हर हिंदुस्तानी बच्चे का हक है तंबाकू-मुक्त माहौल (बाल अधिकार दिवस पर विशेष)

नई दिल्ली, 20 नवंबर (आईएएनएस)। महज 10 साल तक की उम्र के छोटे-छोटे बच्चे भी आजकल बड़ी संख्या में तंबाकू की लत का शिकार हो रहे हैं और जीवन भर की लत में फंस रहे हैं। इन्हें तंबाकू-मुक्त माहौल उपलब्ध करवाना न सिर्फ देश का उत्तरदायित्व है, बल्कि नई पीढ़ी का हक भी है। बाल अधिकार दिवस (20 नवंबर) के मौके पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने इस दिशा में कॉटपा कानून में संशोधनों को जल्द से जल्द पारित कर लागू करवाने को बहुत उपयोगी बताया है।
हर हिंदुस्तानी बच्चे का हक है तंबाकू-मुक्त माहौल (बाल अधिकार दिवस पर विशेष)
हर हिंदुस्तानी बच्चे का हक है तंबाकू-मुक्त माहौल (बाल अधिकार दिवस पर विशेष) नई दिल्ली, 20 नवंबर (आईएएनएस)। महज 10 साल तक की उम्र के छोटे-छोटे बच्चे भी आजकल बड़ी संख्या में तंबाकू की लत का शिकार हो रहे हैं और जीवन भर की लत में फंस रहे हैं। इन्हें तंबाकू-मुक्त माहौल उपलब्ध करवाना न सिर्फ देश का उत्तरदायित्व है, बल्कि नई पीढ़ी का हक भी है। बाल अधिकार दिवस (20 नवंबर) के मौके पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने इस दिशा में कॉटपा कानून में संशोधनों को जल्द से जल्द पारित कर लागू करवाने को बहुत उपयोगी बताया है।

इसी तरह, युवा नेता और महाराष्ट्र भाजपा की प्रवक्ता श्वेता शालिनी ने बच्चों की तंबाकू की लत छुड़ाना नई पीढ़ी के लिए जरूरी बताते हुए सभी दलों को इसमें सहयोग की अपील की।

इस महीने की 29 तारीख से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार यह संशोधन बिल पेश कर सकती है। यह संशोधन लाखों देशवासियों को इस बुरी लत से बचाने में मददगार होंगे। इसमें नई पीढ़ी को तंबाकू का शिकार बनने से रोकने के कई जरूरी प्रावधान हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय पहले ही इन संशोधनों को विमर्श के लिए सार्वजनिक कर चुका है। इसमें तंबाकू उत्पादों की बिक्री करने की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष करने, विज्ञापन पर व्यापक प्रतिबंध लगाने और सिगरेट या बिड़ी की पैकेट खोलकर एक-एक बत्ती की खुली बिक्री पर रोक लगाने जैसे प्रावधान हैं।

एनसीपीसीआर प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने कहा, सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों पर नियंत्रण लगाने वाले कॉटपा कानून में संशोधन पारित हो गए तो यह जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट की तरह सख्त और प्रभावी हो जाएगा और यह तंबाकू-मुक्त माहौल हासिल करने के बच्चों के मौलिक अधिकार के संरक्षण के लिए बहुत प्रभावी होगा। इससे दोनों कानूनों में एकरूपता आएगी और इन्हें प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकेगा।

उन्होंने उम्मीद जताई है कि ये संशोधन ना सिर्फ संसद में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के समर्थन से पारित हो पाएंगे, बल्कि इन पर विस्तार से चर्चा कर देश भर में इसे जनांदोलन बनाने पर भी जोर दिया जाएगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रमुख ने जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि वे अपने इलाकों में बच्चों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करें और उन्हें अपने साथ जोड़ें। उन्होंने राज्य सरकारों की ओर से तंबाकू-रोधी कानून के प्रावधानों को सुनिश्चित करवाने के लिए पुलिस एजेंसियों के साथ नियमित बैठक की जरूरत भी बताई।

इसी तरह महाराष्ट्र भाजपा प्रवक्ता श्वेता शालिनी ने बच्चों को निशाना बनाने वाले तंबाकू कारोबार पर सख्ती की वकालत की। उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे (जीवाईटीएस)- भारत की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, यह बड़ी चिंता की बात है कि हमारी युवा पीढ़ी को बहुत कम उम्र से ही तंबाकू उत्पादों की लत लगवाई जा रही है। रिपोर्ट बताती है कि युवा तंबाकू उपयोगकर्ताओं में से सिगरेट पीने वाले 38 प्रतिशत, बीड़ी पीने वाले 47 प्रतिशत और चबाने वाले उत्पादों का उपयोग करने वाले 52 प्रतिशत ने इसका पहली बार सेवन 11 साल से कम उम्र में ही कर लिया था।

शालिनी भारत के सबसे बड़े स्पीकर्स प्लेटफार्म स्पीकइन की ओर से आयोजित वेबिनार में भाग ले रही थीं। शनिवार को बाल अधिकार दिवस के अवसर पर आयोजित इस वेबिनार का विषय था- सख्त तंबाकू-रोधी कानून कैसे हमारी अगली पीढ़ी को सुरक्षित रखने में हैं मददगार।

तंबाकू मुक्त भारत के लिए लंबे समय से कार्यरत श्वेता शालिनी ने अपने फायदे के लिए छोटे बच्चों को जीवन भर के लिए तंबाकू की लत लगा देने वाले उद्योग को काबू करने के लिए गंभीर प्रावधानों की वकालत की। उन्होंने कहा, जो लोग कम उम्र में तंबाकू उत्पादों का सेवन शुरू कर देते हैं, उन्हें निकोटीन की लत ज्यादा आसानी से लग जाती है और उन्हें इसे छोड़ने में समस्या भी ज्यादा होती है। तंबाकू उद्योग इस बात को अच्छी तरह से समझता है और इसी बात का फायदा उठाना चाहता है।

श्वेता शालिनी ने कहा, बच्चों का यह मौलिक अधिकार है कि उन्हें एक ऐसा माहौल मिले, जिसमें वह इस तरह के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रहें, उन पर तंबाकू उत्पादों को इस तरह थोपा नहीं जाए। साथ ही हम वयस्कों का यह कर्तव्य भी है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को तंबाकू-मुक्त और स्वस्थ्य भारत प्रदान करें।

उन्होंने खास तौर पर ध्यान दिलाया कि भारत अपनी जीडीपी का 1 प्रतिशत से ज्यादा तंबाकू की वजह से होने वाली बीमारियों पर गंवा देता है।

वहीं, प्रियंक कानूनगो ने तंबाकू कंपनियों पर अपने व्यावसायिक हितों के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस मामले में फिल्मी हस्तियां और कथित सेलिब्रिटी भी कम दोषी नहीं हैं। वे बच्चों की सेहत और देश के भविष्य को भुलाकर उन्हें हानिकारक उत्पादों की ओर उकसाते हैं। ऐसे उत्पादों का परोक्षा विज्ञापन करने वाले फिल्म कलाकारों को चेताते हुए उन्होंने कहा कि वे विज्ञान संबंधी दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन कर रहे हैं। हाल ही में फिल्म कलाकार अमिताभ बच्चन ने घोषणा की थी कि वह ऐसे विज्ञापनों से अब दूर रहेंगे, हालांकि बहुत से दूसरे फिल्म कलाकार अब भी इस तरह के विज्ञापन कर रहे हैं।

बाल आयोग प्रमुख ने तंबाकू कंपनियों के लिए काम करने वाली विभिन्न फर्म पर कड़ाई की वकालत करते हुए कहा कि ऐसी इकाइयों के नाम सार्वजनिक होने चाहिए और उन्हें बच्चों के कल्याण से जुड़े किसी कार्यक्रम या सर्वे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ये इन आंकड़ों का उपयोग तंबाकू कंपनियों के फायदे के लिए करती हैं।

बहुत से ऐसे वैज्ञानिक अध्ययन हैं, जो साबित करते हैं कि अगर व्यक्ति को 21 वर्ष की अम्र तक तंबाकू उत्पादों से दूर रखा गया तो इसकी संभावना काफी बढ़ जाती है कि वह अपने बाकी जीवनकाल में भी तंबाकू उत्पादों से दूर ही रहेगा। बहुत से देशों ने पहले ही तंबाकू उत्पादों की बिक्री करने की न्यनतम आयु 21 वर्ष कर दी है, साथ ही सिगरेट-बीड़ी जैसे उत्पादों की पैकेट खोलकर खुली बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे खास तौर पर युवाओं को इनकी उपलब्धता कम हो पाती है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि तंबाकू-रोधी कानून में ऐसे प्रावधानों के माध्यम से बच्चों और युवाओं को तंबाकू उत्पादों से बचाया जा सकता है।

--आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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