पटना के युवक, युवतियों में पशुप्रेम, रात को लावारिस कुत्तों को खिलाते हैं भोजन

पटना, 31 जुलाई (आईएएनएस)। आमतौर पर कहा जाता है कि 15 से 18 वर्ष की उम्र बच्चों के मस्ती करने की होती है लेकिन पटना में इसी उम्र में कई बच्चों में लावारिस जानवरों के प्रति ऐसा प्रेम जगा कि अब उनकी देखभाल करना और उन्हें खाना खिलाना उनकी दिनचर्या बन गई।
पटना के युवक, युवतियों में पशुप्रेम, रात को लावारिस कुत्तों को खिलाते हैं भोजन
पटना के युवक, युवतियों में पशुप्रेम, रात को लावारिस कुत्तों को खिलाते हैं भोजन पटना, 31 जुलाई (आईएएनएस)। आमतौर पर कहा जाता है कि 15 से 18 वर्ष की उम्र बच्चों के मस्ती करने की होती है लेकिन पटना में इसी उम्र में कई बच्चों में लावारिस जानवरों के प्रति ऐसा प्रेम जगा कि अब उनकी देखभाल करना और उन्हें खाना खिलाना उनकी दिनचर्या बन गई।

बिहार की राजधानी पटना में 15 से 20 युवक युवतियों का ऐसा समूह है जो मुहल्लों के दुकान बंद होने के बाद सड़कों पर निकलता है और लावारिस कुत्तों को न केवल भोजन कराता है, बल्कि उनके गले में रेडियम बेल्ट का पट्टा पहनाता है, जिससे रात में इन्हे दुर्घटना से बचाया जा सके।

इन बच्चों की टोली में दसवीं से लेकर 12 वीं तक के छात्र, छात्राएं शामिल हैं जो अपने पॉकेट मनी और लोगों के सहयोग से यह काम कर रहे हैं।

पटना सिटी के तीन किलोमीटर के दायरे में ये लोग रात होते ही निकलते हैं और लावारिस जानवरों खासकर कुत्तों को दूध और ब्रेड खिलाते हैं।

टीम के नेतृत्वकर्ता रौनक जैन आईएएनएस से कहते हैं कि करीब तीन साल पहले मेरे सामने एक दुर्घटनाग्रस्त कुत्ते ने दम तोड दिया था, लेकिन हम कुछ कर नही सके। इसी दिन मैंने यह निर्णय लिया कि इन लावारिस कुत्तों के लिए बहुत कुछ तो नहीं कर सकता, लेकिन भोजन तो उपलब्ध करा ही सकता हूं। इसके बाद इसकी शुरूआत की गई।

उन्होंने बताया कि शुरू में हम तीन मित्रों ने इसकी शुरूआत की थी, और अब तो हमारी संख्या 15 से 20 तक हो गई है।

इसी ग्रुप में शामिल आयुष मिश्र बताते हैं कि जो बच्चे उच्च शिक्षा के लिए बाहर पढ़ने चले जाते हैं, वे वहीं पर यह काम प्रारंभ कर देते है। उन्होंने कहा कि इसके लिए दूध और ब्रेड लेकर कुत्तों को खिलाया जाता है। वे दावा करते हुए बताते हैं कि प्रतिदिन 70 से 80 लावारिस कुत्ते मिल जाते हैं, जिन्हें खाना खिलाया जाता है।

ग्रुप में शामिल 12वीं की देवांशी चौधरी बताती हैं कि हम सभी सप्ताह में 50 से 100 रुपए पॉकेट मनी का पैसा जमा करते हैं और कुछ अभिभावक जन मदद करते हैं, जिससे दूध और ब्रेड खरीद लिया जाता है।

वे बताती हैं प्रतिदिन दो से तीन घंटे यह कार्य किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में इस कार्य को लेकर लोग हंसते थे लेकिन अब हमारे अभिभावक भी इस कार्य में रुचि लेने लगे।

ऐसा नहीं कि ये बच्चे केवल कुत्ते को ही भोजन उपलब्ध कराते हैं, रात को अगर सड़कों पर गाय, बैल या कोई भी जानवर लावारिस मिलता है तो उसके लिए भोजन उपलब्ध कराया जाता है।

ये छात्र बताते हैं कि दुकान खुला रहने पर सड़कों पर भीड़ रहती है। इस कारण लावारिस जानवर सड़कों पर दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन दुकान बन्द होने के बाद ये जानवर आसानी से मिल जाते हैं, इस कारण दुकान बंद होने के बाद ही हमलोग निकलते हैं।

बहरहाल, इन छात्र छात्राओं की इस पहल का स्थानीय अभिभावक भी अब सराहना कर रहे हैं। अभिभावकों का मानना है कि इस उम्र में सामाजिक कार्यों में रुचि अच्छी बात है।

--आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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