जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज संस्थान 5 अगस्त, 2019 तक सिर्फ कागजों पर थे
जम्मू-कश्मीर में पूर्ववर्ती राजनीतिक शासन कभी भी जमीनी लोकतांत्रिक संस्थानों को सशक्त बनाने की ओर झुकाव नहीं रखते थे। 2001-2 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव केवल एक बार हुआ था, जिसमें कम मतदान हुआ था और 30 प्रतिशत से कम सदस्य निर्वाचित हुए थे। फिर 2011 में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार द्वारा नौ साल के अंतराल के बाद चुनाव कराया। लेकिन ये चुनाव एक दिखावटी कवायद साबित हुए, क्योंकि तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस शासन ने सरपंचों और पंचों को सशक्त बनाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।
2016 में पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के बाद चुनाव स्थगित कर दिए गए, क्योंकि महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली सरकार सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पंचायत चुनाव स्थगित करती रही।
जून 2018 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जम्मू-कश्मीर में महबूबा के नेतृत्व वाले शासन से हाथ खींच लिया, क्योंकि उनकी सरकार राष्ट्रवाद की भावना को बनाए रखने और जन-केंद्रित नीतियों को लागू करने में विफल रही।
15 अगस्त, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में घोषणा की कि कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव होंगे। उनकी घोषणा के बाद, 2018 में नवंबर और दिसंबर में जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव हुए। इन चुनावों में 75 प्रतिशत से अधिक लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। लगभग सात वर्षो के बाद लोगों को ग्रामीण जम्मू-कश्मीर में अपने प्रतिनिधियों को चुनने का मौका मिला।
पंचायती राज संस्थान जम्मू-कश्मीर की शासन प्रणाली का एक अभिन्न अंग बन गए हैं और पंचायत प्रतिनिधि लोगों की आवाज बन गए हैं।
केंद्र ने मार्च और अगस्त 2019 के बीच चार किस्तों में 800 करोड़ रुपये जारी किए, भारतीय संविधान में एक अस्थायी प्रावधान, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने कदम से पहले, और 5 अगस्त, 2019 के बाद, 1,200 करोड़ रुपये और जारी किए गए। पूरी तरह से
जम्मू-कश्मीर में एक आम आदमी को लाभान्वित करने के उद्देश्य से योजनाओं पर काम करने के लिए पंचायतों को 2,000 करोड़ रुपये दिए गए। धन का वितरण गांव के क्षेत्रफल और जनसंख्या पर निर्भर करता था। ग्राम पंचायतों को शुरू में 80 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये के बीच कुछ भी मिला और तब से धन का प्रवाह हो रहा है।
स्वतंत्रता के बाद पहली बार, निर्वाचित जमीनी प्रतिनिधियों को गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए एक औपचारिक प्रोटोकॉल दिया गया था। पंचायतों को सामाजिक अंकेक्षण करने, शिकायतों को दूर करने और संसाधन उत्पन्न करने का अधिकार दिया गया था। पंचायत लेखा सहायकों और पंचायत सचिवों के पदों को विज्ञापित कर भरा गया।
प्रत्येक पंचायत प्रतिनिधि को आतंकवाद से संबंधित किसी भी घटना में मृत्यु होने पर 25 लाख रुपये का बीमा कवर प्रदान किया गया है।
पिछले तीन वर्षो के दौरान जम्मू-कश्मीर में पंचायत घरों के दो सौ नए भवनों के निर्माण को मंजूरी दी गई है। लगभग 200 पंचायत घरों का जीर्णोद्धार किया गया है।
जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा आयोजित बैक टू विलेज कार्यक्रम के कारण अधिकारियों ने पंचायतों का दौरा किया और ग्राम प्रधानों को उन कार्यो को अंजाम देने में मदद की, जिनकी पहचान स्थानीय लोगों ने की थी। बैक टू विलेज कार्यक्रमों के दौरान वित्त पोषण के लिए 372 करोड़ रुपये के लगभग 19,000 ऋण मामलों की पहचान की गई। पहल के दौरान 4,600 महिला उद्यमियों सहित 15,200 ऋण मामलों को मंजूरी दी गई।
--आईएएनएस
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