ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिन्डोला में अनोखे अमर शहीद बाबा दीप सिंह का जन्मोत्सव मनाया गया

The birth anniversary of the unique immortal martyr Baba Deep Singh was celebrated in the historical Gurudwara Naka Hindola.
ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिन्डोला में अनोखे अमर शहीद बाबा दीप सिंह का जन्मोत्सव मनाया गया
लखनऊ।शहीद बाबा दीप सिंह का 342वाँ जन्मोत्सव श्री गुरू सिंह सभा ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरू नानक देव नाका हिन्डोला लखनऊ में बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया। प्रातः का दीवान श्री सुखमनी साहिब के पाठ से आरम्भ हुआ। उसके उपरान्त रागी भाई राजिन्दर सिंह ने आसा दी वार का अमृतमयी कीर्तन एवं  "सूरा सो पहचानीए जो लरै दीन के हेत पुरजा पुरजा कट मरै कबहू न छाडे खेत।" शबद गायन कर संगत को निहाल किया। मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने शहीद बाबा दीप सिंह के जन्मोत्सव पर कथा व्याख्यान करते हुए बताया कि बाबा दीप सिंह का जन्म 1682 को ग्राम पहुविंड तहसील पट्टी, जिला अमृतसर में हुआ था।

दसवें गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह के परम शिष्य थे

उनके पिता जी का नाम भाई भगता जी एवं माता का नाम जीऊणी जी था। आप दसवें गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंह के परम शिष्य थे। गुरमुखी, फारसी, अरबी भाषा का ज्ञान, घुड़सवारी एवं शस्त्र विद्या में निपुणता गुरू जी से ही सीखी। सिक्ख धर्म के महान योद्धा बाबा दीप सिंह जी की शहादत की मिसाल पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलती। जब मुगल शासक मुरादबेग ने अहमद शाह अब्दाली को पत्र लिखकर भारत पर हमला करने की गुजारिश की। अब्दाली ने एक लाख की फौज के साथ हमला कर दिया। क्रूरता की सारी हदें पार कर दी फौज ने जब बच्चों और स्त्रियों को भी नहीं बक्शा तब सिख समुदाय के बाबा दीप सिंह जी से यह देखा न गया।

The birth anniversary of the unique immortal martyr Baba Deep Singh was celebrated in the historical Gurudwara Naka Hindola.


बाबा दीप सिंह ने प्रण लिया कि ‘‘खालसा सो जो चढे़ तुरंग, खालसा सो जो करे नित जंग’। 1757 में (75 वर्ष की आयु में) गोलवड़ के टिब्बे पर 40000 फौजियों ने हमला कर दिया। बाबा दीप सिंह अपने साथियों बाबा नौध सिंह, भाई दयाल सिंह, बलवंत सिंह, बसन्त सिंह और कई यो़द्धाओं के साथ मुकाबला किया। धर्म की रक्षा करने के साथ ही महिलाओं एवं बच्चों की रक्षा करने वाले बाबा दीप सिंह 18 सेर का दो धारी खंडा (दो धार वाली तलवार) लेकर मैदान-ए-जंग में लड़ते रहे। बाबा ने सुधासर (अमृतसर) में शहीद होने का प्रण लिया था।बाबा का सिर जंग में कट जाने के बावजूद एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में सिर लेकर वह गुरू रामदास के चरणों में पहुॅच गये। वहाँ अब बाबा के नाम से टाहला साहिब गुरूद्वारा है। बाबा के शरीर का जहाँ संस्कार किया गया वहाँ अब गुरूद्वारा शहीद गंज बाबा दीप सिंह बना है।  कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। दीवान की समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष स राजेन्द्र सिंह बग्गा ने समूह संगत को बाबा दीप सिंह के जन्मोसव की बधाई दी और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उसके उपरांत संगत में मिष्ठान प्रसाद एवं चाय का लंगर वितरण किया गया।

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

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