कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने,ए भारत मां दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ संघ के इस गीत को सुनकर आतंकियों ने पीट लिया था माथा  

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  •  देश की एकता-अखण्डता के लिए 25 स्वयंसेवकों ने दिया बलिदान
  • खालिस्तान के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती, संघ

खालिस्तानी और जिहादी आतंकवाद हो या नक्सलवाद या फिर दुश्मन देशों की गुप्तचर एजेंसियां आखिर इनमें साञ्झा क्या है ? उत्तर है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। संघ इनका स्वभाविक और सांझा दुश्मन है। देश में जब भी जहां भी और किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि होती है तो संघ स्वत: इनके सामने आ खड़ा होता है। पंजाब में डेढ़ दशक तक चले आतंकवाद के दौर में भी संघ ने आतंकवाद को इस तरह नाकों चने चबवाए कि खाकी निक्कर डालने वाला हर व्यक्ति पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले आतंकवादियों का दुश्मन नम्बर वन बन गया और इसी का परिणाम निकला मोगा में 25 जून, 1989 को संघ की शाखा पर हुआ आतंकी हमला जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर देश की एकता-अखण्डता को सम्बल प्रदान किया। 

इस घटना के बारे में शहीद स्मार्क से जुड़े पदाधिकारी डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकवादियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया था, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गई थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी जिससे आतंकियों के हौसले पस्त हो गए और हिन्दू-सिख एकता जीत गई।

25 जून, 1989 को अब शहीदी पार्क में रोजाना ही भारी तदाद में शहर निवासी सैर के लिए आये थे। रोजाना की तरह उस दिन भी जहां नागरिक पार्क में सैर का आनन्द ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं और संघ का एकत्रीकरण था। सुबह 6 बजे संघ का विचार शुरू हुआ तो अचानक 6.25 पर सभा को सम्बोधित कर रहे स्वयंसेवकों पर आतंकवादियों ने आकर हमला कर दिया, हर तरफ भगदड़ मच गई। गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था। घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे। गोलियां लगने कारण कई सेवकों का शरीर भी बेजान हो गये और कईयों ने अस्पताल में जाकर अन्तिम सांस ली। इस गोली कांड दौरान जहां 25 लोग शहीद हो गए, वहीं शाखा में शामिल लोगों के साथ कई आसपास के 31 के करीब लोग घायल भी हो गए थे। इस गोलीकाण्ड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था लेकिन फिर भी आरएसएस सेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान बना हुआ है।

जो शहीद हुए

इस गोली कांड में शहीद होने वालों में सर्वश्री लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवन्त सिंह शामिल हैं। गोली काण्ड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे।

निहत्थे दंपति ने आतंकियों को ललकारा

गोलीकाण्ड बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकडऩे की कोशिश की पर एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नीन्द सुला दिया और साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।

मौत के सामने डटे स्यवंसेवक

जब सभा हो रही थी तो अचानक पिछले गेट से भागदौड़ की आवाज सुनाई दी पता चला कि हां से आतंकी अन्दर घुस आए हैं बावजूद इसके कोई भागा नहीं और उनका डटकर सामना किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही सभा में स्वयंसेवकों से ध्वज उतारने के लिए कहा लेकिन स्वयंसेवकों से साफ मना कर दिया। इस पर आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी। 10 साल की उम्र में गोलीकांड आंखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था तथा रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया तथा जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियां चलानी शुरू कीं तो वह धरती पर लेट गया तथा जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकडऩे की कोशिश की तथा मैं भी इसको खेल समझकर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकडऱ घर भेजा।

दंगा चाहने वाले भी हुए निराश

ये दिन वे थे जब अभी दिल्ली सहित देश के सिख विरोधी दंगों की आग में अभी तपिश जारी थी। आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही साथ में कुछ दंगा सन्तोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिखों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिन्दू-सिख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता।

25 जून के अगले दिन संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे कि - कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत मां दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं। संघ के इस गीत को सुन कर आतंकियों ने भी माथा पीट लिया था। अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया तो उस दौरान शहीदों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया। इस कार्य अधीन मोगा पीडि़त मदद और स्मारक समिति का गठन हुआ। शहीदी स्मारक का नींवपत्थर 9 जुलाई को माननीय भाऊराव देवरस द्वारा रखा गया। इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को रज्जू भैया द्वारा किया गया। आज भी हर साल शहीदों की याद में श्रद्धाञ्जलि समारोह आयोजित किया जाता है। 

- राकेश सैन

32, खण्डाला फार्म कालोनी

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