कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी करेंगे

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। सबसे बडा गुरु तो संसार ही है जो सब कुछ चाहो न चाहो सिखा ही देता है_
गुरू पूजन की परंपरा का निर्वहन करते हुए हम सब इस बात को समझें गुरु कौन है हमे कैसे गुरु की आवश्यकता है कौन हमारे अवगुणो को सद्गुणों में परिवर्तित कर सकता है सच्चे अर्थों में खुद सच्चा गुरु भी सच्चे शिष्य की तलाश करता है।
*हम शिष्य नहीं राष्ट्र मित्र बनाना चाहते हैं*
शिष्य और गुरु के बीच सिर्फ जो सबंध है वह है निर्माण का, आचरण का, सत्य का, पवित्रता का, उदारता का, आनंद का यह सब मिलकर जो संबंध स्थापित होता है वह है गुरू शिष्य परंपरा
पैर पङकर धन देना या सिर्फ गुरु पूर्णिमा उत्सव मना लेना गुरु पूर्णिमा की सार्थकता नहीं है यह बंधन कई जन्मों की भूमिका ही बदल देगा निश्चित ही ।
*गुरू पूजन और भंडारा नहीं है गुरू पूर्णिमा उत्सव*
गुरु के आचरण पर चलते हुए जब शिष्य को गुरू देखते हैं तो आत्मिक आनंद पाते है और उस समय उस पर अपनी सकारात्मक संग्रहित ऊर्जा को प्रवेश कराते हैं हर गुरु अपने सारे अनुभव अपने शिष्य मे प्रवेश कराना चाहते हैं।
*कम शिष्य बनाना ठीक ही ठीक*
शिष्य ऐसे बनाये जाये जिनके द्वारा ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग हो ।
कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी द्वारा एक अनूठे समाज की नींव रखी जा रही है जिसमें अधिकार से पहले कर्तव्य का हो महत्व दया, समर्पण, संवेदना, संस्कार के साथ पवित्रता को मूल रूप से हर हृदय में स्थापित करने संकल्पित होकर मन वचन और कर्म से समर्पित है और अच्छी बात यह है कि बीज अंकुरित हो चला है।
भजन -कीर्तन, हवन- कन्या पूजन प्रसाद सेवा उपहार वितरण का कार्यक्रम आयोजित होगा साथ ही प्रकृति के रक्षण संवर्धन हेतु वृक्षारोपण कार्य उपस्थित जनो द्वारा होगा।