विंध्य कानन का अनुरागी साहित्यकार  मोतीलाल शर्मा :  अमित कुमार द्विवेदी          

shradhanjali
 जयंती विशेष........                               
                                                       
                      शिकारगंज सीधी निवासी पं. मोतीलाल शर्मा जी अपने मातृभूमि के प्रति समर्पित थे पेशे से शिक्षक होते हुए भी  वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को भांपते हुए उन्होंने राजनैतिक कार्यों में रुचि ली एवं गरीबों के मसीहा के रूप में जाने जाने लगे उन दिनों गरीबों का उत्पीड़न चरम पर था शिक्षकीय दायित्व, पारिवारिक दायित्व,सामाजिक दायित्व के साथ ही तानाशाही के विरुद्ध गरीबों का खुलकर साथ दिया वहीं से उनका साहित्यिक सफ़र शुरू हुआ और गरीबी का चित्रण किया -- टूटे खपरैलों से झांकते नित सूर्य चंद्र धूल के गुब्बारे बेरोकटोक आते हैं......बेसरम की लकड़ी से किनकी पकाते हैं। सर्वहारा वर्ग को पुनर्जागरण के लिए सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए - कस हो आसौं बड़कीबा का सुनेन कि टोना लाग जैसी कविता लिखकर अंधविश्वास को दूर करने के लिए प्रेरक कविता लिखी साथ ही - तब काहे पूजा के ढोढक करतै हय नकुआ दबाय के ..बिना दवाई ददऊ मरिगे झिलगटई खटिया मा कल्हरत रहे घरा मा तुहूं पय निकले संचेन कईतआइके इस तरह से लोगों को बाह्य आडंबर से दूर रहने का संदेश दिया साथ ही बड़ी पियार बड़ी गुरुतुल हय जइसन गुड़ के भेली, बघेली आपन बहुत रयामन बोली इस बघेली कविता के माध्यम से बहुत सुंदर ढंग से अपनी मातृभूमि की बघेली बोली  की महिमा का बखान बहुत ही सरल एवं सारगर्भित रुप में आमजन के सामने प्रस्तुत किए हैं।कई कविताओं का सृजन किए जो कि उनकी उपेक्षिता काव्य संग्रह में देखा जा सकता है। उनका काव्य-पाठ आकाशवाणी रीवा से प्रसारित होता था।भंवरसेन स्थित संवत् 1429 के सती लेख पर सिंहद्देव महाकाव्य की रचना की जिसमें पाप- पुण्य, नीति-अनीति,न्याय-अन्याय आदि का विश्लेषण किया। बाणभट्ट की जन्मस्थली के संबंध में उन्होंने खोजपूर्ण लेख लिखे। 
                    संवत् 324 में निर्मित विश्व प्रसिद्ध प्राचीन चंदरेह शिवमन्दिर एवं चंदरेह मठ के शिलालेख का वाचन कर दो पुस्तकें प्रकाशित की चंदरेह शैव मठ एवं शोणभद्र पदावली जिसमें शिलालेख में वर्णित श्लोंकों का पद्यानुवाद किया साथ ही 108 दोहामाल में अमरकंटक से लेकर भंवरसेन तक महानद सोन के पराक्रम का वर्णन कर पाठकों के अंतर्मन में सोन के प्राकृतिक मानवीकरण का चित्रण किया साथ ही भंवरसेन के महात्म्य के संबंध में पद लिखे।  चंदरेह शिलालेख दर्पण पुस्तक में शिलालेख में वर्णित श्लोंकों को संस्कृत भाषा में हू-ब-हू रुपांतरित किया जिससे आमजन भी पुस्तक के माध्यम से शिलालेख को पढ़ सके। उनकी जयंती पर आज राष्ट्र उनको नमन कर रहा है।
                           

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