पौड़ी जिले के विस्थापितों को 28 साल बाद मिलेगा मालिकाना हक

काशीपुर, 3 अगस्त (आईएएनएस)। उत्तराखंड में पौड़ी जिले के झिरना से विस्थापित सैकड़ों परिवारों को 28 साल बाद काशीपर में भूमि का मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जग गई है। यह उम्मीद की किरण कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने जगाई है। रावत ने बीते 27 जुलाई को क्षेत्र का दौरा किया था। साथ ही मौके पर मौजूद अधिकारियों को मालिकाना हक संबंधी अन्य कागजी कार्रवाई को पूरा करने के दिशा निर्देश दिए थे। जिसके बाद इन विस्थापित परिवारों के चेहरों पर खुशी नजर आ रही है।
पौड़ी जिले के विस्थापितों को 28 साल बाद मिलेगा मालिकाना हक
पौड़ी जिले के विस्थापितों को 28 साल बाद मिलेगा मालिकाना हक काशीपुर, 3 अगस्त (आईएएनएस)। उत्तराखंड में पौड़ी जिले के झिरना से विस्थापित सैकड़ों परिवारों को 28 साल बाद काशीपर में भूमि का मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जग गई है। यह उम्मीद की किरण कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने जगाई है। रावत ने बीते 27 जुलाई को क्षेत्र का दौरा किया था। साथ ही मौके पर मौजूद अधिकारियों को मालिकाना हक संबंधी अन्य कागजी कार्रवाई को पूरा करने के दिशा निर्देश दिए थे। जिसके बाद इन विस्थापित परिवारों के चेहरों पर खुशी नजर आ रही है।

बता दें कि साल 1994 में पौड़ी के ग्राम धारा, झिरना और कोठीरो के सैकड़ों परिवारों को कॉर्बेट रिजर्व की ओर से जंगली जानवरों के आतंक के चलते वन बंदोबस्त के तहत विस्थापित किया गया था। इन परिवारों को काशीपुर के मानपुर, प्रतापपुर और रामनगर के आमपोखरा में बसाया गया था। तत्कालीन तहसीलदार ने पैमाइश कर भूमि भी आवंटित कर दी थी। लेकिन 28 साल गुजरने के बाद भी उन्हें मालिकाना हक भी नहीं मिल पाया।

क्षेत्रवासियों के मुताबिक, पिछले 28 सालों से मालिकाना हक नहीं मिलने की वजह से वो सभी अपने भू-स्वामित्व संबंधित अभिलेखों को काशीपुर तहसील में ऑनलाइन दर्ज करवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसके चलते विस्थापित परिवारों को सरकारी योजनाओं और यहां तक कि किसान सम्मान निधि और लोन आदि सुविधाओं का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। विभिन्न प्रयासों के बावजूद भी सरकार की ओर से इस पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए ग्रामीणों ने विधानसभा चुनावों का बहिष्कार भी किया था।

वहीं, पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने बीते दिनों काशीपुर में तहसील और एसडीएम कार्यालय के निरीक्षण के दौरान उक्त क्षेत्र का भी दौरा किया। इस दौरान उनके साथ जिलाधिकारी युगल किशोर पंत और उपजिलाधिकारी अभय प्रताप सिंह मौजूद रहे। कुमाऊं कमिश्नर ने बताया कि उस वक्त फॉरेस्ट विभाग ने इन लोगों को डिनोटिफाइड कर जो जमीन दी थी, उस पर बंदोबस्त करने के ऑर्डर हुए थे। फॉरेस्ट विभाग ने जो जमीन दी थी, वो 106 हेक्टेयर थी।

बंदोबस्त में बने नक्शे के मुताबिक, यह भूमि 103 हेक्टेयर रह गई। मौके पर पाया गया कि बंदोबस्त में फॉरेस्ट का जो उस समय नोटिफिकेशन था, साथ ही जो पिलर थे, उसके आधार पर सही से सीमांकन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बंदोबस्त, राजस्व और फॉरेस्ट तीनों ही विभागों को निर्देशित किया गया है कि आपस में तालमेल बैठाकर व जमीन की सही नाप-जोख करें। साथ ही तत्कालीन बंदोबस्त, पिलर और नोटिफिकेशन कर अपना नक्शा बना कर दें। जिससे कि पक्की खतौनियां बनाई जा सकें।

उन्होंने यह भी स्पष्ट कर कहा कि उक्त भूमि पर यदि कोई कब्जा पाया जाता है तो कब्जा खाली कराने के जो भी नियम हैं, वो लागू किए जाएंगे।

स्थानीय निवासी अनिल भारद्वाज के मुताबिक, स्थानीय मीडिया के सहयोग से कमिश्नर उनके पास तक पहुंचे और उनकी समस्या सुनीं। मामले में अधीनस्थ अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए हैं। अभी तक उन्हें लगता था कि अधिकारी सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन अब उन्हें कार्रवाई की उम्मीद है।

--आईएएनएस

स्मिता/एसकेपी

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