बंधक होकर सपाई कर रहे थे मीटिंग ,पुलिस ने बाईज्जत घर भिजवा दिया
दांव-पेंच व दाम, सज गई प्रमुख कुर्सी की दुकान
- लोकतंत्र के लिये खतरनाक है ऐसी कलंक कथा
- सपाई बोले बैठक थी, सत्ताधारी बोले बंधक थे, पुलिस बोली सभी को मुक्त कराया
(पंकज मिश्रा)
गोण्डा । क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) की ये दशा पहले कभी नही देखी होगी,हां ये नही कह सकते कभी हुई न होगी। ब्लाक प्रमुख चुनाव तक इन सदस्यों की धड़पकड़ ऐसे ही होती रही है। सपा सरकार में , प्रमुखी के दावेदार नेताजी इनको घुमाने गोवा पकड़ ले जाते थे। चुनाव वाले दिन लाते थे। फिलहाल ये मामला भी इसी प्रमुख पद के चुनाव से जुड़ा है। इन चुनावों में बोली लगती है, डेढ़ लाख-दो लाख, इससे पहले जीतते ही कई डिब्बा मिठाई खा चुके हैं ये लोग जो आज पुलिस की.... । ये कोई नया नही है। ये परंपरा बन चुकी है। फिलहाल जनता ने चुना है,ऐसी पुलिसिया बर्बरता सही नही है। लेकिन कहते हैं न कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय। अब काटो, आगे आने वाले लोग भी काटेंगे।क्योंकि बदलाव और बदला दोनों संभव होता है।बताते हैं कि सपा के दिग्गज नेता के विद्यालय में इन सभी की बैठक चल रही थी। तभी सत्ता से जुड़े कुछ नेताओं को इसकी भनक लग गई।ये चुनावी तैयारी ना-गवार गुजरी। फिर क्या सेंक दी पुलिस में। पुलिस आई,बस से इन सभी को लाद नगर कोतवाली गोंडा ले आई। फिर आगे का नजारा देख ही रहें हैं। पुलिस शायद ये भूल गई है कि वह किसी सत्ता की गुलाम नही, जनता की है है। ये जो चुन के आए है जनता के प्रतिनिधि हैं। पुलिस का रुख सत्ता के मौसम के हिसाब चलता है,ये जग जाहिर है।खैर चुनाव में ऐसी खरीद फरोख्त होती रहेगी जबतक जनता से सीधे चुनाव प्रमुख के नही होंगे। यही हाल जिला पंचायत अध्यक्ष का है। चुनाव आयोग को ऐसा नही है कि इन सभी मामलों की जानकारी न हो। देर सवेर बदलाव का निर्णय लेना ही पड़ेगा।
बीजेपी: सत्ताधारी के नेताओं की माने तो ये सभी बीडीसी बंधक थे।
सपा : विपक्ष कहती है कि चुनाव को लेकर पार्टी की बैठक चल रही थी। पुलिस ने आकर तांडव मचाना शुरू कर दिया।
पुलिस: 25 बीडीसी रुपईडीह के बंधक थे,जिन्हें मुक्त कराकर, बा-इज्जत सभी को घर भिजवा दिया गया है।