श्री यंत्र के हर कोण कि होती है खासियत ,धन प्राप्ति के लिए दिवाली में होती है पूजा

श्री यंत्र के हर कोण कि होती है खासियत ,धन प्राप्ति के लिए दिवाली में होती है पूजा

जानिए क्या हैं श्रीयंत्र, श्रीयंत्र का महत्व (Sri Yantra ) 27 अक्टूबर दिवाली 2019 (Diwali 2019 kab hai ) पूजा एवम श्री यंत्र निर्माण एवम सिद्ध करने का तरीका--
ऐसा होता हैं श्रीयंत्र (Sri Yantra )का स्वरूप--
श्रीयंत्र( Tantra Mantra For Success ) अपने आप में रहस्यपूर्ण है। यह सात त्रिकोणों से निर्मित है। मध्य बिन्दु-त्रिकोण के चतुर्दिक् अष्ट कोण हैं। उसके बाद दस कोण तथा सबसे ऊपर चतुर्दश कोण से यह श्रीयंत्र निर्मित होता है। यंत्र ज्ञान में इसके बारे में स्पष्ट किया गया है-
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चके्र पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र के चतुर्दिक् तीन परिधियां खींची जाती हैं। ये अपने आप में तीन शक्तियों की प्रतीक हैं। इसके नीचे षोडश पद्मदल होते हैं तथा इन षोडश पद्मदल के भीतर अष्टदल का निर्माण होता है, जो कि अष्ट लक्ष्मी का परिचायक है। अष्टदल के भीतर चतुर्दश त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो चतुर्दश शक्तियों के परिचायक हैं तथा इसके भीतर दस त्रिकोण स्पष्ट देखे जा सकते हैं, जो दस सम्पदा के प्रतीक हैं। दस त्रिकोण के भीतर अष्ट त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो अष्ट देवियों के सूचक कहे गए हैं। इसके भीतर त्रिकोण होता है, जो लक्ष्मी का त्रिकोण माना जाता है। इस लक्ष्मी के त्रिकोण के भीतर एक बिन्दु निर्मित होता है, जो भगवती का सूचक है। साधक को इस बिन्दु पर स्वर्ण सिंहासनारूढ़ भगवती लक्ष्मी की कल्पना करनी चाहिए।
इस प्रकार से श्रीयंत्र 2816 शक्तियों अथवा देवियों का सूचक है और श्री यंत्र की पूजा (Tantra Mantra For Money )इन सारी शक्तियों की समग्र पूजा है।27 अक्टूबर दिवाली 2019 (Diwali 2019 kab hai ) दिवाली 2019 27 अक्टूबर दिवाली 2019 (Diwali 2019 kab hai ) को भी इसकी पूजा की जाती है |
श्री यंत्र का रूप ज्योमितीय होता है। इसकी संरचना में बिंदु, त्रिकोण या त्रिभुज, वृत्त, अष्टकमल का प्रयोग होता है। तंत्र के अनुसार श्री यंत्र का निर्माण दो प्रकार से किया जाता है- एक अंदर के बिंदु से शुरू कर बाहर की ओर जो सृष्टि-क्रिया निर्माण कहलाता है और दूसरा बाहर के वृत्त से शुरू कर अंदर की ओर जो संहार-क्रिया निर्माण कहलाता है।
अद्भुत त्रिकोण----
चमत्कारी साधनाओं में श्रीयंत्र(Sri Yantra Benefits In Hindi ) का स्थान सर्वोपरि है तथा मंत्र और तंत्र इसके साधक तत्व माने गए हैं। श्रीयंत्र सब सिद्धियों का द्वार है तथा लक्ष्मी का आवास है जिसमें अपने-अपने स्थान, दिशा, मंडल, कोण आदि के अधिपति व्यवस्थित रूप से आवाहित होकर विराजमान रहते हैं। मध्य में उच्च सिंहासन पर प्रधान देवता प्राण प्रतिष्ठित होकर पूजा प्राप्त करते हैं। श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से साधक मनोरथ को पा लेता है।
शास्त्रकारों ने इस बात पर बल दिया है कि जिस प्रकार शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं होता है उसी प्रकार श्रीयंत्र और लक्ष्मी में कोई भेद नहीं होता है। भारतीय तंत्र विधा का आधार अध्यात्म है। इस विधा की प्राचीनता ऋग्वेद से पहचानी जा सकती है। वैदिक जीवन चर्या में पूजन, यज्ञ तथा तंत्र में साधना का अपना विशेष स्थान था। पूजन पद्धतियों का उपयोग जीवन को शांत, उन्नातिशील, ऐश्वर्यवान बनाने के लिए होता था।
भौतिक जीवन में खुशहाली लाने के निमित्त श्रीयंत्र का निर्माण हुआ। श्रीयंत्र (Tantra Mantra For Money )दरिद्रता रूपी स्थितियों को समाप्त करता है। ऋण भार से दबे साधकों के लिए यह रामबाण है।
पूर्व जन्म के दुष्कर्मानुसार ही व्यक्ति की कुंडली में केमद्रुम योग, काक योग, दरिद्र योग, शकट योग, ऋण योग, दुयोग एवं ऋणग्रस्त योग आदि अशुभ योग मनुष्य को ऐश्वर्यहीन बनाते हैं। इन कुयोगों को दूर कर व्यक्ति को धन-ऐश्वर्य देने वाले यंत्रराज श्रीयंत्र की बड़ी महत्ता है। जिस प्रकार यंत्र एवं देवता में कोई भेद नहीं होता है। यंत्र देवता का निवास स्थान माना गया है। यंत्र और मंत्र मिलकर शीघ्र फलदायी होते हैं। श्रीयंत्र में लक्ष्मी का निवास रहता है। यह धन की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर-सुंदरी का यंत्र है। इसे षोडशी यंत्र भी कहा जाता है।
श्रीयंत्र बिंदु, त्रिकोण, वसुकोण, दशार-युग्म, चतुर्दशार, अष्ट दल, षोडसार, तीन वृत तथा भूपुर से निर्मित है। इसमें 4 ऊपर मुख वाले शिव त्रिकोण, 5 नीचे मुख वाले शक्ति त्रिकोण होते हैं। इस तरह त्रिकोण, अष्टकोण, 2 दशार, 5 शक्ति तथा बिंदु, अष्ट कमल, षोडश दल कमल तथा चतुरस्त्र हैं। ये आपस में एक-दूसरे से मिले हुए हैं। यह यंत्र मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष देने वाला है।
श्री यंत्र (Sri Yantra )में 9 त्रिकोण या त्रिभुज होते हैं जो निराकार शिव की 9 मूल प्रकृतियों के द्योतक हैं। मुख्यतः दो प्रकार के श्रीयंत्र बनाए जाते हैं – सृष्टि क्रम और संहार क्रम। सृष्टि क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 5 ऊध्वर्मुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शिव त्रिकोण कहते हैं। ये 5 ज्ञानेंद्रियों के प्रतीक हैं। 4 अधोमुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शक्ति त्रिकोण कहा जाता है। ये प्राण, मज्जा, शुक्र व जीवन के द्योतक हैं। संहार क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 4 ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण शिव त्रिकोण होते हैं और 4 अधोमुखी त्रिकोण शक्ति त्रिकोण होते हैं।
दिवाली 2019 27 अक्टूबर दिवाली 2019 (Diwali 2019 kab hai ) को भी इसकी पूजा की जाती है |
श्री यंत्र में 4 त्रिभुजों का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि उनसे मिलकर 43 छोटे त्रिभुज बन जाते हैं जो 43 देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। मध्य के सबसे छोटे त्रिभुज के बीच एक बिंदु होता है जो समाधि का सूचक है अर्थात यह शिव व शक्ति का संयुक्त रूप है। इसके चारों ओर जो 43 त्रिकोण बनते हैं वे योग मार्ग के अनुसार यम 10, नियम 10, आसन 8, प्रत्याहार 5, धारणा 5, प्राणायाम 3, ध्यान 2 के स्वरूप हैं।

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