क्या है खास 24 जनवरी को पुत्रदा एकादशी व्रत में ? व्रत कथा और विधि

क्या है खास 24 जनवरी को पुत्रदा एकादशी व्रत में ? व्रत कथा और विधि

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (paush putrda ekadashi vrat katha) को पौष शुक्ल एकादशी(paush shukla ekadashi ) को पुत्रदा एकादशी कहा गया है।

वर्ष 2021 में पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी, रविवार को पड़ रही है। नि:संतान दंपत्ति के लिए यह व्रत काफी लाभदायक बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से व्रती को योग्य संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद स्वर्ग मे स्थान प्राप्त होता है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। प्रात: स्नान करके पूजन और उपवास करना चाहिए। भगवान विष्णु (शालिग्राम) को गंगाजल से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए। पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। भगवान नारायण के साथ लक्ष्मी जी की साधना भी करनी चाहिए। इस दिन बाल गोपाल की पूजा भी लाभकारी मानी जाती है।

क्यों रखते हैं पुत्रदा एकादशी का व्रत ?

दरअसल इस व्रत के नाम के जैसा ही इससे प्राप्त होने वाला फल है। जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती है अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके। इस व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा भी होती है। । इस व्रत की खास बात यह है कि यह स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से फल देता है।

पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा

भद्रावती नगर में राजा सुकेतुमान व उनकी पत्नी शैव्या निवास करते थे। इस दंपत्ति को कोई संतान नहीं थी। दोनों को दिन-रात यह चिंता सताती थी कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अग्नि कौन देगा। इसी चिंता में दोनों दिन-रात दुखी रहते थे। एक दिन राजा दुखी मन से वन में गए। राजा को वन में प्यास लगी। कुछ दूर भटकने पर उन्हें एक सरोवर दिखा। सरोवर के पास पहुंचने पर राजा ने देखा कि वहां कुछ दूरी पर ऋषियों के आश्रम बने हुए हैं। वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। राजा ने सरोवर से पानी पीया। प्यास बुझाकर राजा ने सभी मुनियों को प्रणाम किया। ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि हम आपसे प्रसन्न हैं। राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा। तब उनमें से एक मुनि ने कहा कि वह विश्वदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आए हैं। राजा को ऋषियों ने बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है, जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है। राजा ने मुनियों के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत आरंभ किया और अगले दिन द्वादशी को पारण (व्रत खोला) किया। व्रत के प्रभाव स्वरूप कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हुईं और इन्हें योग्य संतान की प्राप्ति हुई।

पुत्रदा एकादशी व्रत विधि :

-पूरे दिन उपवास रहकर शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करना चाहिए।

-इस दिन दीप दान करने का भी महत्व है।

-पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत से पूर्व यानी दशमी के दिन एक ही वक्त भोजन करना चाहिए। भोजन भी सात्विक करना चाहिए।

-व्रत के दौरान संयमित और ब्रह्मचर्य के नियम का पालन करना चाहिए।

-प्रात: स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर गंगा जल, तुलसी, तिल, फूल और पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

-व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण (व्रत खोलना) करना चाहिए।

-संतान की इच्छा के लिए पति-पत्नी को प्रात:काल संयुक्त रूप से भगवान श्री कृष्ण की उपासना करनी चाहिए।

-इस दिन संतान गोपाल मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।

तत्पश्चात् प्रसाद ग्रहण कर गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन कराना और दक्षिणा देना चाहिए।

ॐनमो नारायणाय सुरेन्द्र शास्त्री

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