भारत रत्न आचार्य बाबा विनोबा जन्म जयंती पर विशेष

Bharat ratn achary vinoba bhave
 


गांधी जो सोचते  थे,और करना चाहते थे विनोबा ने वही किया:दिलीप तायडे 


ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। गांधी विचारक दिलीप तायडे ने कहा कि गांधी और विनोबा आज भी प्रासंगिक हैं l दोनो का चिन्तन समग्र विश्व का चिन्तन था l गांधी अहिंसा और मानवता के पुजारी थे तो विनोबा करुणा की मुर्ति l विश्व के इतिहास में अहिन्सक क्रान्ति भूदान आन्दोलन के प्रणेता, प्रसिद्ध चिन्तक, मौलिक विचारक, दार्शनिक, ब्रम्हविध्या के उपासक, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी 11सितम्बर 1895 को जन्मे भारत रत्न संत आचार्य बाबा विनोबा महात्मा गांधी के के नेतृत्व मे चलने वाले स्वतन्त्रता आन्दोलन के बाद देश प्रेम ही नहीं विशुद्ध मानव प्रेम से भरा रचनात्मक आंदोलन चलाने वाले महान दार्शनिक थे l

उनका व्यक्तित्व अदभुत था  1916 मे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास के अवसर पर महात्मा गांधी के ऐतिहासिक भाषण और विचार से प्रभावित होकर जब उन्होने गांधी जी से मिलने का संकल्प लेकर जब उन्होने गांधी जी के आश्रम में प्रवेश किया और उनके पहली बार दर्शन किये तब उनकी गांधी जी के विचार और दर्शन मे ऐसी आस्था बनी की उन्होने गांधी जी के एकादश व्रत का पालन कर अपना समुचा जीवन गांधी और गांधी जी के आश्रम को समर्पित कर दिया था l वे मौलिक विचारक ही नहीं एक महान दार्शनिक भी थे l

उनमे अपने विचारो को व्यवहार में लाने की अद्भुत क्षमता थी l गांधी जी से प्रेरणा पाकर उन्होने जो कार्य किये वह गांधी जी के विचारो का क्रियात्मक रुप ही था, गांधी जो सोचते  थे,और करना चाहते थे विनोबा ने वही किया l सन 1940 मे देश के स्वतन्त्रता के लिए गांधी जी के नेतृत्व मे किये गये व्यकिगत सत्याग्रह के लिए प्रथम सत्याग्रही कौन होगे इस प्रश्न को लेकर जब लोगों में उत्सुकता बनी हुई थी तब कई लोगों का मत था कि प्रथम सत्याग्रही कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता या गांधी जी के निकट का कोई अनुयायी होगा लेकिन गांधी जी ने व्यकिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही विनोबा होगे जब यह घोषणा की तो सारा देश दंग रह गया l तब कई लोग विनोबा को जानते तक नही थे l

तब ये विनोबा कौन है उनके बारे में गांधी जी ने लिखा था " मेरे बाद अहिंसा के सरवोत्तम प्रतिपादक और उसे समझने वाले विनोबा ही है, विनोबा मुर्तिमान अहिंसा है, उनमे मेरी अपेक्षा काम करने की अधिक दृढता है 1940 मे हरिजन मे उन्होने लिखा था की विनोबा की स्मरण शक्ति अद्भुत है वे प्रकृति से विध्यार्थी है और आश्रम का हर छोटा बडा काम सुत कताई से लेकर पाखाना मैला सफाई तक का काम उन्होने किया है वे आश्रम के दुर्लभ रत्न है.

, संस्कृति का अध्ययन करने जब वे आश्रम से एक वर्ष की छुट्टी लेकर गये तब एक वर्ष समाप्त होने पर बगैर सुचना दिये वे उसी दिन और उसी समय आश्रम में वापस आ गये थे मै तो भुल ही गया था कि उनकी छुट्टी उसी दिन पुरी हो रही थीl विनोबा की गांधी जी मे उनकी पुर्ण आस्था थी l गांधी जी के निधन के बाद उन्होने रचनात्मक कार्यो के साथ भूदान और सरव्रोदय आन्दोलन चलाकर समाज को नई दिशा दी l अपने पदयात्रा के दौरान 1951मे तैलन्गाना के पोचम पल्ली गाव मे उन्हे वहा के कुछ हरिजन भुमिहिनो ने जीवन व्यापन करने के लिए सरकार से कुछ जमीन दिलाने का आग्रह किया तो उनकी अपिल पर तथा उनकी वाणी और विचार से प्रभावित होकर उन्हेगरिबो मे वितरीत करने के लिए कुछ भूमी वहा के कुछ जमींदारो ने उन्हे भूदान मे दी l वहा से ईश्वरीय प्रेरणा से भूदान और ग्राम दान आन्दोलन का ऐसा सुत्रपात हुआ कि उनका भूदान आन्दोलन अहिन्सक क्रान्तिकारी का देश और दुनिया के लिए एक अनुठा उदाहरण बन गया l

करीब 42हजार एकड भुमि भूदान मे प्राप्त कर उन्होने भुमीहिनो मे उसका वितरण किया गाव गाव मे पदयात्रा करकेमानव जगत को कत्ल के बजाय करुणा का रास्ता दिखाया l

संकुचित भावना से आगे बढकर विश्व बन्धुत्व और विश्व शान्ति की भावना के विकास के लिए जय जगत का नारा दिया l हरिजनो को मंदिर प्रवेश कराया, जीवन के उध्येश से भटके तथा हिंसा की राह पर चल पडे दस्यु डाकुओ को उन्होने मानव प्रेम से भरा मार्ग दिखाया l वे जहा भी जाते रुहानियत की बात करते थे वे कहते थे कि मजहब पचास हो सकते हैं लेकिन रुहानियत तो एक ही है l आज जब हमारे सामाजीक और राजनीतिक जीवन में हिंसा और अशान्ति बढती जा रही है तब विनोबा की तीसरी शक्ति मे निहित रुहानियत और सरवोदय की भावना ही हमे नई दिशा मिल सकती है l 
जय जगत l 

---------दिलीप तायडे
         गांधी विचारक

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