मन की शांति सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है पंडित विजय शंकर मेहताै - पंडित विजय शंकर मेहता

राम कथा

 
गतिमान सामाजिक सेवा संस्थान द्वारा कृपा राम की सफल हनुमान व्याख्यान का आयोजन हुआ
मंदसौर - गतिमान सामाजिक सेवा संस्थान द्वारा सुरंदकांड पर आधारित कृपा राम की सफल हनुमान व्याख्यान का आयोजन हुआ। व्याख्यान को प्रसिद्ध जीवन प्रबंधन गुरु व हनुमान भक्त पं. विजयशंकर मेहता ने संबोधित किया। पं. मेहता ने कहा कि सुंदरकांड की शुरुआत शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंश् यानी कि शांति शब्द से ही होती है। मानव जीवन में सुख के साथ शांति होना भी जरूरी है। सुख तो खोज लेंगे लेकिन शांति तो स्वयं को ही अर्जित करना पड़ती है। आपने अशांति के पांच मार्ग बताए। संसार मार्ग, संपत्ति मार्ग, संबंध मार्ग, स्वास्थ्य मार्ग व संतान मार्ग। सभी का निदान सुंदरकांड है।

राम कथा

जीवन में सुख के साथ शांति हो तो जीवन और भी सुंदर लगने लगेगा। प्रवचन में आपने कहा कि सुंदरकांड की शुरुआत श्जामवंत के बचन सुहाए, सुनि हनुमंत हृदय अति भाएश् चौपाई से होती है। तुलसीदासजी चाहते तो भगवान श्रीराम या हनुमान शब्द से ही सुंदरकांड की शुरुआत कर सकते थे लेकिन जामवंत जो कि सबसे वयोवृद्ध थे। उनके नाम से ही शुरुआत करना यह सीख देता है कि जब कोई बड़ा काम करें तब बड़े- बूढ़ों को सम्मान जरूर दें। कितना भी बड़ा काम होगा, उसकी जीत निश्चित होगी। युवाओं से विशेष तौर पर कहा कि जीवन के व्यस्त समय में से सिर्फ 10-15 मिनट अकारण वरिष्ठजन के पास अवश्य बैठे। ईश्वर इसे ही आपकी पूजा के समय में जोड़ लेगा।
जीवन की सफलता के छः सूत्र
पं. मेहता ने कहा कि  सुंदरकांड हनुमानजी का शब्दावतार है, इससे हमें जीवन में सफलता के छह सूत्र सक्रियता, सजगता, संघर्ष, समर्पण, संवेदनशीलता व समझदारी की सीख मिलती है। सफलता के साथ और इसके बाद क्या करें, यह भी शिक्षा देता है। कृपा व सफलता का मार्ग प्रशस्त करने के साथ मन की अशांति का निदान भी सुंदरकांड ही है। इससे जीवन का रूपांतरण हो सकता है।

आधार व योजना मजबूत होना चाहिए
राम काज किन्हें बिनु, मोहि क्हां विश्रामश् का अनुसरण करते हुए हनुमानजी ने लंका जाते समय सोने के पर्वत मैनाक को सिर्फ पड़ाव माना और रामकाज के लिए निकल गए। हमें सीख दी कि छलांग लंबी लगाना हो तो आधार व योजना मजबूत होना चाहिए और राज काम रूपी जीवन की श्रेष्ठता को पाने के लिए आगे - बढ़ते रहें। 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीराम का प्रतिष्ठा महोत्सव उसी का उदाहरण है। आपने कहा कि बचपन में नींव मजबूत हो जाए तो जवानी लडखड़ाती नहीं। हनुमानजी की तरह तन से सक्रिय रहें व मन से विश्राम - करें लेकिन वर्तमान परिदृश्य इसके उलट है जिसका सुधार होना चाहिए। सजगता में लक्ष्य, ऊर्जा व समय तीनों का ध्यान रखना चाहिए।

संघर्ष जीवन का पहला पड़ाव
लंका में माता सीता को ढूंढते समय भगवान हनुमानजी तक को संघर्ष करना पड़ा था। हम संघर्ष को दुर्भाग्य मानते हैं। जिसको संघर्ष के बाद का परिणाम पता है, वह उसकी गहराई को समझता है। यदि तीर तश्तरी में मिल जाएगा तो उथला हो जाएगा। लंका जाते समय भगवान हनुमान हर्ष, विनम्रता व तनावमुक्त होकर गए। जब लौटे तो उनका मुख प्रसन्न होकर तन पर तेज था। सच्चे भक्त यह सीखें कि 8 या 12 घंटे बाद भी हमारी प्रसत्रता कम नहीं होनी चाहिए। साथ ही लंकिनी के सामने छोटा रूप करके निकल जाना यह दर्शाता है कि ऊर्जा नष्ट नहीं करके बड़े खेल में किस तरह छोटा बनकर आगे बढ़ा जाता है क्योंकि अकड़ के साथ लंबी यात्राएं नहीं होती हैं।
इससे पूर्व गतिमान सामाजिक सेवा संस्थान के संरक्षक व क्षेत्रिय सांसद सुधीर गुप्ता ने पं. विजय शंकर मेहता व कार सेवको का स्वागत किया और स्वागत भाषण दिया। मंच पर पं. दशरथभाईजी, पं. शिवकरण प्रधान भी मंचासीन थे।

यह भी रहा खास
शहर की प्रतिभा गिटारिस्ट गौरव जोशी, गायक सतीश हाड़ा व बाल कलाकार तबला वादक गीता अखंड शर्मा ने प्रस्तुति दी। साथ ही बाल कलाकारों द्वारा संक्षिप्त रामलीला का मंचन किया गया।
सभी पुरुष पारंपरिक वेशभूषा कुर्ता व धोती में नजर आए। सर्द मौसम में भी बड़ी संख्या में महिला- पुरुषों के साथ बच्चे कार्यक्रम में शामिल हुए।

Share this story