हर इंसान को करना चाहिए इस गुप्त धन का संग्रह, जानें चाणक्य नीति

हर इंसान को करना चाहिए इस गुप्त धन का संग्रह, जानें चाणक्य नीति

चाणक्य नीति (Chanakya Niti): चाणक्य (chanakya) ने अपने ग्रंथ में जीवन के सभी विषयों सहित सुख-दुख और जीवन (life) की समस्याओं का भी उल्लेख और उसके समाधान के बारे में बताया है. चाणक्य नीति (chanakya niti) नामक ग्रंथ में चाणक्य कहते हैं कि जीवन है, तो सुख-दुख का आना-जाना लगा रहेगा. इंसान को संतुलित जीवन जीते हुए इनसे बचने का हर संभव कोशिश करनी चाहिए. अब आगे जानते हैं कि आखिर चाणक्य ने विद्या को गुप्त धन क्यों कहा....जानिए खास बातें

विद्या है गुप्त धन (Knowledge is secret money)

आचार्य चाणक्य (chanakya) मानते हैं कि ज्ञान अर्जित करना कामधेनु (kamdhenu) के समान है, जो हर मौसम में अमृत (amrit) प्रदान करती है. वह विदेश में माता के समान रक्षक और हित करने वाली होती है. इसीलिए विद्या (knowledge) को एक गुप्त धन (secret money) कहा जाता है. आचार्य चाणक्य (acharya chanakya) के अनुसार व्‍यक्ति के जन्‍म से पूर्व ही मां के गर्भ में उसकी मृत्‍यु, उसके कर्म और उसके पास जीवन में कितनी संपत्ति रहेगी, ये बातें उसके जन्‍म लेने से पहले ही निश्चित हो जाती है.

एक गुणी पुत्र सैकड़ों पर भारी (A virtuous son heavy on hundreds)

चाणक्य नीति के अनुसार सैकड़ों गुण रहित पुत्रों से अच्छा वह एक ही पुत्र है, जो गुणी हो. क्योंकि एक चन्द्रमा ही रात के अन्धकार को दूर करता है. असंख्य तारे मिल कर भी अंधकार दूर नहीं कर पाते. दुखों में ये ही देते हैं सहारा (these are only support in sorrows) आचार्य चाणक्य के अनुसार जीवन में जब दुखों का आगमन होता है और जब व्यक्ति दुखों से झुलसता है, तो उसे दुख के इन पलों में उसके पुत्र, पुत्री, पत्नी और भगवान के भक्त ही सहारा देते हैं.

Chanakya Niti in Hindi

व्यक्ति का जीवन विद्या, धर्म, धन और घर के इर्द-गिर्द घूमता रहता है. मनुष्य इन्हीं चीजों को संजोने और बचाने में अपना पूरा जीवन लगा देता है. लेकिन कई बार सब कुछ करने के बाद भी कुछ चीजें छूट जाती हैं. चाणक्य ने अपने नीतिग्रंथ यानी चाणक्य नीति में एक श्लोक के माध्यम से यह बताया है कि मनुष्य कैसे धर्म, विद्या और घर को बचा सकता है.

वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।

मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्।।

आचार्य चाणक्य (acharya chanakya) कहते हैं कि धन (wealth) से धर्म (religion) की रक्षा होती है. योग से विद्या की, कोमलता से राजा की और सती स्त्री से घर की रक्षा होती है. यानी चाणक्य (chanakya) इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि धर्म की रक्षा के लिए धन की आवश्यकता होती है. विद्या की सुरक्षा के लिए या उसे बचाने के लिए योग की अथवा अभ्यास की जरूरत होती है. ऐसा नहीं करने पर विद्या गौण हो जाती है और किसी काम नहीं आती. इसके अलावा राजा यानी प्रशासन के लिए मधुरता या कोमलता की आवश्यकता होती है. वहीं एक अच्छी महिला यानी गृहलक्ष्मी द्वारा घर की सुरक्षा होती है. धन से धर्म की रक्षा होती है, धन के बिना कोई धर्म का कार्य नहीं हो पाता. चाणक्य ये भी कहते हैं कि...

सुखस्य मूलं धर्म:। धर्मस्य मूलमर्थ:।।

यानी सुख का मूल धर्म है और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है. धर्म से अर्थ की भी प्राप्ति होती है, धर्म से सब कुछ मिल जाता है, धर्म ही इस संसार में सब कुछ है, सार है, इसलिए धर्म की रक्षा करनी चाहिए.

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