Sunday Special: सूर्य को जल देने से मिलती है सरकारी नौकरी, जानिए विधि

 
Sunday Special: सूर्य को जल देने से मिलती है सरकारी नौकरी, जानिए विधि

benefits of surya puja सूर्य को जल से अर्घ्य देकर प्रसन्न करने के लिए रविवार का दिन सबसे अच्छा माना गया है. यही कारण है कि रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है. रविवार को सूर्य देव को जल देने के महत्व और इसके फायदों का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में किया गया है. मान्यता है कि सूर्य को रविवार के दिन जल चढ़ाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है. साथ ही घर में खुशियों का माहौल बना रहता है. इतना ही नहीं विधि पूर्वक भगवान सूर्य को जल अर्पण करने से सरकारी नौकरी का भी योग बनता है. इस बारे में महाभारत में भी वर्णन मिलता है. कथा के अनुसार दानवीर कर्ण रोजाना सूर्य की पूजा करते उन्हें अर्घ्य देते. इसके अतिरिक्त सूर्य की उपासना के बारे में भगवान राम की भी कथा म‌िलती है, जिसके मुताबिक वह भी हर द‌िन सूर्य को अर्घ्य देते थे. शास्‍त्रों में भी वर्णन मिलता है कि रोज द‌िन सूर्य को जल देना चाह‌िए. कुछ लोग इस न‌ियम का पालन भी करते हैं. आइए जानें, सूर्य को जल देने के फायदे और किस प्रकार जल अर्पण करना अच्छा होता है...

ज्योत‌िष शास्‍त्र में सूर्य को आत्मा का कारक बताया गया है. इसलिए आत्म शुद्ध‌ि और आत्मबल बढ़ाने के लिए न‌ियम‌ित रूप से सूर्य को जल देना चाहिए. 2. सूर्य को न‌ियम‌ित जल देने से शरीर ऊर्जावान बनता है और कार्यक्षेत्र में इसका लाभ म‌िलता है. 3. अगर आपकी नौकरी में परेशानी हो रही है तो न‌ियम‌ित रूप से सूर्य को जल देने से उच्चाध‌िकारियों से सहयोग म‌िलने लगता है और मुश्क‌िलें दूर हो जाती हैं. 4. सूर्य को जल देने के लिए तांबे के पात्र का उपयोग करना बेहतर रहता है. 5. सूर्य को जल देने से पहले जल में चुटकी भर रोली म‌िलाएं और लाल फूल के साथ जल दें. इसके बाद जल देते समय 7 बार जल दें और सूर्य के मंत्र का जप करें.

जानिए सूर्य को जल क्यों चढ़ाते हैं? benefits of surya puja, how to do surya puja, water offering to sun

यूं तो तो सूर्य देव को हर रोज ही जल चढ़ाया जाता है उनकी पूजा की जाती है। लेकिन रविवार के दिन सूर्ज को जल चढ़ाने के बहुत सारे लाभ मिलते हैं। रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। यह मान-सम्मान और सुख-समृद्धि दिलाने वाला दिन है।

इस दिन सही नियम से जल चढ़ाने से कुंडली के सारे दोष सूर्य देव की कृपा से समाप्त हो जाते हैं।

इस दिन दान का भी विशेष महत्व है। दान में तांबे का बर्तन, पीले व लाल वस्त्र, गेंहू, गुड़, मोती, लाल चंदन आदि का दान करें। अपनी श्रद्धानुसार इनमें से किसी भी चीज का दान करें।

सूर्य देव की पूजा करने और जल चढ़ाने वाला व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पा लेता है। इतना ही नहीं सूर्य देव की पूजा से व्यक्ति के भाग्य में विशेष राजयोग बनता है। इसके अलावा यदि आप रोज सूर्य देव को जल चढ़़ाते हैं तो कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें।

सूर्यदेव को जल अर्पित करते समय रखें इन बातों का ध्यान-

- सूर्यदेव को तांबे के पात्र से ही जल दें। जल देते समय दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़े।

- सूर्य को जल अर्पित करते हुए उसमें पुष्प या अक्षत (चावल) जरूर रखें।

- दोनों हाथों से सूर्य को जल देते हुए ये ध्यान रखें की उसमें सूर्य की किरणों की धार जरूर दिखाई दे।

- पूर्व दिशा की ओर ही मुख करके ही जल देना चाहिए।

- जल देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह जल आपके पैरों से स्पर्श न करे।

- यदि किसी दिन ऐसा हो कि सूर्य देव नजर ना आ रहे हों तो पूर्व दिशा की ओर मुख करके जल दें।

भूलकर भी न करें सूर्य को जल चढ़ाते वक्त ये गलती

रविवार का दिन सूर्यदेव की पूजा के लिए विशेष है। ज्योतिष में सूर्य को सभी ग्रहों का अधिपति माना गया है। सूर्यदेव को जल चढ़ाने से व्यक्ति को जीवन की हर परेशानी से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में सूर्य ठीक होने पर व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान, उच्च पद की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही कई रोगों का भी नाश होता है। कुंडली में सूर्य कमजोर होने से व्यक्ति को परेशानियों का सामाना करना पड़ता है।

सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत होकर जल चढ़ाये,कभी भी बिना स्नान के जल अर्पित न करें।

अर्घ्य देते समय स्टील, चांदी, शीशे और प्लास्टिक बर्तनों का प्रयोग न करें।सूर्यदेव को तांबे के पात्र से ही जल दें। जल देते समय दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़े।

जल सदैव सिर के ऊपर से अर्पित करें। इससे सूर्य की किरणें व्यक्ति के शरीर पर पड़ती है। जिससे सूर्य के साथ नवग्रह भी मजबूत बनते हैं।

जल अर्पित करने से पहले उसमें कई लोग गुड़ और चावल मिलाते हैं। ऐसा न करें। इसका कोई महत्व नहीं होता। सूर्य को जल अर्पित करते हुए उसमें पुष्प या अक्षत (चावल) जरूर रखें।जल में रोली या लाल चंदन और लाल पुष्प डाल सकते हैं।

दोनों हाथों से सूर्य को जल देते हुए ये ध्यान रखें की उसमें सूर्य की किरणों की धार जरूर दिखाई दे।

पूर्व दिशा की ओर ही मुख करके ही जल देना चाहिए।

जल देते समय ध्यान रखना चाहिए कई लोगों का मानना है कि जल अर्पित करते समय पैर में जल की छीटें पड़ने से फल नहीं मिलता। लेकिन ऐसा नहीं होता है। ज्योतिषचार्यों के अनुसार जल का प्रभाव और सूर्य की किरणों का प्रभाव केवल आपके सिर से नाभि तक ही होता है। इसलिए इसका कोई असर नहीं होता है।

यदि किसी दिन ऐसा हो कि सूर्य देव नजर ना आ रहे हों तो पूर्व दिशा की ओर मुख करके जल दे दें।

सूर्य को अर्घ्य देने की आसान विधि, जानिए 14 काम की बातें...

'ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य'

वैदिक काल से सूर्योपासना अनवरत चली आ रही है। भगवान सूर्य के उदय होते ही संपूर्ण जगत का अंधकार नष्ट हो जाता है और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है। सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं सूर्य देवता। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है।

सूर्य अर्घ्य देने की सही विधि

सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें।

तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष आसन लगाए।

आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।

उसी जल में मिश्री भी मिलाएं। कहा जाता है कि सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली के दूषित मंगल का उपचार होता है।

मंगल शुभ हो तब उसकी शुभता में वृद्दि होती है।

जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दें, आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें।

प्रात:काल का सूर्य कोमल होता है उसे सीधे देखने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।

सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।

जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।

अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें -

'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।

अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार)

'ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।

मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार)

तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।

अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें।

आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।

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