विश्व महासागर दिवस पर ऑनलाइन एवं ऑफलाइन कार्यशाला आयोजित 

 ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय 

लखनऊ। भूगोल विभाग नेशनल पीजी कॉलेज एवं पीजी डिप्लोमा रिमोट सेंसिंग जीआईएस ने विश्व महासागर दिवस के अवसर पर ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मोड में कार्यशाला का आयोजन किया।

इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ.आर. मणि मुरली, प्रिंसिपल साइंटिस्ट,एसोसिएट प्रोफेसर, सीएसआईआर - (राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान), गोवा रहे। डॉक्टर मुरली,इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग, भारतीय राष्ट्रीय कार्टोग्राफिक संघ, भारतीय विज्ञान कांग्रेस, ओशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव तथा लाइफ मेंबर है।

डॉक्टर मुरली पिछले 21 वर्षों से सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग करते हुए तटीय प्रक्रियाओं, तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, भू-खतरों, तटीय भू-आकृति विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं, उन्होंने इस कार्यशाला में बताया कि समुद्र में बढ़ते तापमान के कारण 80 वर्षों में मछलियों की आबादी में औसतन 4.1 फीसदी की गिरावट आई है।

1930 से 2010 के बीच 1.4 मिलियन मैट्रिक टन मछली खो चुकी हैं। महासागरीय वार्मिंग से व्यक्तिगत प्रजातियों का ना केवल नुकसान हो रहा है बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र भी तबाह हो रहा है, उन्होने कहा की प्रति वर्ष समुद्र में गर्म लहरें  भी 50 फीसदी तक बढ़ गई हैं तथा मार्च 2020 में किये गए पूर्वानुमान के अनुसार, समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ की ‘ब्लू इकॉनोमी’ को प्रत्यक्ष तौर पर प्रतिवर्ष 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो जाएगा इसलिए वन टाइम प्लास्टिक यूज को तुरंत रोक देना चाहिए क्योंकि प्लास्टिक कचरा सीवरों को अवरुद्ध करता है, जिसके कारण समुद्री जीवन को खतरा उत्पन्न होता है और लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में निवासियों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।


उन्होंने नेशनल पीजी कॉलेज के भूगोल विभाग के साथ भविष्य में अंतर संस्था प्रोग्राम के तहत महासागरों से संबंधित रिसर्च, इंटर्नशिप एवंअन्य अवेयरनेस प्रोग्राम में कोलैबोरेटिव कार्य करने का प्रस्ताव भी रखा।


कॉलेज के प्रबंधक  उज्जवल रमण सिंह ने बताया की महासागरों के कारण ही धरती का रंग नीला होता है तथा पृथ्वी पर ऑक्सीजन का सबसे बढ़ा सोर्स महासागर ही है, यही नहीं  हमारे सांस लेने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले ऑक्सीजन का 70 से 80 प्रतिशत ऑक्सीजन महासागरों में पाए जाने वाले जीवों से प्राप्त होता है इसलिए हम सभी को महासागरों के संरक्षण लिए निरंतर कार्यरत रहना चाहिए।
 
इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि संगोष्ठी का मुख्य उद्येश्य महासागर के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति जागरूकता फैलाना है क्योंकि पृथ्वी पर जीवन में महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है इसी कारण यूएनओ की महासभा में वर्ष 2008 में 8 जून को वर्ल्ड ओशन डे के रूप में मनाने की आधिकारिक घोषणा की गई ।

प्रोफेसर पीके सिंह, अध्यक्ष भूगोल विभाग नेशनल पीजी कॉलेज ने कहा की महासागरों में इतना नमक है कि अगर महासागर सूख जाएंगे तो पूरी धरती पर 500 फीट मोटी नमक की परत बिछाई जा सकती है, अतः महासागरों की रक्षा करना हमारा दायित्व है और हम सभी को इसके प्रति जागरूकता बनाने का कार्य सदैव करते रहना चाहिए।

डॉ ऋतु जैन, संगोष्ठी की सह- समन्वयक ने कहा कि हर साल करीब आठ मिलियन मैट्रिक टन प्लास्टिक दुनिया के महासागरों में जाता है। इस वजह से दिन पर दिन समुद्र में प्लास्टिक की वृद्धि हो रही है और समुद्र में प्रदूषण फैल रहा है। नॉर्थवेस्ट पेसिफिक और आर्कटिक के अन्य हिस्से भी समुद्री प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। समुद्र में तैरने वाले प्लास्टिक से हर साल एक मिलियन से ज्यादा जलीय जीवों और पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक का जीवों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। रसायनों के कारण बैक्टीरिया को बढ़ने और ऑक्सीजन का उत्पादन करने में कठिनाई होती है। ग्लोबल वार्मिंग से मछलियों को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है ।


अंत में डा ऋतु जैन ने ऑफलाइन तथा ऑनलाइन मोड पर संगोष्ठी में उपस्थित लगभग डेढ़ सौ फैकल्टी मेंबर्स एवं भारत के विभिन्न कॉलेजों से जुड़े हुए शिक्षकों को बधाई दी तथा भविष्य में मिलकर महासागरों एवं पर्यावरण से संबंधित कार्यों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हुए कार्य करने का प्रण लिया।


इस संगोष्ठी में बिहार के रामेश्वर प्रसाद, गोरखपुर के प्रोफेसर एसके दीक्षित, प्रोफेसर एसके सिंह, प्रोफेसर के एन सिंह, डॉक्टर जय दुर्गेश, डॉक्टर सुनील बेरवा, डॉक्टर सुधीर कुमार जैसे महान भूगोल के विद्वानों ने अपने पक्ष को रखा। छात्र-छात्राओं में गौरव आर्य, अर्पित गुप्ता, चंद्र प्रकाश वर्मा, अमन शुक्ला, शिवम पांडे, स्वधा दीक्षित, अनिकेत, सृष्टि, देवांशी, रजत, रजनीकांत यादव, शिवाली दीक्षित, अंतस राज, अचिंत्य राज आदि ने अपने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए ।
 

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