चित्रगुप्त भगवान कौन हैं ? धर्महरि भगवान और चित्रगुप्त भगवान की उत्पत्ति और सृष्टि में क्या है काम ?

धर्महरी मंदिर अयोध्या

 भगवान धर्महरि एवं भगवान चित्रगुप्त एक ही है या अलग अलग भगवान है?

(सत्येंद्र श्रीवास्तव)

इन्ही प्रश्नों की जिज्ञासा के समाधान के लिए मैं विगत कई वर्षो से अध्यन  कर रहा हूँ। परंतु उक्त प्रश्न का समाधान ग्रंथो से न मिल सका।

लखनऊउत्तर प्रदेश  के रहने वाले आदरणीय श्री बलदाऊ श्रीवास्तव जीजो कि कायस्थ समाज के धार्मिक उत्थान के लिए लगभग 50 वर्ष से सतत कार्य कर रहे हैं। अभी हाल ही में  उक्त प्रश्न के उत्तर की प्रत्याशा में श्री बलदाऊ जी से विचार विमर्श किया।

आप द्वारा  बहुत ही तार्किक ढंग से पूरे विषय पर प्रकाश डालते हुए बताय कि जब यमराज ब्रह्मांड का संयमन करने में असमर्थ हो गएयमराज के द्वारा अपनी असमर्थता भगवान ब्रह्मा जी को बताया। 

ब्रह्मा जी ने सृष्टि के संयमन हेतु योग्य के न मिलने परअपने ईस्ट की आराधना में लीन हो गए। पद्मपुराण पाताल खंड भाग में उल्लेख है कि ब्रह्मा जी द्वारा ग्यारह हजार वर्ष की साधना की गई ।

भगवान ब्रह्मा ही ब्रह्मांड को रचने वाले भगवान है।वे जिसको भी उतपन्न करना चाहते हैइशारे से ही उतपन्न कर देते है। *सप्त ऋषि* हो या कोई देव या देवता पर ब्रह्मा जी द्वारा, 11हजार वर्ष तक तपस्या करने पर जो प्रकट हुआवह ब्रह्मा द्वारा रचित या ब्रह्मा का पुत्र तो नही हो सकतावह तो ब्रह्मा जी का आराध्य ही होना चाहिए।

पदम् पुराण मे व्याख्या की गई है कि ब्रह्मा जी के 11हजार वर्ष की  तपस्या के बाद हाथ मे कलम दावात लिए हुए कमल की तरह आंख वाले भद्र पुरुष ब्रह्मा के सामने प्रकट होकर बोले:- हे श्रेष्ठ मेरा नामकरण कीजिए और मेरा कार्य बताइए ।ब्रह्मा जी ने कहा:-हे महाबाहो मेरे काया में चित्त से उतपन्न होने के नाते आप का नाम चित्रगुप्त होगा । आप पृथ्वी पर उंज्जैन मे जाकर तपस्या करके शक्ति उतपन्न करो और ब्रह्मांड का नियमन करो ।

उपरोक्त पदम् पुराण की व्याख्या दास-बलदाऊ जी के समझ से परे है । सब लोग जानते है कि पुराण तार्किक व वास्तविक नही रह गए हैइनमें छेड-छाड़ किया गया है ।

मेरे विचार से व्याख्या होनी चाहिए कि ब्रह्मा जी अपनी समस्या बताते,चित्रगुप्त जी हल करते। वास्तव मे हुआ भी यही होगा। ब्रह्मा जी समस्या→ ब्रह्मांड के नियमन की थीभगवान चित्रगुप्त ने धर्मराज जी को प्रकट किया होगाउन्हें ही छिप्रा नदी के तट पर उंज्जैन में तपस्या के लिए कहा होगा।धर्मराज जी की शादी हुई। कायस्थ उन्ही की संतान है और एक ही गोत्र है→ चित्रगुप्त गोत्र ।सीधे देव पुत्र। ब्राह्मण तो ऋषि पुत्र है ।

यही धर्मराजश्री धर्महरि है। आदि काल के कुल चार मन्दिर हैउज्जैन,अयोध्याकांचीपुरम व पटना । इन सब का नाम श्री धर्महरि मन्दिर हैं।

 

""ब्रह्मा रचते सृष्टि सारीविष्णु पालन करते।

रूद्र संहारकचित्रगुप्त व्यौरा पाप पुण्य रखते।।"

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