अयोध्या के "धर्महरि" मंदिर जहां खुद भगवान राम ने की थी पूजा ,जहां गए बिना नही मिलता अयोध्या यात्रा का फल 

अयोध्या धर्महरी मंदिर

 Shri Dharm Hari Chitragupt Mandir Ayodhya (U.P.)

श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर अयोध्या जिला फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) 

”श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर” वर्तमान में, सरयू नदी के दक्षिण, नयाघाट से फैजाबाद, राजमार्ग पर स्थिति तुलसी उधान से लगभग 500 मीटर पूरब दिशा में, डेरा बीबी मोहल्ले में, बेतिया राज्य के मंदिर के बग़ल मैं है। वैसे नयाघाट से मंदिर की सीधी दूरी लगभग एक किमी. होगी। पौराणिक गाथाओं के अनुसार, स्वंय भगवान विष्णु ने इस मंदिर की स्थापना की थी और धर्मराज जी को दिये गये वरदान के फलस्वरुप ही धर्मराज जी के साथ इनका नाम जोड़ कर इस मंदिर को ‘श्री धर्म-हरि मंदिर’ का नाम दिया है। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है। किवदंति है कि विवाह के बाद जनकपुर से वापिस आने पर श्रीराम-सीता ने सर्वप्रथम धर्महरि चित्रगुप्त जी के ही दर्शन किये थे। धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि चित्रगुप्त राजदरबार के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता। अयोध्या के इतिहास में उल्लेख है कि सरयू के जल प्रलय से अयोध्या नगरी पूर्णतया नष्ट हो गर्इ थी और विक्रमी संवत के प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य ने जब अयोध्या नगरी की पुनस्र्थापना की तो सर्वप्रथम श्री धर्म हरि चित्रगुप्त मंदिर की स्थापना करार्इ थी।

मंदिर की व्यवस्था के संचालन हेतु, सुल्तानपुर निवासी मुंशी बिन्देश्वरी प्रसाद जी ने, अठारह बीघे भूमि दान की थी, परन्तु ब्राहमण पुजारी ने उस जमीन को अपने नाम करवाकर, खुर्द-बुर्द कर दिया था। सन 1882 र्इ. में असिस्टेन्ट कमिश्नर श्री महेश प्रसाद जी के प्रयासों से ”कायस्थ धर्म सभा अयोध्या” की स्थापना हुर्इ थी, और फैजाबाद के श्री शिवराज सिंह जी वकील सभा के मंत्री बने थे। अत: पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का श्री धर्महरि चित्रगुप्त मंदिर कायस्थों के चारों धामों में दूसरा महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
मंदिर बहुत जीर्ण-शीर्ण दशा में था जिसका जीर्णोधार कायस्थ धर्म सभा अयोध्या द्वारा किया जा रहा है, सभी कॉयस्थो को इसमें मदद करनी चाहिए क्योंकि ये हमारे आराध्य भगवान चित्रगुप्त जी का धाम है।अभी मंदिर के गुम्बद का पुनः निर्माण किया गया है, जिसकी शोभा देखी जा सकती हैं।समाज के गरीब लोगों की मदद मैं संस्था आगे रहती हैं।में प्रदीप प्रधान भी बहुत भाग्यशाली हूँ, जो संस्था से जुड़ा हुआ हूं।मेरे पूर्वज भी भगवान श्री राम के मंत्री के वंशज है।

संन 2013-14 से कार्य प्रगति पर चल रहा है। चौथे चरण का कार्य इसी वर्ष 2020 में चालू होना है। जिसमे सत्संगियों के लिए एक सत्संग हॉल का निर्माण चालू होना है। यह जीर्णोधार कार्य धर्म सभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री सतीश कुमार सहाय एडवोकेट की टीम की देखरेख में चल रहा है।
एक किदवंती यह भी हैं कि...
कहा जाता हैं,जब भगवान राम रावण को मार कर राजतिलक के लिये अयोध्या लौट रहे थे।भरत जी उनके खडाऊं को     राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे  थे।

तब भरत जी ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजने की व्यवस्था करने को कहा। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं।

ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त जी नहीं दिखाई दे रहे है, इस पर जब उनकी खोज हुई। खोज में जब चित्रगुप्त जी नहीं मिले,तब पता चला कि गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त जी को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते भगवान चित्रगुप्त नहीं आये।

इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे, और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम दवात को उठा कर किनारे रख दिया।

सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से वापस लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे, प्राणियों का  लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ स्वर्ग/ नरक भेजना है।

भगवान विष्णु ने किया था इस मंदिर की स्थापना 

 गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमा याचना की। श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि चित्रगुप्त मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि श्री चित्रगुप्त भगवान जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता अयोध्या यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।

इसके बाद नारायण रूपी भगवान राम का आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद) पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य प्रारम्भ किया।

ऐसा माना जाता है, कि तभी से कायस्थ समाज दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं, और यम-द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है।

कायस्थ ही केवल ले सकते हैं ब्राम्हणों से दान 

इस घटना के पश्चात ही, कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ भी कायस्थों को ही है।

आखिर ऐसा क्यूँ है की पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कायस्थ दीपावली के पूजन के कलम रख देते है और फिर कलम दवात पूजन के दिन ही उसे उठाते है?इसका यही कारण था, जिसका समाधान भगवान चित्रगुप्त पूजन अर्चना करने से होता है।प्रेम से बोला चित्रगुप्त भगवान की जय।

Kayastha the great 

Pradip pradhan 

Courtesy fb

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