Kevat Jayanti 2024: केवट कौन थे, क्यों मनाई जाती है इनकी जयंती

Kevat Bhagwan Ram Se Kaise Mile?

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Nishadraj Kaun The

Kevat Jayanti Pooja Vidhi

Ramayan Ayodhya Kand


Kevat Jayanti 2024: भारत में निषाद, केवट और मछुआरा समाज के लिए केवट जयंती मनाई जाती है. पंचांग के अनुसार इस वर्ष यह 15 मई को मनाई जाएगी। इस दिन को सभी राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. केवट कौन थे? इनकी जयंती क्यों मनाई जाती है? आइए जानते हैं इसके बारे में…

केवट कौन थे?

केवट रामायण का एक खास पात्र हैं, जिन्होंने भगवान श्रीराम को तमसा पार करवाया। उनका नाम गुहराज निषाद था. गुहराज निषाद ने अपनी नाव में भगवान श्रीराम को गंगा के उस पार उतारा था. निषादराज मछुआरों और नाविकों के मुखिया थे. श्री राम को जब वनवास हुआ तो सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर है. इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज का राज्य था. यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार कराने को कहा था.

क्यों मनाई जाती है केवट जयंती?

Nishadraj Kaun The, Kevat Jayanti Kab Hai: निषादराज निषादों के राजा का उपनाम नाम है. वे श्रृंगवेरपुर ( प्रयागराज ) के प्रमुख थे, उनका नाम महाराज गुहराज निषादराज था. वे निषाद समाज के थे और उन्होंने ही भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी को गंगा पार करवाया था. वनवास के बाद भगवान राम अपनी पहली रात अपने मित्र निषादराज के घर विश्राम किया था. इनकी जयंती वैशाख मास में शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन मनाई जाती है. इस वर्ष यह 15 मई को मनाई जाएगी। निषाद समाज आज भी निषादराज की पूजा करते हैं. निषाद समाज को ही कहार, भोई, केवट और मछुआरा कहते हैं.

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केवट जयंती के दिन क्या किया जाता है?

Kevat Jayanti Pooja Vidhi: इस दिन बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है. इस दिन चल समारोह निकाला जाता है. केवट समाज के लोग श्रीराम के साथ गुहराज निषाद की पूजा करते हैं. केवट जयंती के दिन भगवान राम की मंदिर से जगह-जगह जुलूस निकाला जाता है. केवट समाज के लोग अपने समाज और विश्व कल्याण का आशीर्वाद मांगते हैं. जुलूस समाप्ति के बाद निषादराज की पूजा की जाती है अंत में उनको भोग लगाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण किया जाता है.

अयोध्या कांड में वर्णित हैं निषादराज

Ramayan Ayodhya Kand: गुहराज निषाद का वर्णन रामायण के अयोध्याकांड में भी किया गया है- मांगी नाव न केवटु आना. कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।। चरन कमल रज कहुं सबु कहई. मानुष करनि मूरि कछु अहई. अर्थात भगवान श्री राम ने केवट से नाव मांगी, पर वह नहीं लेकर आता है. वह कहने लगा कि मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया है. तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि आप मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी हैं. इसके उसने कहा कि पहले पांव धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़ाऊंगा।

अपना वचन नहीं भूले भगवान

Kevat Jayanti Kyon Manai Jati Hai जब भगवान श्रीराम को निषादराज ने नदी पार करवाई तो माता तो भगवान के पास पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था, तभी माता सीता ने स्वामी के सम्मान के लिए अपनी अंगूठी उतारी और केवट को दिया। लेकिन गुहराज ने मना कर दिया। तब श्री राम ने पूछा कि हे बंधु तुम्हें क्या चाहिए, तभी निषादराज ने कहा कि हे भगवन आप हमें भी अपने साथ वन को ले चलें। तब प्रभु ने उन्हें न जाने के लिए मनाया। इसके बाद निषादराज ने कहा कि आप वचन दीजिए कि जब आप वनवास पूरा करके लौटेंगे तो आप हमारी कुटिया में विश्राम करेंगे।

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भगवान ने गुहराज की बात स्वीकार की और जब वनवास पूरा कर अयोध्या लौट रहे थे तो उन्होंने अपना वचन निभाया। निषादराज की प्रभु के प्रति इस भक्ति ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया। आज केवट समाज के लोग उनकी पूजा करते हैं और उनका जन्मोत्सव मनाते हैं.

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