पेट के रोगों का ज्योतिष से क्या है सम्बन्ध ?और उसका क्या है उपचार

पेट के रोगों का ज्योतिष से क्या है सम्बन्ध ?और उसका क्या है उपचार

ज्योतिष से रोगों का उपचार और पेट के रोगों का सम्बन्ध

कुंडली किसी भी व्यक्ति के के (सुख-दुख) का ज्ञान कराता है। आकाशीय पिंडों, ग्रहों के परिचालन द्वारा उत्पन्न होने वाले योगों की गणना एवं उनसे होने वाले दुष्प्रभावों को गणना द्वारा प्रतिपादित करना इस शास्त्र का प्रमुख उद्देश्य है जिनमें दुखरूपी व्याधि, अनिष्ट कृत्य, किसी कार्य में विलंब तथा संखरूपी व्याधि परिहार, मांगलिक कार्य इत्यादि का संपादन करता है। ज्योतिष शास्त्र में अनेक प्रकार के रोगों का वर्णन किया गया है।

आयुर्वेद के अनुसार कहा है कि "शरीर व्याधि मन्दिर" अर्थात शरीर रोगों का घर है। जब रोग होंगे तब रोग के प्रकार होंगे, किस अवस्था में कौन सा रोग होगा इसका वर्णन ज्योतिष के होरा शास्त्र में वर्णित है।

षड्यन वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र जिसे वैदिक वांङमय के मतानुसार वेदों के नेत्र रूप में निर्देशित किया गया है। अर्थात बिना इस शास्त्र के ज्ञान के हमें काल ज्ञान नहीं हो सकता।

यजुर्वेद के इस मंत्र द्वारा यह कामना की गयी है - भद्रं कर्मेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य जत्राः। स्थिरैरजै तुष्टवा सस्तनूभित्र्यशेयहि देवहितं यदायुः।।

ज्योतिष शास्त्र में अनेक प्रकार के रोगों का वर्णन किया गया है। आयुर्वेद के अनुसार कहा है कि "शरीर व्याधि मन्दिर" अर्थात शरीर रोगों का घर है। जब रोग होंगे तब रोग के प्रकार होंगे, किस अवस्था में कौन सा रोग होगा इसका वर्णन ज्योतिष के होरा शास्त्र में वर्णित है। मनुष्य स्वस्थ व दीर्घ जीवनयापन करता है। इसके लिए आवश्यक है कि समय से पूर्व उचित निदान, यह तभी संभव हैं जब कारण के मूल का ज्ञान बहुत से रोगों के कारण ज्ञात हो जाते हैं पर बहुतों के कारण अंत तक नहीं ज्ञात होते। रोगों का संबंध पूर्व जन्म से भी होता है।

आचार्य चरक लिखते हैंः कर्मजा व्याध्यः केचित दोषजा सन्ति चापरे।

सभी वस्तुओं का परित्याग करके सर्वप्रथम शरीर की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि शरीर नष्ट होने पर सबका नाश हो जाता है। महर्षि चरक ने भी उपनिषदों में वर्णित तीन ऐषणाओं के अतिरिक्त एक चैथी प्राणेप्रणा की बात कही है जिसका अर्थ है कि प्राण की रक्षा सर्वोपरि है। जैसा कि महाभारत के उद्योग पर्व में कहा गया है-

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन तीन दोषों को संतुलित रखना पड़ता है क्योंकि सब रोगों का कारण त्रिदोष वैषम्य ही है। सभी रोगों के साक्षात कारण प्रकुपित दोष ही हैं ।

हमारे आचार्यों ने मनुष्य के प्रत्येक अंगों की स्थिति ज्ञात करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में काल पुरुष की कल्पना की है, काल पुरुष के अंगों में मेषादि राशियों का समावेश किया गया हैः


मृतकल्पा हि रोगिणः। रोगस्तु दोष वैषम्यं दोष साम्यम रोगत।

(अष्टांग हृदय 1/20)

इन बारह भावों में छठा भाव रिपु भाव है। इसे रोग भाव भी कहा जाता है। छठे भाव से रोग व शत्रु दोनों का विचार किया जाता है। आठवें व बारहवें भाव तथा भावेश का भी संबंध रोग से होता है।


पेट के रोगों का ज्योतिष से उपचार

वर्तमान में एक कष्ट कारक रोग एपेण्डीसाइटिस भी बृहस्पति पर शनि के अशुभ प्रभाव से देखा गया है। शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता हैं। जब शुक्र शनि द्वारा पीडि़त हो तो जातक को धातु सम्बंधी कष्ट होता है। जब शुक्र पेट का कारक होकर स्थित होगा तो पेट की धातुओं का क्षय शनि के प्रभाव से होगा।बहुत आश्चर्य का विषय है की पेट का रोग और ज्योतिष द्वारा समाधान कैसे संभव है , लेकिन यह हर प्रकार से संभव है|

उदर रोग के प्रमुख ज्योतिषीय कारण पराशर आचार्यों ने उदर रोग को निम्न प्रकार से रेखांकित किया है। षष्ठ भाव फलाध्याय में लिखते हैं कि षष्ठेश अपने घर, लग्न या अष्टम भाव में हो तो शरीर में व्रण (घाव) होता है। षष्ठ राशि में जो राशि हो उस राशि के आश्रित अंगों में रोग उत्पन्न होता है। राहु या केतु हो तो पेट में घाव होता है।



शनि ग्रह के कारण होने वाले रोग

अगर पहले भाव में है शनि के कारण पेट में गुल्म रोग होता है

दूसरे भाव में शनि होने पर भोजन पचता नहीं है indigation की बीमारी हो जाती है

तीसरे भाव में शनि मंगल की अगर युति है और लग्न का राहु बुध पर दृष्टि होती है तो loos motion होने लगता है

अगर शनि मीन या मेष राशि में रहता है तो पेट में दर्द होता है |

शनि चंद्र की युति अगर सिंह राशि में बन रही है है तो पाप ग्रहों की दृष्टि के कारण ६ठे या १२वें भाव में शनि या लग्न स्थान में चंद्र या मकर हो तो भी पेट की बीमारियां हो जाती हैं |

शनि चंद्र की युति अगर कुम्भ लग्न में है तो शनि का प्रभाव से ५वें स्थान से प्लीहा रोग होने का कारक बनता है

ज्योतिष से पेट के रोगों का इलाज

जिस तरह से पेट के रोगों का इलाज किसी डाक्टर से कराया जाता है इसी तरह इ अगर कोई ज्योतिष का अच्छा जानकार है तो वह कुंडली का विश्लेषण करके पेट के रोगों का उपचार कर सकता है क्योंकि जो भी गृह इसके लिए कारक बन रहे होंगे उसके शांति के लिए पूजन हवं करके ज्योतिष से रोगों का इलाज संभव है |


पेट रोग का कारक कुंडली के ग्रह

कुंडली के विश्लेषण से अगर देखें तो अगर व्यक्ति के सप्तम स्थान में केतु और कुंडली में लग्न में राहु है तो ऐसे व्यक्ति को लीवर में इंफेक्शन होने की काफी ज्यादा संभावना होती है जबकि आठवें भाव में बुध सूर्य के साथ मकर राशि के साथ एक होकर अगर बैठा है तो उस व्यक्ति को यूरिनल इंफेक्शन होने की काफी संभावना होती है और जिसका सबसे बड़ा कारण यह होता है कि किडनी में स्टोन या इंफेक्शन हो जाते हैं।

अगर बात करें कुंभ लग्न में सूर्य है तो ऐसा व्यक्ति हमेशा ही एसिडिटी इन डाइजेशन से परेशान रहता है और लग्न की कुंडली के बारहवें भाव में सिंह राशि का केतु अगर शनि है तो पाइल्स की समस्या हो सकती है और इस बात की काफी संभावना रहती है कि वह पाइल्स की संभावना रहती है और पाइल्स की समस्या से वंचित रहता है अगर बृहस्पति सप्तम भाव या अष्टम भाव में है तो व्यक्ति के पीठ या पैरों में दर्द होता है इस तरीके से कुंडली का विश्लेषण करने के बाद में यह पता चलता है कि कई प्रकार की समस्याओं का समाधान हो सकता है ।

अगर कुंडली के अनुसार उसका मेडिकल ट्रीटमेंट भी किया जाए तो बहुत ही ज्यादा इसके अच्छे परिणाम देखते हैं क्योंकि कोई भी व्यक्ति ग्रह से ही संचालित होता है और उसका शुभा उसी तरीके से उसकी प्रकृति उसी तरीके से बन जाती है और कुंडली का विश्लेषण करने से यह पता चल जाता है कि उसके ग्रह किस दिशा में है और किस तरीके से उसको इफेक्ट कर रहे हैं तो इसका विश्लेषण अगर कोई योग्य ज्योतिषी है तो उसका करके और वह इस बात के लिए बता सकता है कि किन चीजों का ज्योतिषीय उपचार किया जाए।

उसके बाद में मेडिकल ट्रीटमेंट चीजों का किया जाए तो व्यक्ति काफी तरीके के रोगों से उसका बचाव हो सकता है और ज्योतिषी अगर उपचार की बात करें तो ग्रहों की शांति के लिए कई ज्योतिषी रत्न धारण करवाने में विश्वास करते हैं और कुछ लोग रोग का उपचार के लिए उपवास या हवन दान इन सब की विधियों पर भी यह सारे प्रयास किए जाते हैं और उसमें काफी हद तक सफलता भी पाई गई ऐसा कहा जाता है ज्योतिषियों के द्वारा।


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