Aasmai Dooj: आसमाई दूज का क्या महत्व है, इसका व्रत कैसे रखें?

Aasmai Dooj: What is the significance of Aasmai Dooj, how to observe its fast?
Aasmai Dooj: आसमाई दूज का क्या महत्व है, इसका व्रत कैसे रखें?
Aasmai Dooj 2024: आसमाई या आसों दूज का पर्व वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की दूज के दिन मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 25 अप्रैल को मनाया जाएगा। उत्तर भारत में खासकर बुंदेलखंड क्षेत्र में इसका बहुत महत्व है. कहा जाता है कि जिनकी मनोकामनाएं पूरी नहीं होती हैं, वह आसमाई दूज का व्रत करके आसमाई माता को प्रसन्न कर अपनी इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है.

हर क्षेत्र में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं 

भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न प्रकार की बोली, भाषा, भोजन आदि है. यहां कई भाषाओं के लोग बसे हैं. यहां हर क्षेत्र में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं. ऐसा ही एक पर्व उत्तर भारत में मनाया जाता है, जिसे आसमाई दूज या आसों दूज के नाम से जाना जाता है. उत्तर भारत में यूपी और एमपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में यह पर्व मनाया जाता है. बुंदेलखंड एक ऐसा क्षेत्र है जहां के पर्वों में इतिहास है. उनका अलग ही पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व है. इसी तरह आसमाई दूज भी यहां पौराणिक काल से मनाई जा रही है. यह तिथि हर वर्ष वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की दूज के दिन आती है. साल 2024 में यह पर्व 25 अप्रैल को मनाया जाएगा।

आसमाई दूज का महत्व

Aasmai Dooj Ka Mahatwa: कहा जाता है कि जो महिलाएं बाल-बच्चे वाली होती हैं उन्हें आसमाई माता के व्रत का बहुत पुण्य मिलता है. इस व्रत पालन थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन माता की कृपा पूरे परिवार पर बनी रहती है. माता हमेशा उस परिवार की रक्षा करती हैं. उस घर में कभी किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती है. न ही कोई रोग-दोष से पीड़ित होता है. व्रत में नामक का सेवन वर्जित होता है. इसके अलावा कई नियमों का पालन भी करना होता है. इस व्रत की सबसे महत्व पूर्ण बात ये है कि यदि कोई महिला एक बार आसमाई दूज का व्रत रखती है, तो उसे जीवन भर इसे रखना होता है.

आसमाई दूज की पूजा विधि

Aasmai Dooj Pooja Vidhi,Vrat : सूर्योदय होने से पहले स्नान करना आवश्यक है. इसके बाद एक पान के पत्ते पर सफेद चंदन एक पुतली का चित्र बनाया जाता है, फिर उस पर चार कौड़ियां रखकर पूजा की जाती है. चौक पूरा कर उस पर कलश स्थापित किया जाता है. इसके बाद एक चौकी पर आसमाई माता की स्थापना की जाती है. इसके बाद पंडित द्वारा कथा का वाचन किया जाता है. कथा समाप्ति के बाद सामग्री जल में सिराही जाती है. पूजा वाली कौड़ियां रख ली जाती हैं. व्रत के पारण के लिए खीर, पुए आदि पकवान बनाए जाते हैं. माता को भोग लगाने के बाद स्वयं व्रत तोड़ा जाता है.

आसमाई दूज की कथा

Aasmai Dooj Ki Katha: एक राजा का एक बेटा था. वह उसके लाड प्यार में इतना अंधा हो गया कि बेटे को मनमाना कार्य करने की छूट सी मिल गई थी. राजा का बेटा प्रतिदिन पनघट पर जाकर गुलेल से पनिहारियों की गगरियां फोड़ देता था. राजा ने घोषणा कर दी कि कोई पनघट पर मिट्टी के घड़े लेकर पानी भरने न जाए, बल्कि पीतल या तांबे के घड़े लेकर जाए. सभी पनिहारियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। अब राजा का बेटा लोहे व शीशे के टुकड़ों से पनिहारियों के घड़े फोड़ना शुरू कर दिया। तब राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपने बेटे का देश निकाला कर दिया। राजकुमार घोड़े पर बैठकर वन की ओर चला गया.

वन में चलते हुए उसकी भेंट चार बूढ़ी औरतों से हुई. अकस्मात राजकुमार का चाबुक गिर गया उसने घोड़े से उतरकर चाबुक उठाया तो बूढ़ी औरतों को लगा कि यह उन्हें प्रणाम कर रहा है लेकिन समीप पहुंचने पर उन चारों स्त्रियों के पूछने पर राजकुमार ने बताया कि उसने चौथी बुढ़िया (आसमाई) को प्रणाम किया है. इस पर आसमाई बहुत प्रसन्न हुई और उसे चार कौड़ियां देकर आशीर्वाद दिया कि जब तक ये कौड़ियां उसके पास रहेंगी तब तक उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। उसे सभी कार्यों में सफलता हासिल होगी। आसमाई माता का आशीर्वाद लेकर राजकुमार आगे बढ़ गया.

आगे जाते हुए एक राज्य की राजधानी में पहुंचा। वहां उसने देखा कि वहां का राजा जुआ खेलने में मस्त था. राजकुमार ने राजा को जुए खेलने के लिए कहता है, राजा तैयार हो गया. अंत में वह राजा जुए में अपना सारा राजपाठ हार जाता है. इसके बाद मंत्री की सलाह पर राजा अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से करवा देता है. राजकुमारी बहुत ही शील थी. महल में सास-ननद के अभाव में वह कपड़े की गुड़ियों द्वारा सास ननद की परिकल्पना कर उनके चरणों को आंचल पसारकर छूती और आशीर्वाद लेती। एक दिन यह सब करते हुए राजकुमार ने देख लिया और पूछा कि तुम यह क्या कर रही हो?

तभी राजकुमारी ने सास-ननद की सेवा करने की इच्छा बताई। इस पर राजकुमार सेना लेकर अपने घर चल दिया। वहां पहुंचते ही उसने देखा कि मां-बाप उसके वियोग में अंधे हो गए थे. पुत्र के आने का समाचार पाते ही दोनों बहुत खुश हुए. महल में प्रवेश करने पर राजकुमारी ने अपने सास और ससुर के चरण छुए, सास ने आशीर्वाद देती है. इसके कुछ दिनों बाद राजकुमारी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. आसमाई माता की कृपा से राजा-रानी की आंखों की रोशनी भी वापस आ गई, उनका सारा कष्ट दूर हो गया

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