एकादशी व्रत का फल: व्रत से पहले जान लें ये जरूरी बातें, एकादशी की कथा..

एकादशी व्रत का फल: व्रत से पहले जान लें ये जरूरी बातें, एकादशी की कथा..

एकादशी व्रत का फल: एकादशी व्रत को ज्यादातर लोग करते हैं। इस व्रत को करने के क्या कारण है और ऐसी कौन सी सही विधि है जो एकादशी व्रत को सफल बनाती है!!

एकादशी व्रत के नियम:

ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। प्राचीन कथा के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया था और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। बाद में ऐसा माना गया कि चावल और जौ के रूप में ही महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जौ को शास्त्रों में भी एकादशी के दिन न खाने को कहा गया है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया।

उपवास के चमत्कार:

आध्यात्मिक रूप से माना जाता है कि व्रत का प्रभाव और उसका पूर्णरूप से लाभ प्राप्त होने पर मानसिक शुद्धि एवं सात्विक विचारों का उन्नयन होता है।

अतः सभी को शारीरिक क्षमता के अनुसार सप्ताह में एक दिन या एक पक्ष में एक दिन उपवास या व्रत अवश्य रखना चाहिए।




एकादशी व्रत क्यों करना चाहिए?

आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके भगवान विष्णु की भक्ति प्राप्त की थी।

वैष्णव के लिए यह सर्वोत्तम व्रत है एकादशी के व्रत में भी कुछ विधान का पालन किया जाता है इसमे वर्जित और पारण योग्य खाद्य पदार्थों का विशेष महत्व है जो कि निम्लिखित हैं।

एकादशी के व्रत के नियम:

एकदशी के व्रत में शरीर मे जल की मात्रा जितनी अल्प होगी उतना उत्तम माना जाता है,व्रत पूरा करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी और इस से मन नियंत्रित होता है अतः वर्ष में एक निर्जला एकादशी भी होती है।

एकादशी के व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।

एकदशी के व्रत में बैगन का सेवन करने से सन्तान कष्ट प्राप्त करती हैं।

इसमे अन्न किसी भी प्रकार का जैसे चावल, जौ, दाल, चना, गेंहू राजमा , मसूर, उर्द , सेम इत्यादि पूर्णतया वर्जित है।(चावल और जौ के विषय मे एक कथा भी है)

चावल जौ या अन्न के विषय में वैज्ञानिक तथ्य ये भी है कि इनके उपापचय में जल अधिक चाहिए और एकदशी में जल अल्प पीना चाहिए तो इनका सेवन न करना श्रेयस्कर है।

चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, अतः चावल खाने वर्जित है।

चावल को हविष्य अन्न कहा गया है, अर्थात ये देवताओं का भोजन है अतः साधारण मनुष्य को इसका सेवन नही करना चाहिए।

भगवान विष्णु को तुलसीदल प्रिय है अतः एकादशी को कभी भी तुलसीदल का सेवन नही करना चाहिए,।

पान को विलासिता से जोड़कर देखा जाता है और इसे खाने से विचार दूषित हो जाते है अतः इसका सेवन भूलवश भी न करना चाहिए।

एकादशी के दिन मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन जैसी तामसी चीजों का सेवन व्रतधारी और उसके परिवार को कदापि नही करना चाहिए।

इस दिन किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिया गया अन्न भी ग्रहण नहीं करें, इससे पुण्य नष्ट हो जाते है।

एकादशी में क्या खाएं, क्या न खाएं!

सर्वप्रथम ये प्रयास करना चाहिए कि कुछ न खाया जाए परन्तु सभी की शारिरिक क्षमता उतनी नही होती ,अतः व्रत में कुछ पदार्थ का सेवन सम्पूर्ण दिवस में एक बार किया जा सकता है।

केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।

दुग्ध का सेवन किया जा सकता है।

आलू ,शकरगन्दी, अरबी , कद्दू उबाल कर नमक डालकर ग्रहण कर सकते हैं

एकादशी व्रत कथा हिंदी:

माता के क्रोध से रक्षा के लिए महर्षि मेधा ने देह छोड़ दी थी, उनके शरीर के भाग धरती के अंदर समा गए,

कालांतर में वही भाग जौ और चावल के रुप में जमीन से पैदा हुए। कहा गया है कि जब महर्षि की देह भूमि में समाई, उस दिन एकादशी थी।

अतः प्राचीन काल से ही यह परंपरा शुरु हुई, कि एकादशी के दिन चावल और जौ से बने भोज्य पदार्थ नहीं खाए जाते हैं।

एकादशी के दिन चावल का सेवन महर्षि की देह के सेवन के बराबर माना गया है।

पूजा में, व्रत या उपवास में या आध्यात्मिक क्रिया का फल लेने के लिए आप के भाव की महत्ता है यदि आपके भाव उत्तम है तो फल भी उत्तम प्राप्त होगा अन्यथा कोई फल न मिलेगा।

Share this story