हर साल अनंत चतुर्दशी को वृन्दावन धाम में बाबा नीब करौरी जी का परिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है
बाबा नीब करौरी महाराज का महानिर्वाण दिवस आज
भक्तों के भगवान हनुमत् स्वरूप पूज्य बाबा नीब करौरी महाराज साधारण दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी संत रहे हैं। 51 साल पहले 11 सितंबर, 1973 अनंत चतुर्दशी तिथि को हजारों भक्तों की मौजूदगी में वृन्दावन धाम के परिक्रमा मार्ग पर स्थित बाबा नीब करौरी आश्रम में गुरुदेव ने जय जगदीश, जय जगदीश जय जगदीश कहकर देह त्याग कर दिया।
तभी से हर साल अनंत चतुर्दशी को वृन्दावन धाम में बाबा जी का परिनिर्वाण दिवस मनाया जाता है जिसमें स्थानीय भक्तों के अलावा,देश - दुनिया के भी हजारों भक्त आकर श्रद्धा भाव से श्रीरामचरितमानस पाठ, सामूहिक सुंदर कांड पाठ, भजन - कीर्तन, हवन - पूजन में शामिल होकर भंडारे में भोजन -प्रसाद गृहण करते हैं।
वृन्दावन धाम के नीब करौरी आश्रम में अनंत चतुर्दशी से तीन दिन पहले से ही भक्तों का आना शुरू हो जाता है। यह भक्त पूरे परिवार के साथ आकर आश्रम के कमरे, बरामदा व खुली जगह पर अपना बिस्तर डाल देते हैं और कई दिन रुक कर जाते हैं। बाबा जी का शरीर शांत होने के बाद उनके निर्जीव शरीर को इसी आश्रम में जलाया गया था। बाद में उसी स्थान पर चबूतरा बनाकर गुरुदेव महाराज की मूर्ति लगा दी गयी।
आज का समाधि स्थल वही स्थान है। इसके जिस चबूतरे पर गुरुदेव की मूर्ति लगी है वह सामान्य चबूतरा नहीं है, उसके नीचे बाबा जी का अस्थि कलश रखा है। भक्त मानते हैं कि वहां आज भी गुरुदेव महाराज का वास है। बाबा जी ने इस आश्रम में हनुमान जी का मंदिर बनवा कर उसमें वीर हनुमान जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई थी। जिसमें प्रति दिन सुबह - शाम पूजा - पाठ, आरती होती है और भक्तजन दर्शन भजन करते हैं। आश्रम में बाबा जी का ध्यान कक्ष भी है जिसमें भक्तजन सुंदर कांड व हनुमान चालीसा पाठ आदि करते और ध्यान लगाकर गुरुदेव का स्मरण करते हैं।
अनंत चतुर्दशी से एक दिन पहले आश्रम के बड़े बरामदे में श्रीरामचरितमानस का अखण्ड पाठ का श्रीआरम्भ होता है जिसका अनंत चतुर्दशी को दोपहर में समापन होता है। इसके बाद समाधि स्थल के पीछे बनी यज्ञशाला में हवन होता है जिसमें सैकड़ों भक्त आहुतियां देते हैं। आश्रम में अनंत चतुर्दशी का भंडारा देखने योग्य होता है।
पाकशाला के ऊपर पहली मंजिल के विशाल बरामदे में करीब पांच सौ भक्त एक साथ भोजन प्रसाद ग्रहण करते हैं जिसमें सबसे पहले पुरोहित ब्राह्मण, संत जन व विशेष अतिथि शामिल रहते हैं। दोपहर में शुरू भंडारा रात 12 बजे तक चलता है।
नरेश दीक्षित, संपादक, हनुमत कृपा पत्रिका, लखनऊ