कुछ ऐसी आदतें जो बताती हैं कि शनि की दृष्टि है आप पर
आस्था का नया नाम श्री सिद्धपीठ शनि धाम (बक्शी तालाब)......
शनि वह ग्रह जिसे न्याय देवता भी कहा जाता है। शनिदेव का नाम लेते ही जन मानस में भ्रम या भय की स्थित उत्पन्न हो जाता है, ऐसा कहा जाता है कि शनि की छाया भी जातक के लिए काफी पीड़ादायक होती है! इन्हीं तमाम भ्रांतियों पर श्री सिद्धपीठ शनि धाम के महंत व पुजारी श्री नरेश चंद्र रुवाली से बात की!
इसकी स्थापना के बारे में बताते हुए रुवाली कहते हैं कि श्री सिद्धपीठ शनि धाम की स्थापना वर्ष 2011 में हुई थीं, हरिद्बार निवासी श्री रुवाली यहां स्थापना काल से ही व्यवस्था संभाल रहे हैं। वह कहते हैं कि शनि सिग्नापुर के अलावा आपको कहीं भी शनि की ऐसी अनुभूति नहीं होगी। वह कहते हैं कि उप्र में आपको कहीं भी शनि का शक्तिपीठ नहीं मिलेगा। यहां शनि सिग्नापुर की ही तर्ज पर नीले आकाश के तले खुले में शनि महाराज की स्थापना की गयी है। शनि सिगनापुर से लाए गये श्री यंत्र श्री शनिदेव प्रतिमा के नीचे स्थान पर स्थापित की गयी है जो शनि सिग्नापुर से मंत्रित एवं पूजित करके लायी गयी हैं। यहां भी शनि सिग्नापुर की तर्ज पर ही सारे कार्य होते हैं।
शनि के बारे में पूछने पर श्री रुवाली कहते हैं कि ऐसा नहीं है लोगों के मन भ्रांतियां है शनि सबसे प्रिय और न्यायप्रिय ग्रह हैं जो प्रकृति की व्यवस्था को संभालते हैं हाँ यदि आपने गलत, अत्याचार, अनाचार, पाप किया है तो आपको उसका दंड मिलेगा ही। यदि इसे आप गलत कहते हैं तो शनिदेव का क्या दोष ? श्री रुवाली कहते हैं कि शनि कभी किसी का बुरा नहीं करते। उनकी दृष्टि में इतना तेज है कि हम उनसे नजरें नहीं मिला सकते। लेकिन यदि हम सही पथ पर चलते हैं तो शनि हमेशा हम पर कृपा बनाये रखते हैं। गुरूजी कहते हैं कि यहां पर सिर्फ शनि ही नहीं बल्कि श्री सिद्धपीठ माँ बंग्लामुखी, साईंबाबा, पशुपतिनाथ और बजरंग बली हनुमान जी मौजूद हैं। यहां पर श्रद्धालु सभी के दर्शन कर सकते हैं।
श्री रुवाली कहते हैं कि आप
अपनी आदतों से भी जान सकते हैं कि शनिदेव की कितनी कृपा आप पर है।
सूर्य के पुत्र शनि उन ग्रहों में से हैं जिनकी क्रूर दृष्टि किसी को बर्बाद कर सकती है, लेकिन उनकी अच्छी दृष्टि अगर किसी पर एक बार पड़ जाए तो उसके सारे काम बन जाते हैं और उसके घर कभी दरिद्रता नहीं आती। शनिदेव सूर्य से काफी दूरी पर हैं और यही कारण है कि शनि प्रकाशहीन हैं। भगवान शनि के प्रकाशहीन होने की वजह से कई लोग उन्हें निर्दयी, क्रोधी, भावहीन और उत्साहहीन भी मान लेते हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि शनि अगर किसी से प्रसन्न होते हैं तो उसे वैभव और धन से भर देते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक शनि का अप्रसन्न होने का अर्थ है मुसीबतों का मार्ग खुलना, लेकिन कैसे जानें कि शनि आपसे प्रसन्न हैं या अप्रसन्न? आपको जानकर हैरानी होगी कि रोजाना जीवन में आपकी कुछ आदतों से पता चलता है कि शनि भगवान आप पर प्रसन्न हैं।
जी हैं, ये कुछ ऐसी आदतें हैं जो इस बात का इशारा करती हैं कि शनि की कृपा आप पर अभी है और उनकी कृपा से आप आगे के जीवन में धन-समृद्धि सफलता पाएंगे। इसलिए अगर ये आदतें बिगड़ने लगें तो समझें कि निकट भविष्य में आप शनि के कोप का भाजन बन सकते हैं और आपको मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग रोज अपने नाखून काटते हैं और उन्हें साफ भी रखते हैं, शनि ऐसा करने वालों का हमेशा खयाल रखते हैं। इसलिए अचानक अगर आप अपने नाखून काटने में आलस करने लगें या आपके नाखून गंदे रहने लगें तो समझें कि आपको शनि दशा सुधारने के लिए उपाय करने चाहिए।
अगर आपका दिल गरीबों, जरूरतमंदों को देखकर पसीज जाता है और हर पर्व-त्यौहार पर या गरीब जरूरतमंद की आप हमेशा मदद करते हैं तो समझें शनिदेव की आप पर विशेष कृपा है। ऐसे लोग पौष माह में गरीबों को काले चने, काले तिल उड़द दाल और काले कपड़े सच्चे मन से दान करते हैं, इसलिए शनिदेव भी उनका सदैव कल्याण करते हैं।
जेष्ठा माह में धूप से बचने के लिए काले छाते दान करने वालों पर शनिदेव की छत्र-छाया हमेशा बनी रहती है। जब आपकी यह आदत बदलने लगे तो समझें शनिदेव कुपित हो रहे हैं आपसे। कुत्तों की सेवा करने वालों से भगवान शनि हमेशा प्रसन्न होते हैं। कुत्तों को खाना देने वालों और उनको कभी ना सताने वालों के शनिदेव सभी कष्ट दूर करते हैं। इसलिए अगर आपको भी ऐसी आदतें हैं तो जीवन में शनि कोप से मिलने वाली मुश्किलों से हमेश बचे रहेंगे।
किसी भी नेत्रहीन व्यक्ति को राह दिखाना, उनकी मदद करना शनि को खुश करने में सहायक सिद्ध होता है। जो लोग भी नेत्रहीन लोगों की अनदेखी नहीं करते, उनकी नि:स्वार्थ मदद करते हैं, शनिदेव उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उनकी सफलता-उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
शनिवार का उपवास रखकर अपने हिस्से का भोजन गरीबों को देने की आदत है तो समझें शनि की कृपा से अन्न के भंडार आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे।
शनिदेव जन्म कथा
बक्शी का तालाब स्थित श्री सिद्धपीठ शनिधाम के महंत श्री नरेश चंद्र रुवाली बताते हैं कि श्री शनैश्वर देवस्थान के अनुसार शनिदेव की जन्म गाथा या उत्पति के संदर्भ में कई मान्यतायें हैं। इनमें सबसे अधिक प्रचलित गाथा स्कंध पुराण के काशीखण्ड में दी गई है। इसके अनुसार सूर्यदेवता का ब्याह दक्ष कन्या संज्ञा के साथ हुआ। वे सूर्य का तेज सह नहीं पाती थी। तब उन्होंने विचार किया कि तपस्या करके वे भी अपने तेज को बढ़ा लें या तपोबल से सूर्य की प्रचंडता को घटा दें। सूर्य के द्बारा संज्ञा ने तीन संतानों को जन्म दिया, वैवस्वत मनु, यमराज, और यमुना।
संज्ञा बच्चों से भी बहुत प्यार करती थी। एक दिन संज्ञा ने सोचा कि सूर्य से अलग होकर वे अपने मायके जाकर घोर तपस्या करेंगी और यदि विरोध हुआ तो कही दूर एकान्त में जाकर अपना कर्म करेंगी। इसके लिए उन्होंने तपोबल से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को जन्म दिया, जिसका नाम 'सुवर्णा' रखा।
उसे अपने बच्चोँ की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चों का पालन भी करोगी। कोई आपत्ति आ जाये तो मुझे बुला लेना, मगर एक बात याद रखना कि तुम छाया हो संज्ञा नहीं यह भेद कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए। इसके बाद वे अपने पीहर चली गयीं। जब पिता ने सुना कि सूर्य का ताप तेज सहन ना कर सकने के कारण वे पति से बिना कुछ कहे मायके आयी हैं तो वे बहुत नाराज हुए और वापस जाने को कहा। इस पर संज्ञा घोडी के रूप में घोर जंगल में तप करने लगीं। इधर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चों का जन्म हुआ मनु, शनिदेव और पुत्री भद्रा ( तपती )। इस प्रकार सूर्य और छाया के दूसरे पुत्र के रूप में शनि देव का जन्म हुआ।
अष्टम वार्षिकोत्सव एवं विशाल भंडारा व झांकी प्रस्तुतीकरण 17 नवंबर को
श्री रुवाली बताते हैं कि अगामी 17 नवंबर 2019 को इस भव्य शक्तिपीठ धाम में सुबह 7.00 बजे से दोपहर साढ़े 11 बजे तक श्री शनि रूद्राभिषेख, मां पीतांबरा का विशेष पूजन होगा। इच्छुक श्रद्धालु पहले से ही मंदिर में संपर्क कर सकते हैं। इसके पश्चात भजन मंडली द्बारा भगवत भजनों का आयोजन किया जायेगा। जो शाम तक चलेगा साथ ही साथ भंडारा भी लगातार चलता रहेगा। श्री नरेश चंद्र रुवाली कहते हंै कि इसके पश्चात शाम को झांकी का प्रस्तुतीकरण भी होगा। जो देर रात तकरीबन 10 बजे तक चलती रहेगी।
गुरुजी बताते हैं कि ऐसा नहीं कि यह पहली बार हो रहा है। यहां स्थापना काल से लेकर लगातार चला आ रहा है। तब से हर वर्ष 17 नवंबर को यहां वार्षिकोत्सव होता रहा है। वह बताते हैं कि इस पूरे क्षेत्र पर वैसे भी मां चंद्रिका देवी की कृपा होने के नाते अध्यात्म का माहौल रहता है। जबसे इस धाम की स्थापना हुई है तब से आध्यात्मिक माहौल लगातार बना रहता है। मां चंद्रिका देवी मंदिर के लिए दर्शन करने वाले श्रद्धालु यहां पर जरूर माथा टेकते हैं। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को शनिदेव के साथ हनुमान जी, पशुपति नाथ आदि देव शिवजी, मां बंग्लामुखी रूपी मां पीतांबरा देवी के भी दर्शन होते हैं। यहीं नहीं यहां हर गुरुवार को साईं बाबा के दर्शन करने भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं।
इससे पूर्व मै खुद यहां दो-तीन बार आ चुका शांति एवं अध्यात्म का अनुभव महसूस किया विशेष हवन व अनुष्ठान भी कराया। गुरुजी
के आशीर्वाद से हवन आदि भी यहां अच्छे से हो जाता है अन्य मंदिरों की तरह विशेष चढ़ावा आदि का आडंबर नहीं होता। सब कुछ आप की श्रद्धा पर निर्भर करता है!
यहीं पर स्थापित मां बगलामुखी के बारे में बताते हुए श्री नरेश चंद्र रुवाली कहते हैं कि मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है, अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। बगलामुखी देवी रत्न जडित सिहासन पर विराजती होती हैं। र‘मय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। गुरूजी कहते हैं कि देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है बगलामुखी देवी का माहात्म्य बगलामुखी की पूजा में सारी सामग्री पीली ही होनी चाहिए।
साधक को पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। जपमाला भी हल्दी की गांठों की होनी चाहिए। जप पीत आसन पर बैठकर ही करना चाहिए और नित्य पीत पुष्पों से ही देवी का पूजन करना चाहिए। इस तरह अयुत जप के बाद हल्दी व केसर से रंजित साकल्य से दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण तथा तद्दशांश मार्जन करें और केसरिया या वेसनी मोदक आदि पदार्थ से मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराएं।
यह अनुष्ठान करने से अशुभ प्रभाव का शमन, शत्रु पर विजय, दैवी प्रकोपों से मुक्ति, धन की प्राप्ति, दारिद्र्य और ऋण से मुक्ति मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण आदि अनेक कार्यों की सिद्धि होती है। माता का जप करते समय श्रद्धा, विश्वास, आत्मसंयम व ब्रह्मचर्य का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। सभी प्रकार की पीत पूजन सामग्री लेकर रात्रि में कहीं जंगल में जाकर पीली पताका को शुद्ध भूमि में गाड़ दें और उसका पूजन करके उसके आगे अष्टोत्तरशत संख्या में ''र ींीं बगलामुख्यै नम:’’ मंत्र का जप करें। जप के अंत में 108 बार ''र बगलामुख्यै नम:’’ इस मंत्र को जपते हुए पताका के आगे दंड की तरह भूमि पर लेट कर भगवती को प्रणाम करें। इस तरह प्रतिदिन रात्रि के समय एक मास तक करते रहंे। अंत में जपसंख्या का दशांश हवन करें, सब कार्यों में सिद्धि प्राप्त होगी।
शनिदेव की इन बातों को जानेंगे तो टूटेगा भ्रम, बन जाएंगे काम, मिलेगा मनचाहा बरदान
शनिदेव का पूजन लाभ व स्वार्थ को लेकर नहीं करना चाहिये। वे न्यायाधीश हैं और सब कर्म अनुसार देते हैं।
हमें शुभ कर्म करते रहने चाहिए। दुष्कर्मों का फल देर सवेर अवश्य मिलता है। इसलिए लालचवश गलत राह पर नहीं चलना चाहिए। शनिदेव भगवान सूर्य व माता छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। शनि क्रूर ग्रह नहीं हैं। कुछ लोगों ने इन्हें बदनाम कर रखा है।
शनि के आदिदेवता प्रजापिता ब्रह्म और प्रत्यधिदेवता यम हैं। यह एक एक राशि में 3०-3० महीने रहते हैं। यह मकर व कुंभ राशि के स्वामी है। इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय जप, नीलम धारण, काली गाय, भैंस, कस्तूरी व सुवर्ण का दान देना चाहिए।
शनि संस्कृत का शब्द है। शनये कमति स:। इसका अर्थ है, अत्यंत धीमा। शनि की गति की बहुत धीमी है। शनि की गति भले ही धीमी हो पर शनि देव को बहुत की सौम्य देव माना जाता है।
शनि देव सूर्य देव पुत्र होने के कारण बहुत ही शक्तिशाली हैं। जिस कारण मानवों और देवताओं में शनि देव का डर व्याप्त है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। शनि देव पाप और अन्याय करने वालों को अपनी दशा या अंतर दशा में दंडित करते हैं। ताकि प्रकृति का संतुलन बन रहे।
शनि देव के बारे में कुछ भ्रांतियां है। जिस कारण शनि देव को शुभ नहीं माना जाता है जोकि सरासर गलत है।
शनि देव को कलयुग का देवता माना जाता है। जब भी शनि देव की दशा या अंतर दशा जातक पर आती है तो वह कर्म के अनुसार फल भोगता है। शनि देव अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं।
आरती श्री शनिदेव की
कर्मफल दाता श्री शनिदेव की भक्ति और आरती करने से हर प्रकार के कष्टों का शमन हो जाता है। श्री शनिदेव को काला कपड़ा और लोहा बहुत प्रिय है। उन्हें आक का फूल बहुत भाता है। शनिवार और अमावस्या तिथि को उनको उड़द, गुड़, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना लाभप्रद रहता है। श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करने से सब प्रकार की प्रतिकूलताएं समाप्त हो जाता हैं।
आलोक श्रीवास्तव