमारे देश में हुकूमत करने के लिए मुगलों का साथ दिया था... लोदी वंश के साथ लड़ाई में इनको रियासत मिली थी... मराठों के साथ लड़ाई में इन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया तब इन्हें नवाब का टायटल मिला... आज़ादी के बाद भी पटौदी परिवार का रवैया पाकिस्तान परस्त ही रहा... इन्होंने भारत में विलय करने से साफ इनकार कर दिया था, इसके अलावा सैफ अली खान के परदादा ने तिरंगा फहराने वाले 6 देशभक्त नौजवानों को गोली से उड़ा दिया था..
दरअसल, सैफ के भोपाली पुरखे पहले पाकिस्तान में मिलना चाहते थे और फिर अपना एक अलग देश बनाना चाहते थे...जी हां, बात हो रही है नवाब हमीदुल्ला खान की... सैफ हमीदुल्ला खान की बेटी साजिदा सुल्तान के पोते हैं... और सैफ खुद को बड़ी शान से भोपाल के नवाब खानदान का इकलौता वारिस बताते हैं... हमीदुल्ला खान मोहम्मद अली जिन्ना के खास दोस्त थे... और मुस्लिम लीग के कट्टर सदस्य थे... यहां तक कि मुस्लिम लीग के हर पाप में तन-मन-धन से मदद करते थे... इसकी मिसाल है 1946 में पाकिस्तानी प्रांत NWFP में हुए हिंदु-सिख विरोधी दंगे... तब NWFP में कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेता खान अब्दुल गफ्फार खान के प्रभाव वाली सरकार थी.इसी सरकार को गिराने और हिंदु विरोधी दंगे करवाने के लिए भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने मुस्लिम लीग को भरपूर धन दिया... इस बात का जिक्र देश के जाने माने लेखक डॉक्टर दिनकर जोशी ने अपनी किताब महामानव सरदार में पेज नंबर 164 पर किया है.
ये नवाब साहब इतने चालाक थे कि इन्होने अपनी सुरक्षा के लिए अपना ही नहीं, भोपाल के बाशिंदो का पैसा भी पाकिस्तान भेज दिया. इन्होने बैंक ऑफ भोपाल का सारा पैसा पाकिस्तान भेज दिया और बैंक को दिवालिया घोषित कर दिया गया.उस ज़माने में भोपाल के हजारों लोगों के पैसे इस बैंक में जमा थे और ये सारे लोग कंगाल हो गए. हमीदुल्ला इतने धूर्त थे कि इन्होंने जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर के हिंदु राजाओं को भी जिन्ना से मिलवाया और उन्हें पाकिस्तान में शामिल करने के लिए दवाब बनवाया. लेकिन ये तीनों देशभक्त राजा भोपाल के नवाब और जिन्ना के झांसे में नहीं आए.
हमीदुल्ला खान की गद्दारी की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. जब भोपाल के कुछ हिंदु युवकों ने भोपाल की आज़ादी का आंदोलन छेड़ दिया तो नवाब ने उन्हें कुचलने में एक पल की देरी नहीं लगाई. इन देशभक्त आंदोलनकारियों में डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा भी थे जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने, उन्हें भी नवाब ने जेल में ठूंस दिया था. और तो और रायसेन के पास बोरास में जब कुछ युवकों ने तिरंगा फहराने की कोशिश की तो नबाव के हुक्म पर उनपर गोली चलवा दी गई. जिसमें भोपाल रियासत के 6 देशभक्त नौजवान शहीद हो गए. लेकिन कहते हैं कि पाप का घड़ा एक दिन ज़रूर भरता है. वही नवाब हमीदुल्ला खान के साथ हुआ. 11 सिंतबर, 1948 को नवाब के जिगरी दोस्त जिन्ना परलोक सिधार गए और इसी के साथ भोपाल के नवाब के तेवर कमज़ोर पड़ने लग गए. फिर एक दिन वो हुआ जिसकी कल्पना नवाब ने भी नहीं की थी. दिल्ली के दंगों के दौरान पटौदी हाउस को उग्र हिंदुओं की भीड़ ने घेर लिया..पटौदी हाउस में तब नवाब की छोटी बेटी साजिदा सुल्तान और उनके शौहर इफ्तिखार अली खान पटौदी फंसे हुए थे. ये साजिदा सैफ अली खान की सगी दादी थीं और इफ्तिखार अली खान सैफ के सगे दादा थे.
जब नवाब हमीदुल्ला खान को ये सूचना मिली की उनकी बेटी और दामाद चारों तरफ मौत से घिर गए हैं तो उन्होंने उस इंसान को मदद के लिए फोन लगाया जिसे वो अब तक आंखे दिखा रहे थे. वो इंसान थे डॉक्टर सरदार पटेल. नवाब ने सरदार पटेल को फोन लगा कर अपनी बेटी और दामाद की ज़िंदगी की भीख मांगी और दिलदार सरदार ने बिना देर किए सैफ अली खान की दादी और दादा यानि नवाब की बेटी और दामाद को दिल्ली के पटौदी हाउस से सुरक्षित बाहर निकालकर भोपाल पहुंचवा दिया. बस फिर क्या था पाकिस्तान परस्त नवाब को समझ आ गया कि उसकी भलाई इसी में है कि वो भोपाल का भारत में विलय कर दें. और आखिरकार 1 जून, 1949 को भोपाल भारत का अंग बन गया और सैफ के पुरखे नवाब हमीदुल्ला कहने भर के नवाब रह गए.
बहरहाल, अब आपको बताते हैं सैफ अली खान का पाकिस्तान और आईएसआई से क्या कनेक्शन है. आपको बता दें कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महान क्रिकेटर और सैफ अली खान के पिता मंसूर अली खान पटौदी के चचेरे भाई मेजर जनरल इस्फंदियार अली पटौदी, एक वक्त में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख बनने की रेस में दौड़ रहे थे. इसके अलावा सैफ अली खान के कई करीबी रिश्तेदार आज भी पाकिस्तान में रहते हैं.
आपको याद होगा जब सैफ और करीना ने अपने बेटे का नाम तैमूर चुना था तो काफी हंगामा बरपा था. खासकर सोशल मीडिया पर चलने वाली इस चर्चा में लोगों की एक्साइटमेंट थी कि आखिर सैफ और करीना ने अपने बच्चे के लिए यही नाम क्यों चुना? दरअसल ये सवाल उठ रहे थे, इतिहास में मशहूर रहे हत्यारे तैमूरलंग के चलते. तैमूरलंग इतिहास में एक खूनी योद्धा के रूप में मशहूर है. 14वीं शताब्दी में युद्ध के मैदान में तैमूर का कोई सानी नहीं था तैमूर को अपने दुश्मनों के सिर काटकर जमा करने का शौक था... तैमूर की क्रूरता के कई किस्से मशहूर हैं... कहा जाता है कि एक जगह उसने दो हजार जिंदा आदमियों की एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया था. तो ऐसे खूंखार और जल्लाद योद्धा के नाम को अपने बेटे का नाम देने के लिए सैफ अली खान पर आज भी सवाल खड़े होते हैं