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दरोगा की पी-कैप बनी अपराधियों का सुरक्षा कवच- -कार में आगे दरोगा की पी-कैप रख अपराधी देते है पुलिस को चकमा-

लखनऊ. जिस प्रकार कार में आगे रखी माइक आईडी से पता चल जाता है कि कार किसी चैनल के पत्रकार की है। उसी तरह कार में आगे डैशबोर्ड पर दरोगा या इन्स्पेक्टर की पी-कैप रखी देख कर अंदाजा होता है कि कार में कोई पुलिस अधिकारी बैठा है।
इसी बात का फायदा अब आपराधिक प्रवृत्ति के लोग उठा रहे है। कार में आगे पुलिस की पी-कैप रखकर वे किसी भी चेकिंग होने पर आसानी से निकल जाते है।
पुलिस भी उनको अपना ही अधिकारी समझ कर रोकती नहीं है। अक्सर ऐसी गाड़ियों को पुलिस बिना चेक किये जाने देती है! एक जनपद से दूसरे जनपद जाने पर टोल टैक्स बचाने के लिये भी टोल बूूथ पर यही हथकंडा अपनाया जाता है।
घर में एक दरोगा होने पर पूरा खानदान उठाता है पी-कैप का फायदा-
वास्तव में संबंधित पुलिस अधिकारी के घर-परिवार के सदस्य, नातेदार-रिश्तेदार, दोस्त-यार कार में आगे में पीकैप रखकर टोल टैक्स या किसी भी तरह की पुलिस चेकिंग से बचने के लिए करते है और आसानी से पुलिस को चकमा देकर निकल जाते है। यही देखकर अब आपराधिक लोग भी कार में आगे पी-कैप रखकर पुलिस को चमका देकर आसानी से बच निकलतेे है।
धारा-188 के अंर्तगत गंभीर अपराध है-
दरअसल इस तरह के मामले गंभीर होने के साथ चेतावनी भी दे रहे हे। यह मामला आईपीसी की धारा-288 के अर्न्तगत एक गंभीर अपराध की श्रेणी में भी आता है। मामले का खुलासा तब हुआ जब चारबाग में ट्रैफिक पुलिस ने पुलिस की पी-कैप आगे रखी तीन कारों का चालान डायरेक्शन टू लॉ धारा-179 के तहत किया।
ये कारे बाहरी जनपद सीतापुर, कानपुर व बरेली की थी। पकड़े जाने पर किसी ने खुद को दरोगा का रिश्तेदार बताया तो किसी ने कहा कि दरोगा जी मेरे दोस्त है। यही नही एक कार पर पुलिस का हूटर भी लगा पाया गया। यह फर्जी कार्य उन्होने कुछ रूपयों का टोल टैक्स बचाने के लिये किया।
पुलिस व सेना के सामानों की बिक्री पर प्रशासन लगाये प्रतिबन्ध-
खुले बाजार में सेना व पुलिस की वर्दी, कैप आसानी से उपलब्ध होती है। जो कोई भी आसानी से खरीद कर उसका दुरूपयोग कर सकता है। चारबाग से लेकर सदर कैंट व तोपखाना आदि इलाकों में सेना व पुलिस से संबधित सामानों के कई दुकानें है। जिन पर ये सर्वसुलभ है। प्रशासन को यह देखना चाहिये कि इस तरह के सामान की बिक्री सही लोगों को ही हो। साथ ही दुकानदार को भी परिचय पत्र देखकर ही इस तरह के सामानों की बिक्री करे।
रसीद पर संबंधित सामान क्रय करने वाले का चेस्ट नंबर, थाना, जनपद आदि भी अंकित करे। जिला प्रशासन यह नियम सख्ती से लागू करने के लिये दुकानदारों को निर्देशित करंे। समय-समय पर पुलिस भी दुकानदारों के बिक्री रिकार्ड को चेक करती रहे।