Shitalashtami Vrat June 2024: शीतलाष्टमी व्रत कब है? जानें सही डेट, मुहूर्त और इसका महत्व 

Shitalashtami Vrat June 2024:  शीतलाष्टमी का पर्व माता शीतला को समर्पित है. इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है, साथ ही बासी भोजन का भोग चढ़ाया जाता है.
Shitalashtami vrat 2024

Shitalashtami Vrat June 2024:  शीतलाष्टमी का पर्व माता शीतला को समर्पित है. इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है, साथ ही बासी भोजन का भोग चढ़ाया जाता है. आइए जानते हैं इस व्रत का मुहूर्त और महत्व

Shitalashtami Vrat: देवी शीतला को चेचक रोग की देवी माना जाता है. हिंदू धर्म में शीतलाष्टमी का विशेष महत्व है. हिन्दू पंचांग के अनुसार जून माह में यह पर्व 29 जून को मनाया जाएगा। शीतलाष्टमी पर की सबसे अहम बात यह है कि इस दिन देवी को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. इसके लिए एक दिन पहले यानी कि सप्तमी की रात्रि को ही देवी का प्रसाद तैयार कर लिया जाता है. और अष्टमी दिन दिन उन्हें अर्पित किया जाता है. इस पर्व को बसोरा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। माता शीतला के प्रकाट्य का कारण सभी ग्रंथों में अलग-अलग माना गया है. 

शीतलाष्टमी जून 2024 व्रत मुहूर्त

  Shitalashtami Vrat June 2024 Muhurat: जून महीने में शीतलाष्टमी का व्रत 29 तारीख को रखा जाएगा। इसके लिए एक दिन पहले से ही पूजा की तैयारी शुरू कर दी जाएगी। इस तिथि का शुभ मुहूर्त 28 जून की शाम 7 बजकर 34 मिनट में शुरू होकर अगले दिन यानी कि 29 जून को शाम 6 बजकर 12 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। व्रत की तारीख 29 जून ही रहेगी। 

शीतलाष्टमी पूजा विधि 

Shitalashtami Vrat Puja Vidhi:  शीतलाष्टमी के दिन सुबह सभी कार्यों से निवृत होकर ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा की थाली में एक दिन पहले बनाए हुए पकवान, मिठाई आदि को रख लें, साथ ही आटे की दीया, रोली, हल्दी, वस्त्र, मेहंदी, सिक्के आदि रख लें. इसके बाद माता की आरती करें। देवी की पूजा कर उनको भोग लगाएं। इसके बाद गाय को भोजन देकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करें। 

शीतलाष्टमी व्रत का महत्व 

Shitalashtami Vrat Mahatwa: शीतलाष्टमी का व्रत रखने से माता शीतला जातक के सभी प्रकार के रोगों का नाश करती हैं. इस दिन देवी की बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, जिसे बसोरा कहा जाता है. शीतलाष्टमी के दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते हैं, इस दिन के लिए एक दिन पहले से ही भोजन तैयार कर लिया जाता है और भक्त गण पूरी भक्ति के साथ इस प्रसाद को वितरित कर स्वयं उसे ग्रहण करते हैं. बता दें  शीतलाष्टमी का पर्व चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में अष्टमी तिथि को ही मनाया जाता है. 

शीतलाष्टमी व्रत कथा

Shitalashtami Vrat Katha: एक बार एक बूढ़ी औरत के घर उसके दो बहुओं को संतान प्राप्ति हुई. इस खुशी में सास और बहुओं ने मिलाकर माता शीतला को खुशी होकर बासी चावल अर्पित किए. लेकिन अगली सुबह उसकी दोनों बहुओं ने स्वयं के लिए ताजा चावल पकाकर खाया। यह बात जब बूढ़ी सास को पता चली तो वह अपने बहुओं पर बहुत क्रोधित हुई और घर से बाहर निकल दिया। बहुओं की इस गलती की वजह से उनके बच्चों की भी मृत्यु हो गई. घर से बाहर निकालने के बाद दोनों बहुएं जंगल की ओर निकल गईं. जंगल में उन्हें शीतला नाम की महिला मिली जो अपने सिर के जुओं से परेशान होकर बैठी थी. तभी दोनों बहुओं ने दया कर शीतला के बाल के जुएं हटाने लगीं। तभी शीतला ने उनसे उनकी समस्या पूछी। तब दोनों बहुओं ने उनसे अपनी समस्या बताई। शीतला ने कहा कि तुम दोनों ने बासी चावल चढ़ाकर स्वयं ताजा चावल खाया इसलिए तुम्हारे बच्चों की मृत्यु हो गई. देवी शीतला उन दोनों की भक्ति देखकर बच्चों को जीवित कर दिया और बताया कि मेरी पूजा में हमेशा बासी भोजन ही चढ़ाना। तभी से लोग देवी शीतला को बासी भोजन अर्पित करने लगे. 

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