Thread Ceremony: हिंदू धर्म में जनेऊ का क्या महत्व है? जानें उपनयन संस्कार की प्रक्रिया और महत्व 

Thread Ceremony: हिंदू धर्म में प्राचीनकाल से ही यज्ञोपवीत संस्कार को प्रमुख संस्कारों में रखा गया है। यज्ञोपवीत को ज्यादातर लोग 'जनेऊ' कहते हैं।
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Thread Ceremony: हिंदू धर्म में प्राचीनकाल से ही यज्ञोपवीत संस्कार को प्रमुख संस्कारों में रखा गया है। यज्ञोपवीत को ज्यादातर लोग 'जनेऊ' कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बच्चे का पहला जन्म माता के पेट से होता है। माता के गर्भ से जो जन्म होता है,उस पर जन्म-जन्मांतरों के संस्कार हावी रहते हैं। इसी को द्विज अर्थात दूसरा जन्म भी कहते हैं।

जनेऊ क्या है? 

What is sacred thread: जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं। इसे देवऋण,पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है. यज्ञोपवीत के प्रत्येक तार में तीन-तीन तार होते हैं। यज्ञोपवीत की तीन लड़ियां, संसार के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है। ये नौ तार शरीर के नौ द्वार एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं। इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं। यही कारण है कि जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है और इसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियम भी बनाए गए हैं, जिनका पालन करने से जनेऊ शुद्ध रहता है.

जनेऊ संस्कार क्यों जरुरी है?
Why is Janeu Sanskar important: जनेऊ संस्कार द्वारा बुरे संस्कारों का नाश कर अच्छे संस्कारों को जीवन में अपनाया जाता है। शास्त्रियों का कहना है कि यज्ञोपवीत संस्कार हुए बिना द्विज (व्यक्ति) किसी कर्म का अधिकारी नहीं होता। इसी प्रकार ये संस्कार होने के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य करने का अधिकार मिलता है। व्यक्ति को सर्वाविध यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त हो जाना ही यज्ञोपवीत है। पुराणों में लिखा है कि करोड़ों जन्म के ज्ञान-अज्ञान में किए हुए पाप यज्ञोपवीत धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। पारस्कर ग्रहसूत्र में लिखा है कि जिस प्रकार इंद्र को वृहस्पति ने यज्ञोपवीत दिया था,उसी प्रकार आयु, बुद्धि, सम्पत्ति और बल की वृद्धि के लिए धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से शुद्ध चरित्र और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है।

उपनयन संस्कार की प्रक्रिया
Process of Upanayana Sanskar: यज्ञोपवित संस्कार प्रारम्भ होने से पहले बालक का मुंडन करवाया जाता है। संस्कार के मुहूर्त के दिन बालक को स्नान करवाकर उसके सिर और शरीर पर चंदन केसर का लेप लगाया जाता है और जनेऊ पहनाकर उसे ब्रह्मचारी बनाते हैं। फिर विधिपूर्वक गणेशादि देवताओं का पूजन, यज्ञवेदी एवं बालक को अधोवस्त्र के साथ माला पहनाकर बैठाया जाता है। इसके बाद दस बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके देवताओं के आह्‍वान के साथ उससे शास्त्र शिक्षा और व्रतों के पालन का वचन लिया जाता है। उसकी उम्र के बच्चों के साथ बैठाकर चूरमा खिलाते हैं फिर स्नान कराकर उस वक्त गुरु, पिता या बड़ा भाई गायत्री मंत्र सुनाकर कहता है कि आज से तू अब ब्राह्मण हुआ। इसके बाद मृगचर्म ओढ़कर मुंज का कंदोरा बांधते हैं और एक दंड हाथ में दे दिया जाता है। इसके बाद वह बालक वहां उपस्थित लोगों से भीक्षा मांगता है।

उपनयन संस्कार के नियम

Rules of Upanayana Sanskar: उपनयन संस्कार प्रारम्भ होने से पहले बालक का मुंडन करवाया जाता है। संस्कार के मुहूर्त के दिन बालक को स्नान करवाकर उसके सिर और शरीर पर चंदन केसर का लेप लगाया जाता है और जनेऊ पहनाकर उसे ब्रह्मचारी बनाते हैं। फिर विधिपूर्वक गणेशादि देवताओं का पूजन, यज्ञवेदी एवं बालक को अधोवस्त्र के साथ माला पहनाकर बैठाया जाता है। इसके बाद दस बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके देवताओं के आह्‍वान के साथ उससे शास्त्र शिक्षा और व्रतों के पालन का वचन लिया जाता है। उसकी उम्र के बच्चों के साथ बैठाकर चूरमा खिलाते हैं फिर स्नान कराकर उस वक्त गुरु, पिता या बड़ा भाई गायत्री मंत्र सुनाकर कहता है कि आज से तू अब ब्राह्मण हुआ। इसके बाद मृगचर्म ओढ़कर मुंज का कंदोरा बांधते हैं और एक दंड हाथ में दे दिया जाता है। इसके बाद वह बालक वहां उपस्थित लोगों से भीक्षा मांगता है।

जनेऊ धारण के नियम

Rules of wearing sacred thread: जनेऊ धारण करने के बाद उसका पालन करना अति आवश्यक है अन्यथा वह अशुद्ध माना जाता है. इसके कुछ नियम इस प्रकार हैं…
 

  1. मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए ताकि अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।

  2. यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। क्योंकि इतने समय में जनेऊ खंडित हो जाता है और खंडित प्रतिमा शरीर पर नहीं रखी जाती। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना ही सही है। घर में जन्म-मृत्यु के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। ।

  3. जनेऊ शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने हुए घुमाकर धो लिया जाता है। भूल से यदि उतर जाए, तो प्रायश्चित के लिए गायत्रीमंत्र के साथ एक माला जप करने या बदल लेने का नियम है।

  4. बालक के अंदर जब इन नियमों के पालन करने की समझ आ जाए, तभी उनका उपनयन संस्कार करना चाहिए।

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