यदि रखा है संतोषी माता का व्रत, तो भूलकर भी न करें ये गलतियां

यदि रखा है संतोषी माता का व्रत, तो भूलकर भी न करें ये गलतियां

संतोषी माता का व्रत (santoshi mata ka vrat शुक्रवार (shukrawar) के दिन किया जाता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक संतोषी माता (santoshi mata vrat ke fayde) के 16 व्रत यदि कोई भक्त कर ले तो उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं. साथ ही घर में सुख-शांति और वैभव आता है. परंतु, इस व्रत के नियम बहुत कठिन हैं. मान्यता है कि अगर कोई व्रती नियमों (santoshi mata vrat niyam) का उल्लंघन करे तो उसे इसके विपरीत प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं.

संतोषी माता का व्रत (santoshi mata vrat ke labh) रखने वाले के लिए खट्टी चीजें जैसे अचार, दही, टमाटर या अन्य कोई चीज छूना और खाना पूर्णतः निषेध है. यहां तक कि प्रसाद खाने वाले लोगों के लिए भी खट्टी चीजें खाने की मनाही है. इस नियम का कायदे से पालन करना जरूरी होता है. मान्यता है कि यदि व्रती या प्रसाद खाने वाले लोग शुक्रवार के दिन खटाई खाएं तो माता नाराज हो जाती हैं और घर में अशांति होती है और कई तरह के नुकसान होते हैं. इसलिए अगर आप ये व्रत रख रही हैं तो इस नियम को भूलकर भी न तोड़ें. आगे जानिए संतोषी माता व्रत कैसे करें (santoshi mata vrat kaise rakhen)....

संतोषी माता व्रत-विधि (Santoshi Mata Vrat Vidhi)

सूर्योदय (suryoday)से पूर्व उठकर घर की सफाई कर स्नानादि (bathing) से निवृत्त हो जाएं. घर के ही किसी पवित्र स्थान पर संतोषी माता (santoshi mata vrat kab karen) की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. संपूर्ण पूजन सामग्री के साथ किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें. जल भरे पात्र पर गुड़ और चने से भरकर दूसरा पात्र रखें. इसके बाद संतोषी माता (santoshi mata puja vidhi) की विधि विधान से पूजा करें. फिर व्रत कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद आरती कर सभी को गुड़ चने का प्रसाद बांटें. अंत में बड़े पात्र में भरे जल को घर में जगह जगह छिड़क दें और बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें. इसी तरह 16 शुक्रवार (16 shukrawar) तक व्रत रखें.

16वें शुक्रवार को उद्यापन (shukrawar vrat udyapan)

अंतिम शुक्रवार यानी 16वें शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना होता है. इस दिन हर बार की तरह संतोषी माता की पूजा (santoshi mata vrat vidhi) करने के बाद आठ या 16 बच्चों को खीर पूरी का भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिणा और केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. आखिर में स्वयं भोजन खाएं.

संतोषी माता व्रत कथा (Santoshi mata vrat katha)

धार्मिक मान्यता है कि इस कथा पढ़े बिना संतोषी माता का व्रत (santoshi mata ka vrat in hindi) अधूरा होता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बुढ़िया थी। उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी।(Santoshi mata vrat kaise rakhe) यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी नहीं कह पाता। बहू दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता।

काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला- 'मां, मैं परदेस जा रहा हूं।' मां को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा हूं।(benefits of santoshi mata vrat) अपनी कुछ निशानी दे दो।' बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई। वहां उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं।(santoshi mata vrat katha) इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना।

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी।(santoshi mata vrat me kya khaye) माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- 'संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है।' अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- 'हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी।' (Shukrawar Vrat Katha)

अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है।(Shukrawar Vrat Katha in hindi) उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी। पर सेठ ने इंकार कर दिया।(santoshi mata ki puja vidhi) मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए।(santoshi mata ki puja samagri) अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की। पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे। तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे।(Shukrawar Vrat kaise kare) तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।(Santoshi Ma Ki Aarti) संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका कर राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौ माह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।

संतोषी माता आरती (Santoshi mata)

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।

अपने सेवक जन को, सुख सम्पत्ति दाता॥

जय सन्तोषी माता॥

सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हों।

हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार कीन्हों॥

जय सन्तोषी माता॥

गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे।

मन्द हंसत करुणामयी, त्रिभुवन मन मोहे॥

जय सन्तोषी माता॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरें प्यारे।

धूप दीप मधुमेवा, भोग धरें न्यारे॥

जय सन्तोषी माता॥

गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।

सन्तोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो॥

जय सन्तोषी माता॥

शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही।

भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही॥

जय सन्तोषी माता॥

मन्दिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई।

विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई॥

जय सन्तोषी माता॥

भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै।

जो मन बसै हमारे, इच्छा फल दीजै॥

जय सन्तोषी माता॥

दुखी दरिद्री, रोग, संकट मुक्त किये।

बहु धन-धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिये॥

जय सन्तोषी माता॥

ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो॥

जय सन्तोषी माता॥

शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदम्बे।

संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे॥

जय सन्तोषी माता॥

सन्तोषी माता की आरती, जो कोई जन गावे।

ऋद्धि-सिद्धि, सुख-सम्पत्ति, जी भरकर पावे॥

जय सन्तोषी माता॥

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