Pitra paksh 2021 श्राद्ध का वैज्ञानिक महत्व क्यों 15 दिन की जाती है पितरों की पूजा ,पिंड दान विधि

Shradh kyon karte hain

 पितृ पक्ष के श्राद्ध का वैज्ञानिक महत्व ,जानिए पितृ कौन होते हैं और क्यों की जाती है इनकी पूजा ,तर्पण विधि 

श्राद्ध और पितृपक्ष का वैज्ञानिक महत्व
सात पीढ़ियों का होता है सबका संबंध

राजेन्द्र तिवारी

श्राद्ध का वैज्ञानिक  आधार 
Piyra paksh shradh rituals श्राद्ध कर्म श्रद्धा का विषय है। यह पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा प्रकट करने का माध्यम है। श्राद्ध आत्मा के गमन जिसे संस्कृत में प्रैति कहते हैं, से जुड़ा हुआ है। प्रैति ही बाद में बोलचाल में प्रेत बन गया।

आचार्य प्रदीप तिवारी का कहना है कि  यह कोई भूत-प्रेत वाली बात नहीं है। शरीर में आत्मा के अतिरिक्त मन और प्राण हैं। आत्मा तो कहीं नहीं जाती, वह तो सर्वव्यापक है, उसे छोड़ दें तो शरीर से जब मन को निकलना होता है, तो मन प्राण के साथ निकलता है। प्राण मन को लेकर निकलता है। प्राण जब निकल जाता है तो शरीर को जीवात्मा को मोह रहता है। इसके कारण वह शरीर के इर्द-गिर्द ही घूमता है, कहीं जाता नहीं। शरीर को जब नष्ट किया जाता है, उस समय प्राण मन को लेकर चलता है। मन कहाँ से आता है? कहा गया है चंद्रमा मनस: लीयते यानी मन चंद्रमा से आता है। 
यह भी कहा है कि चंद्रमा मनसो जात: यानी मन ही चंद्रमा का कारक है। इसलिए जब मन खराब होता है या फिर पागलपन चढ़ता है तो उसे अंग्रेजी में ल्यूनैटिक कहते हैं। ल्यूनार का अर्थ चंद्रमा होता है और इससे ही ल्यूनैटिक शब्द बना है। मन का जुड़ाव चंद्रमा से है। इसलिए हृदयाघात जैसी समस्याएं पूर्णिमा के दिन अधिक होती हैं।

चंद्रमा वनस्पति का भी कारक है। रात को चंद्रमा के कारण वनस्पतियों की वृद्धि अधिक होती है। इसलिए रात को ही पौधे अधिक बढ़ते हैं। दिन में वे सूर्य से प्रकाश संश्लेषण के द्वारा भोजन लेते हैं और रात चंद्रमा की किरणों से बढ़ते हैं। वह अन्न जब हम खाते हैं, उससे रस बनता है। रस से अशिक्त यानी रक्त बनता है। रक्त से मांस, मांस से मेद, मेद से मज्जा और मज्जा के बाद अस्थि बनती है। अस्थि के बाद वीर्य बनता है। वीर्य से ओज बनता है। ओज से मन बनता है। इस प्रकार चंद्रमा से मन बनता है। इसलिए कहा गया कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन। मन जब जाएगा तो उसकी यात्रा चंद्रमा तक की होगी। दाह संस्कार के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा, मन उसी ओर अग्रसर होगा। प्राण मन को उस ओर ले जाएगा। चूंकि  इसलिए चंद्रमा फिर से उसी नक्षत्र में आ जाता   है।

श्राद्ध में आंटे का दिया क्यों प्रयोग करते हैं ?

चंद्रमा सोम का कारक है। इसलिए उसे सोम भी कहते हैं। सोम सबसे अधिक चावल में होता है। धान हमेशा पानी में डूबा रहता है। सोम तरल होता है। इसलिए चावल के आटे का पिंड बनाते हैं। तिल और जौ भी इसमें मिलाते हैं। इसमें पानी मिलाते हैं, घी भी मिलाते हैं। इसलिए इसमें और भी अधिक सोमत्व आ जाता है। हथेली में अंगूठे और तर्जनी के मध्य में नीचे का उभरा हुआ स्थान है, वह शुक्र का होता है। शुक्र से ही हम जन्म लेते हैं और हम शुक्र ही हैं, इसलिए वहाँ कुश रखा जाता है। कुश ऊर्जा का कुचालक होता है। श्राद्ध करने वाला इस कुश रखे हाथों से इस पिंड को लेकर सूंघता है। चूंकि उसका और उसके पितर का शुक्र जुड़ा होता है,  उसे श्रद्धाभाव  उसे आकाश ओर देख कर पितरों  गमन उन्हें मानसिक  से उन्हें समर्पित करता है और पिंड को जमीन पर गिरा देता इससे पितर फिर से ऊर्जावान महसूस करते हैं ।
पिंडदान क्या होता है 
पिंडदान कराते समय पंडित लोग केवल तीन ही पितरों को याद करवाते हैं। वास्तव में सात पितरों को स्मरण करना चाहिए। हर चीज सात हैं। सात ही रस हैं, सात ही धातुएं हैं, सूर्य की किरणें भी सात इसीलिए सात जन्मों की बात कही गई है। पितर भी सात हैं। उसका पिता, पितामह, प्रपितामह, वृद्ध पितामह, अतिवृद्ध पितामह और सबसे बड़े वृद्धातिवृद्ध पितामह, ये सात पीढियां होती हैं। इनमें से वृद्धातिवृद्ध पितामह का एक अंश, अतिवृद्ध पितामह का तीन अंश, वृद्ध पितामह का छह अंश, प्रपितामह का दस अंश, पितामह का पंद्रह और पिता का इक्कीस अंश व्यक्ति को मिलता  इसमें उसका स्वयं का अर्जित है, वृद्धातिवृद्ध पितामह का एक अंश उसे चला जाता है और उनकी मुक्ति हो जाती है।

15 दिन क्यों करते हैं श्राद्ध 

 इससे अतिवृद्ध पितामह अब वृद्धातिवृद्ध पितामह हो जाएगा। पुत्र के पैदा होते ही सातवें पीढ़ी का एक व्यक्ति मुक्त हो गया। इसीलिए सात पीढिय़ों के संबंधों की बात होती है।
385000 कि.मी. की दूरी पर है। हम जिस समय पितृपक्ष मनाते हैं, यानी कि आश्विन महीने के पितृपक्ष में, उस समय पंद्रह दिनों तक चंद्रमा पृथिवी के सर्वाधिक निकट यानी कि लगभग 381000 कि.मी. पर ही रहता है। उसका परिक्रमापथ ही ऐसा है कि वह इस समय पृथिवी के सर्वाधिक निकट होता है। इसलिए कहा जाता है कि पितर हमारे निकट आ जाते हैं। शतपथ ब्राह्मण में कहा है विभु: उध्र्वभागे पितरो वसन्ति यानी विभु अर्थात् चंद्रमा के दूसरे हिस्से में पितरों का निवास है। चंद्रमा का एक पक्ष हमारे सामने होता है जिसे हम देखते हैं। परंतु चंद्रमा का दूसरा पक्ष हम कभी देख नहीं पाते। इस समय चंद्रमा दक्षिण दिशा में होता है। दक्षिण दिशा को यम का घर माना गया है।

पितृ पक्ष के श्राद्ध के पिंडदान में न करे यह गलतियां

पित्र पक्ष के श्राद्ध में कहा गया है कि 7 दिन पिंडदान का महत्व है और आजकल के समय में कुछ लोग तीन और चार दिनों में ही पीने दाम करके समाप्त कर देते हैं जो कि गलत है ।

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