होली त्यौहार मनाने का वैज्ञानिक महत्व

Scientific importance of celebrating Holi festival
Scientific importance of celebrating Holi festival
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमारे पूर्वजों ने होली का त्यौहार बहुत ही उचित समय पर मनाना शुरू किया था, हमें अपने पूर्वजों का आभारी होना चाहिए। इसलिए होली के त्योहार की मस्ती के साथ-साथ वैज्ञानिक कारणों के बारे में भी जानना जरूरी है और अनजान नहीं बने रहना चाहिए।       

प्रोफ0 भरत राज सिंह
महानिदेशक, स्कूल आफ मैनेजमेन्ट साइंसेस, 
व अध्यक्ष, वैदिक विज्ञान केन्द्र, लखनऊ-226501
मोबाइलः 9415025825
ई-मेलः brsinghlko@yahoo.com

प्रोफ0 भरत राज सिंह महानिदेशक, स्कूल आफ मैनेजमेन्ट साइंसेस,  व अध्यक्ष, वैदिक विज्ञान केन्द्र, लखनऊ-226501 मोबाइलः 9415025825 ई-मेलः brsinghlko@yahoo.com

होली के त्यौहार का महत्त्व 
यह त्यौहार साल में ऐसे समय पर आता है, जब मौसम में बदलाव के कारण लोगो में नींद और आलसीपन अधिक पाया जाता है । इसका मुख्य कारण ठंडे मौसम से गर्म मौसम का रुख अख्तियार होना है, जिसके कारण शरीर में कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । क्योकि शरीर के खून में नसों के ढीलापन आने से खून का प्रवाह हल्का पड़ जाता है और शरीर में सुस्ती आ जाती है और इसको दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में लोगो को न केवल जोर से गाने, बल्कि बोलने से भी थोड़ा जोर पड़ता है और सुस्ती दूर हो जाती है । इस मौसम में संगीत को भी बेहद तेज बजाया जाता है, जिससे भी मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान होती हैं । इसके अतिरिक्त शुद्ध रूप में पलास आदि से तैयार किये गये रंग और अबीर, जब शरीर पर डाला जाता है तो उसका शारीर पर अनोखा व अच्छा प्रभाव होता है।
 
इस होली त्यौहार में, जब शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालते है तो शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और त्वचा के छिद्रों (पोरों) में समा जाते हैं और शरीर के आभा मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुदंरता में निखार लाते हैं। 

होली का त्योहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है जो होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा हुआ है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 65-75 डिग्री सेंटीग्रैड (150-170 डिग्री फारेनहाइट) तक तापमान बढ़ता है। परम्पपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को भी कीड़े-मकोड़े व बैक्टीरिया रहित कर स्वच्छता प्रदान करता है।

कही कही  होलिका दहन के बाद उन क्षेत्र के लोग, होलिका की बुझी आग अर्थात् राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं। दक्षिण भारत में होली, अच्छे स्वास्थ्य के प्रोत्साहन के लिए मनाई जाती है |
होली के मौके पर लोग अपने घरों की भी साफ-सफाई करने से धूल गर्द, मच्छरों और अन्य कीटाणुओं का सफाया हो जाता है। एक साफ-सुथरा घर आमतौर पर उसमें रहने वालों को सुखद अहसास देने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा भी प्रवाहित करता है।

सावधानी- 
•    कभी-कभी किसी रंग विशेष के केमिकल के असर से लोगो के शरीर पर कई बीमारियों को जन्म होता है और जिसका इलाज उस रंग विशेष को बेअसर करके ही किया जा सकता है ।अतः बाजारू रंग का उपयोग नहीं करना चाहिए |
•    रंग खेलते के पूर्व व बाद में, उबटन का प्रयोग करना आवश्यक है, जो हमारी परम्परा से चला आ रहा है | इससे रंग के विषाक्त केमिकल का असर शुन्य हो जाता है और रंग भी नहाते समय आसानी से छूट जाता है | 
•    उबटन के प्रयोग से कीड़े-मकोड़े व बैक्टीरिया का भी असर समाप्त हो जाता है |
•    पेन्ट आदि का उपयोग कतई नहीं करना चाहिए अन्यथा त्वचा के पोरो या छिद्र बंद होने से कई बीमारियों का सामना करना पड सकता है |

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