Mangalsutra Benefits In Hindi : शादी के बाद मंगलसूत्र क्यों पहना जाता है?
Mangalsutra Benefits
मंगलसूत्र कैसा होना चाहिए
Manalsutra Ka Itihas In Hindi
सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही मंगलसूत्र को विवाह का प्रतीक माना गया है. शायद यही वजह है कि शादी के बाद सुहागिन महिलाएं श्रद्धा पूर्वक अपने गले में मंगलसूत्र पहनती हैं. क्यूंकि मंगलसूत्र सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत प्रिय माना जाता है. वहीँ मंगलसूत्र को लेकर धार्मिक मान्यता है की सुहागिन महिलाओं के लिए मंगलसूत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है. और ज्योतिष गणना के मुताबिक मंगलसूत्र के पीछे कई चमत्कारी गुण भी मौजूद हैं. लेकिन आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे कि एक पत्नी मंगलसूत्र से कैसे अपने पति की रक्षा करती है. तो आइये इस रिपोर्ट में जानते हैं .
मंगलसूत्र का आविष्कार कब हुआ था?
आपने उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर विवाहति हिंदू महिला के गले में मंगलसूत्र जरूर देखा होगा, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि, जिस मंगलसूत्र को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है, वह आखिर आया कहां से, इसे कब से पहना जा रहा है, इसका धार्मिक या पौराणिक महत्व क्या है और स्त्रियों को इसे क्यों और कैसे पहनना चाहिए. आइये जानते हैं....
भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह
शास्त्रों के मुताबिक , हिंदू धर्म में मंगलसूत्र की शुरुआत शिव-पार्वती से हुई. जब शिवजी का शादी पार्वती से हो रही थी. तब उन्हें माँ सती की याद आई, उन्हें वो सारे दृश्य याद आने लगे जब सती ने हवन की अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण दे दिए थे. इसलिए भगवान शिव ने पार्वती की रक्षा के लिए पीले धागे में काले मोतियों का एक रक्षा सूत्र बांधकर पहनाया था. इसका पीला भाग मां पार्वती और काले मोतियों को शिव का प्रतीक माना जाता है. और उसके बाद से ही हिंदू धर्म में विवाह के बाद मंगलसूत्र पहनने की परंपरा बन गई.
मंगलसूत्र किसका प्रतीक है?
आपको बता दें की मंगलसूत्र को वैवाहिक जीवन का रक्षा कवच माना जाता है. मंगलसूत्र का वर्णन आदि गुरु शंकराचार्य की पुस्तक ‘सौदर्य लहरी’ में भी देखने को मिलता है. मंगलसूत्र को लेकर हर जगह अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं. उसमे एक मान्यता यह भी है कि, मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं, जोकि ऊर्जा का प्रतीक मने गए हैं है और मां भगवती के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं इतिहासकारों के मुताबिक मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत, छटवीं शताब्दी से हुई. क्योंकि इसके साक्ष्य, मोहन जोदाड़ों की खुदाई में भी मिले हैं.
जानकारी के मुताबिक, मंगलसूत्र सबसे पहले दक्षिण भारत में पहना जाता था और धीरे-धीरे पूरे भारत में इसे पहना जाने लगा. अब तो केवल भारत ही नहीं, बल्कि बाकी देशों में भी शादी के बाद इसे पहनने का रिवाज बन गया है. हिंदू धर्म में शादी के बाद हर स्त्री अपने गले में मंगलसूत्र पहनती है. मान्यतानुसार इसे पति की लंबी आयु और सुहाग की रक्षा से जोड़ा जाता है. साथ ही यह पति-पत्नी के रिश्ते को भी बुरी नजरों से भी बचाकर रखता है. लेकिन मंगलसूत्र का खो जाना या टूट जाना बहुत ही अपशकुन माना गया है.
मंगलसूत्र पहनने से क्या लाभ होता है?
ऐसा माना जाता है की मंगलसूत्र पहनने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत हो जाते हैं और आपका मंगल दोष दूर होता है. मंगलसूत्र अधिकतर सोने का ही पहना जाता है. ज्योतिष के मुताबिक सोने का संबंध बृहस्पति से है और बृहस्पति सुखी और खुशहाल वैवाहिक जीवन के कारक ग्रह माने गए हैं. वहीं सोना पहनने से सूर्य भी बहुत मजबूत होते हैं. वहीँ मंगलसूत्र की काली मोतियों का संबंध शनि से होता है. शनि, जोकि स्थायित्व के प्रतीक हैं. ऐसे में सोने और काली मोतियों का मंगलसूत्र पहनने से सूर्य, गुरु और शनि का शुभ प्रभाव आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है.
मंगलसूत्र कैसे होना चाहिए?
वैसे आजकल फैशन के तौर पर कई तरह के मंगलसूत्र बनने लगे हैं. वहीँ महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, मंगलसूत्र में सोने का पैंडेट और काली मोतियों का होना आवश्यक है. साथ ही मंगलसूत्र को कभी कपड़ों में छिपाकर नहीं पहनना चाहिए. इसके साथ ही सुहागिन महिलाएं इस बात का भी ध्यान रखें कि, हिंदू परंपरा में पति के जीवित रहते हुए मंगलसूत्र उतारने का कोई विधान नहीं है. आप सूतक, पातक, ग्रहण या माहवारी आदि के समय भी इसे गले में पहन सकते हैं. यह कभी भी अशुद्ध नहीं माना जाता है...