रामलीला मंच पर सीतापुर से आये कलाकारों ने  रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया

Artists from Sitapur presented a colourful cultural programme on the Ramlila stage
Artists from Sitapur presented a colourful cultural programme on the Ramlila stage
बलरामपुर।श्रीश्री 108 सत्य प्रचारिणी रामलीला समिति द्वारा आयोजित रामलीला मंचन के दूसरे दिन स्थानीय कलाकारों द्वारा नारद मोह, विश्वमोहनी स्वयंवर, राम जन्म लीला का अत्यंत भाव पूर्ण मंचन किया गया। मंचन के बीच बीच में सीतापुर से आये बाहरी कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया जिसको देख दर्शकों ने खूब लुत्फ उठाया।

मंचन के दौरान दिखाया गया कि देवर्षि नारद हिमालय की कंदरा में बैठकर तप करते हैं। यह समाचार जब देवराज इन्द्र तक पहुंचता है तो वे घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि देवर्षि नारद इंद्रासन के लिए तप कर रहे हैं। इंद्र कामदेव को बुलाकर आज्ञा देते हैं कि वे देवर्षि नारद के तप को भंग करें।  कामदेव इन्द्र की आज्ञा पाकर उस स्थान पर पहुंचते हैं, जहां देवर्षि नारद तपस्या में लीन रहते हैं।

Artists from Sitapur presented a colourful cultural programme on the Ramlila stage

साथ में गई अप्सराओं को कामदेव नारद के तप को खंडित करने का आदेश देते हैं। हालांकि काफी प्रयास के बाद नारद का तप खंडित नहीं हुआ। इस बात को लेकर देवर्षि नारद के मन में कामदेव को जीत लेने का अहंकार पैदा हो जाता है। देवर्षि नारद के काम विजय के अहंकार का नाश करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु एक माया जनित नगर, एक राजकुमारी के स्वयंवर की रचना करते हैं, नारद जी राजकुमारी पर मोहित हो जाते हैं और अपनी सारी मर्यादा त्याग उससे विवाह करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु से सुंदर रूप मांगते हैं। भगवान विष्णु उन्हें वानर रूप दे देते हैं और स्वयं स्वयंवर में जाकर राजकुमारी से विवाह कर लेते है,

Artists from Sitapur presented a colourful cultural programme on the Ramlila stage

ऐसे में नारद जी क्रोधित होकर भगवान विष्णु को नारी विरह का श्राप दे देते हैं। कि आपने मुझे बंदर का रूप देकर मुझे हंसी का पात्र बनाया है, आगे चलकर इन्हीं बंदरों से आप को सहायता मांगनी पड़ेगी। भगवान के द्वारा अपनी माया समेट लेने पर जब नारद जी को वास्तविकता का भान होता है तो वह भगवान विष्णु से क्षमा याचना करते हैं।  उधर, रावण अपने बल के मद में चूर होकर साधु-संतों के ऊपर अत्याचार करता शुरू कर देता हैं। ऋषि मुनियों की निर्मम हत्या तथा धर्म को नीचा दिखाने के लिए तमाम तरह के व्यभिचार करना शुरू कर देता है। रावण के इस अधर्म पूर्ण कार्य से देवताओं में खलबली मच जाती है। सभी लोग भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं और सारी व्यथा से उन्हें अवगत कराते हुए कहते हैं

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कि प्रभु यदि रावण के अधर्म पूर्ण कार्यों को न रोका गया तो संपूर्ण पृथ्वी से धर्म का लोप हो जाएगा। भगवान विष्णु देवताओं को भरोसा दिलाते हैं कि वे जल्द ही अधर्मियों को उनके पापों का दंड देने के लिए पृथ्वी पर मानव रूप में अवतरित होंगे। उधर, अयोध्या में राजा दशरथ ने ऋंगी ऋषि से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया। राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति का वरदान मिला। वरदान अनुसार दशरथ की तीनों रानियां कौशल्या ने राम, कैकेयी ने भरत व सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। चारों भाइयों के जन्म पर मंगल स्वागत गीत गाए गए। राम जन्म की खुशी में आतिशबाजी की गई। जिसको देखकर उपस्थित दर्शक भाव विभोर हो उठे।

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