रिया की इस कहानी को पढ़ लें मनोबल बढ़ जायेगा 

moral

 सपने देखने का हक़ हम सभी को होता है चाहे वो अमीर हो या गरीब, लड़का हो या लड़की। लेकिन जब हमारे सपने लोगों की कल्पनाओं से भी बड़ी हो तो उसे पूरा करना हमें कई बार असम्भव-सा लगने लगता है जिसकी वजह से हमारा मनोबल भी गिर जाता है, लेकिन अगर खुद पर विश्वास बनाए रखा जाए तो हमें अपनी मंज़िल मिल ही जाती है।


ऐसी ही एक कहानी है रिया की जो राजस्थान के एक छोटे से गाँव भीलवाड़ा की रहने वाली है वो सरकारी स्कूल के नवीं कक्षा में पढ़ती और उसके साथ उसके पिताजी (रामलाल) और उसकी माँ (सुनीता) रहते थे रामलाल एक किसान थे और सुनीता सिलाई का काम करती और इसी तरह से दोनों मिलकर घर चलाते और अपनी बेटी को पढ़ाया भी करते।


रिया के परिवार के पैसे की कमी की वजह से काफी दिक्कतें आती थीं और इसलिए रामलाल ने रिया का दाखिला एक सरकारी स्कूल में करवाया था, रिया अपने आस-पास कई सारे बच्चों को देखा करती की वे काफी बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ते और महंगे-महंगे खिलौने और कपड़े पहना करते, पर रिया एक बहुत ही समझदार लड़की थी उसे पता था की उसके पिताजी के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो उसे यह सारी सुविधाएँ और महंगी-महंगी चीज़े दे सकें इसलिए उसे बिलकुल भी बुरा नहीं लगता था।


रिया एक बहुत ही होनहार और तेजस्वी लड़की थी वो अपने स्कूल में हमेशा अव्वल आती थी, रिया का एक सपना था की उसे आसमान में उड़ना है वो जब कभी भी हवाई विमान की आवाज़ सुनती तो दौड़ कर छत पर जाती और उस हवाई विमान को बड़ी ही उत्तेजना भरी नज़रों से देखती और बस देखती ही रहती और मन ही मन सोचती की मुझे भी वहाँ पहुँचना है और आसमान में उड़ान भरनी है, वो वहाँ कैसे पहुँचेगी कब पहुँचेगी उसे कुछ पता नहीं था पर फिर भी उसने अपना मन बना लिया था।


रिया को पता था की उसके घर की आर्थिक हालत बहुत ही खराब है इसलिए वो बहुत ही मेहनत करती ताकि एक दिन वो अपनी मंज़िल को पाकर अपने माँ-बाप को एक बेहतरीन ज़िन्दगी दे सके।
धीरे-धीरे समय बितता गया और रिया बड़ी होती गई, अब रिया बारहवीं कक्षा में पहुँच चुकी थी और अब वो एक विमान परिचारिका (एयर होस्टेस) बनना चाहती थी उसके अपने सपने को पंख देने का वक्त भी नज़दीक आ गया था उसने अभी तक अपने इस सपने के बारे में अपने घरवालों से एक बार भी ज़िक्र नहीं किया था।


अब रिया की बारवहीं की परिक्षा भी खत्म हो चुकी थी और वो बहुत ही अच्छे अंकों से उत्तीर्ण भी हुई थी, रामलाल और सुनीता भी बहुत ही खुश थे।
रिया ने सोचा की यही सही मौका है की वो अपने घरवालों को बता दे की वो अब आगे क्या करना चाहती है उसने बहुत ही हिम्मत जुटाकर सबको अपने लक्ष्य के बारे में बताया, रिया के माँ-बाप उसके इस लक्ष्य के बारे में सुनते ही एकदम सोच में पड़ गए और चिंतित हो गए।


रामलाल ने रिया से कहा की तुम्हारा यह सपना बहुत ही बड़ा और महंगा है हमारे जैसे साधारण और गरीब लोग इतने ऊँचे ख्व़ाब नहीं देखा करते और यही सारी बातें बोल कर वो वहाँ से अपने कमरे में सोने चले गए, रिया अपने बापू की इस बात को सुन कर एकदम टूट-सी गई उसे लगने लगा की अब उसका यह सपना पूरा नहीं हो सकता क्योंकि उसके पिताजी ही उसका साथ देने को तैयार नहीं वो बहुत ही रोने लगी।
सुनीता से अपनी बेटी की ऐसी हालत देखी नहीं गई उसने रामलाल को बहुत ही समझाया और जैसे-तैसे कर के इस बात के लिए राज़ी किया, सुबह होते ही रामलाल ने रिया को मंज़ूरी दे दी अब रिया बहुत ही खुश थी ।
रिया अपने प्रथम ईंटरव्यू के लिए दिल्ली जा रही थी उसका आत्मविश्वास बहुत ही मज़बूत था, उसने अपने ईंटरव्यू को बहुत ही अच्छे से दिया सबकुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था वहीं दूसरी तरफ रामलाल ने अपने कुछ रिश्तेदारों से बताया की उनकी बेटी एक विमान परिचारिका (एयर होस्टेस) के ईंटरव्यू के लिए दिल्ली गई है, यह सुनते ही कुछ रिश्तेदारों ने रामलाल के दिमाग में कुछ गलत बातें डाल दी की यह पेशा लड़कियों के लिए बिलकुल भी सही नहीं है तुम अपनी बेटी को इस पेशे में मत जाने दो, और यह सारी बातें रामलाल के दिमाग में घर कर गई रिया के बापू बहुत ही भोले थे।


रिया अब भीलवाड़ा अपने घर आ गई थी वो जब वापस आई तो उसने अपने माँ-बाप को बताया की उसका ईंटरव्यू बहुत ही अच्छा गया और उसका चुनाव भी हो गया है और वो अब अपने आगे के पड़ाव के लिए भी एकदम तैयार और उत्साहित है, तभी रामलाल ने रिया से कहा की वो जो पढ़ाई कर रही है वो सही नहीं है और वो अब इसे जारी नहीं कर सकती रामलाल की यह सारी बातें सुन कर रिया बहुत ही अचम्भित हो गई और फिर उसने रामलाल से पूछा की वो उसे क्यों मना कर रहे हैं तब रामलाल ने रिया को बताया की उसके कुछ रिश्तेदारों ने उससे कहा है की यह पेशा अच्छा नहीं है।
रिया को यह सारी बातें जानकर बहुत ही गुस्सा आया और उसने अपने बापू से कहा कहा की ऐसा कुछ भी नहीं है हमें लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, रिया और उसकी माँ सुनीता ने मिलकर रामलाल को फिर से बहुत समझाया सुनीता शुरू से ही अपनी बेटी रिया का साथ देती गई क्योंकि उसे यकीन था की उसकी बेटी एक दिन अपनी उड़ान ज़रूर भरेगी, रामलाल ने भी अब लोगों की बातों पर ध्यान देना छोड़ दिया और अपनी बेटी का साथ दिया।


रिया को पता चला की अब उसे अपने आगे के पड़ाव के लिए मुम्बई जाना पड़ेगा जिसके लिए उसे 70,000 हज़ार रूपये की ज़रूरत है
यह बात पता चलते ही रिया बहुत ही दुविधा में पड़ गई वो सोचने लगी की इतनी बड़ी रक़म वो कहाँ से लाएगी।


रामलाल एक किसान था और माँ सुनीता सिलाई का काम करती जिसकी वजह से घर में पैसे बड़ी ही मुश्किल से और बहुत कम ही आ पाते थे, रिया अब पूरी तरह से टूट चुकी थी उसने यह बात अपनी माँ सुनीता को बताई की अब वो अपने सपने को पूरा नहीं कर सकती है उसका सफर यही तक का था, सुनीता को यह जान कर बहुत ही दुख हुआ उसकी आँखों से आसूँ निकल आए।
सुनीता ने यह बात अपने पति रामलाल को बताई तभी रामलाल ने सुनीता से कहा की हम अपनी बेटी के सपने को बिख़रने नहीं दे सकते, रामलाल और सुनीता रिया के कमरे में गए और उससे कहा की उसे अपने सपनों की कुबार्नी देने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम मुम्बई ज़रूर जाओगी, रामलाल की इस बात को सुन कर रिया एकदम से रो पड़ी।


रामलाल ने अपने कुछ रिश्तेदारों से 70,000 हज़ार रुपये उधार लिए और रिया को दे दिए, वो अब मुम्बई चली गई पर रिया का सफर इतना आसान नहीं था वो मुम्बई पहुँच तो गई थी पर उसका वहाँ रहने का कोई भी ठौर-ठिकाना नहीं था मुम्बई में उसके खुद के लिए एक घर ढू़ंढना जैसे भगवान ढूंढने के बराबर हो गया था, तब बहुत ही ढूंढने और कोशिशें करने के बाद उसे एक बहुत ही अंधेरा और छोटा-सा कमरा मिला रहने के लिए पर उस वक्त रिया के लिए वही काफी था।


रिया ने बचपन से ही पैसों की बहुत ज़्यादा कमी देखी है इसलिए वो मुम्बई में बहुत ही मुश्किल से और पैसे बचाकर रहती थी, एक दिन अगर खाकर सोती तो अगले दिन भूखे ही सो जाती, लेकिन रिया ने अब अपनी मंज़िल को पाने की ठान ली थी इसलिए वो अपने हर अच्छे और बुरे हालातों का सामना करने के लिए तैयार रहती थी, क्योंकि उसे पता था कि एक वही है जो अपने माँ-बाप को एक अच्छी ज़िन्दगी दे सकती है।
वहीं दूसरी तरफ रामलाल के रिश्तेदारों ने रामलाल को पैसे वापस करने के लिए तंग करना शुरू कर दिया और बहुत बातें भी सुनाने लगें, रामलाल और उसकी पत्नी सुनीता दोनों ही मिलकर उनके उधार के पैसे चुकाने के लिए दिन-रात परिश्रम करने लगें रामलाल, सुनीता और रिया तीनों की ही ज़िन्दगी में मुश्किलों का अंत ही नहीं हो रहा था।


फिर धीरे-धीरे समय बितते गया रिया अब अपने मंज़िल के बहुत ही करीब थी उसके आख़िरी पड़ाव में कुल 4,000 उम्मीदवार थे जिन्हें पिछे छोड़ कर 13 उम्मीदवारों का चुनाव हुआ जीनमें हमारी बेबाक रिया का नाम भी शामिल था वो अब एक विमान परिचारिका (एयर होस्टेस) बन चुकी थी, उसका अब अपने सपने को उड़ान भरने का वक्त आ गया था वो खुशी से झूम उठी थी उसने अपने सपने को हकिकत में बदल कर दिखा ही दिया।


रिया अब अपने माँ-बाप के पास राजस्थान जा रही थी, वहाँ जाते ही उसने अपने माँ-बाप को अपनी इस सफलता के बारे में बताया रामलाल और सुनीता की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं था पूरा परिवार अब बहुत खुश था, उनकी सारी मेहनत सफल हुई, कुछ ही वक्त बाद रिया ने अपने माँ-बाप को एक अच्छा-सा घर खरीद कर दिया और एक शानदार ज़िन्दगी दी।
अब वही चार लोग जो रिया और उसके परिवार का मनोबल गिराने की और हर वक्त बेईज़ति करने की कोशिश करते थे आज वही लोग रिया और उसके माता-पिता से दो बातें करने के लिए भी तरसते हैं।
इस कहानी से हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है की चाहे हमारी कैसी भी परिस्थिति हो, हमें कितना भी संघर्ष करना पड़े और कितनी भी लोगों की बातें और ताने सुननी पड़े हमें अपनी हिम्मत कभी भी नहीं हारनी चाहिए हमारा आत्मविश्वास ही हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचाता है।


आपको अपनी ज़िंदगी में क्या करना है और क्या नहीं इसका फैसला करने का हक़ सिर्फ आपको होना चाहिये लोगों को नहीं।
हमारे सपनों को पूरा करने में एक बहुत बड़ा सहयोग हमारे माता-पिता का भी होता है क्योंकि उनके साथ कि वजह से हमें बहुत हिम्मत मिलती है और हम सभी अपनी मंज़िल को पा पाते हैं जैसे रिया ने अपने माता-पिता के सहयोग से अपनी मंज़िल को पाया, अगर रामलाल ने लोगों की बातों पर ध्यान दे कर रिया को आगे बढ़ने न दिया होता तो शायद रिया आज अपनी उड़ान न भर रही होती।
इसलिए अगर मेरी इस कहानी को एक माँ-बाप पढ़ रहे हैं तो उनसे मेरी बस यही निवेदन है की वो अपने बच्चों को उनके सपने को पूरा करने में उनका साथ दे, आपका साथ ही आपके बच्चों को उनकी सफलता की ओर ले जा सकता है।


अगर मेरी इस कहानी को पढ़ कर पाँच लोगों का भी प्रोत्साहन और मनोबल बढ़ता है तो मेरा इस कहानी को लिखना सफल हो जाएगा।

-Shonaya Sahay

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