मैत्री आश्रम में ढाई दिवसीय चौदहवें नंदिनी लोकमित्र शिविर की हुई पूर्णता 

Two and a half day fourteenth Nandini Lokmitra Camp completed at Maitri Ashram
मैत्री आश्रम में ढाई दिवसीय चौदहवें नंदिनी लोकमित्र शिविर की हुई पूर्णता 
 असम।  राष्ट्रों की सीमा लुप्त हो जायेगी, ह्रदय के द्वार खुल जायेंगें और धरती मानवजाति की एकता के अध्यात्मिक विचारों पर टिकेगी। आचार्य विनोबा    उक्त विचार पूज्य आचार्य विनोबा भावे की भूदान यात्रा के समय पर 62 वर्ष पहले 05 मार्च 1962 को उत्तर लखीमपुर से ग्यारह किलोमीटर दूरी पर उज्ज्वलपुर(लीलाबाडी) गांव में स्थित कस्तूरबा कल्याण केन्द्र ( अगस्त 15  वर्ष 1950 को हुए एक बड़े भूकंप की वजह से हिमालय से निकली एक नदी ने भयानक रूप धारण कर लिया  और कुछ महिलाओं को विधवा तथा अनेक बच्चों को अनाथ बना दिया।

मैत्री आश्रम का 63 वा स्थापना दिवस समारोह सम्पन्न 

इन सभी पीड़ितों को इस कस्तूरबा कल्याण केंद्र (देश में कस्तूरबा गांधी स्मारक ट्रस्ट जिसका मुख्यालय इंदौर में है उसके केंद्र देश भर में सेवा कार्य में लगे हुए हैं उन्हीं में से नार्थ ईस्ट राज्यों की सेवा का केंद्र शरणिया आश्रम गोहाटी शहर में है जिसकी पूर्वित्तर राज्यों में 19 केंद्र अभी संचालित है उन्हीं में से वह केंद्र था जिसमें सभी को आश्रय मिला था ) वहीं केंद्र में   आयोजित वृहत स्वागत सभा में उक्त विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि यह आश्रम मैत्री आश्रम के रूप में जाना जाएगा यह केंद्र बारह साल से सेवा करने के बाद उस समय जब पीड़ितों के लिए राहत कार्य समाप्ति पर था तब केंद्र के स्थान पर मैत्री आश्रम की स्थापना हुई।

 भूटान ,तिब्बत,म्यांमार,बांग्लादेश, और चीन इन प्रदेशों से आच्छादित उत्तर भारत के इस इलाके को करीब 50 से 60 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा है। सर्वोदय,गांधी,विनोबा के विचार को इस विस्तार क्षेत्र में मजबूत बनाने की इच्छा का ही फल है यह मैत्री आश्रम। जिसका आज 63 वा स्थापना दिवस संपूर्ण देश के ही नहीं बल्कि कई देश से आए हुए साथियों के साथ मनाया जा रहा है। संपूर्ण देश के अनेक राज्यों के लोग इसलिए इस बार शरीक होंगे क्योंकि कल ही मैत्री आश्रम में ढाई दिवसीय चौदहवें नंदिनी लोकमित्र शिविर की पूर्णता हुई।  असम की पदयात्रा के दौरान विनोबाजी को ऐसा भास हुआ कि मैत्री आश्रम यहां स्थापित होना यह भगवान की ही इच्छा है। उनको यह भी लगा कि महापुरुष शंकरदेव और माधवदेव द्वारा किए गए विश्व मैत्री के संदेश को फैलाने का भी यही उचित समय है।

इसीलिए ऋषि विनोबा बाबा के मुख से निकले उदगार इस पुण्य भूमि पर निम्नवत हैं।  राष्ट्रों की सीमा लुप्त हो जायेगी,ह्रदय के द्वार खुल जायेंगें और धरती।मानवजाति की एकता के आध्यात्मिक विचारों पर टिकेगी।  पूज्य ऋषि विनोबाजी  आश्रमवासियों में इन प्रेरणात्मक विचारों का  सिंचन कर के आगे चल पड़े। उन्होंने सामान्य लोगों की भावनात्मक एकता ,नारी का विकास और विश्वमैत्री निर्माण करने की शक्ति दी। जिसे अमलप्रभा दास बाइदेव जो बाबा की यात्रा की संयोजक थीं।  उनके सहयोग से गुणदा बाइदेव और लक्ष्मी फूकन बाईदेव(विनोबा जी से प्रेरित होकर 25 अक्तूबर 1967 को चार महिलाओं ने विश्व मैत्री ,नारी शक्ति की जागृति,और ब्रह्मविद्या का प्रचार प्रसार करने के लिए लोक मैत्री पदयात्रा का आयोजन किया।गया था।जिसमें जिन।चार महिलाओं ने यात्रा की थी निर्मल वेद, देवी बहन, लक्ष्मी फुकन और हेमा भराली थी ) ने काम को खूब। बढ़ाया।

अभी मैत्री आश्रम को चंपा बाईदेव, जयंती बाइदेव, रानू बाइदेव, कुंज बाईदेव, मीनाक्षी बाइदेव   अपराजिता बाईदेव,अंजली बाइदेव, का  श्रम,सानिध्य, समर्पण मिल रहा है।   लीलबाड़ी हवाई अड्डे से अत्यंत नजदीक सेनादल के पड़ाव के पास बसे इस मैत्री आश्रम का  सिर्फ एक ध्येय है मैत्री  सिर्फ एक कार्यक्रम मैत्री सिर्फ एक ही नियम मैत्री  विनोबा भावे।

आश्रम ने नेफा अरुणाचल प्रदेश के साथ मैत्री संबंध बनाए।जब चीन ने।अरुणाचल प्रदेश को माध्यम बनाते हुए भारत पर हमला किया तब अरुणाचल से शांति और मैत्री फैलाने की दृष्टि से।आए हुए मित्रों ने मैत्री आश्रम को अपना निवास स्थान बनाया।जापान के ,बौद्ध मुनि फूजी गुरु जी ने भी आश्रम में आकर शांति प्रार्थना की। इसी प्रकार दिल्ली बीजिंग शांति पदयात्रा के स्वयंसेवक जब चीन जाने के लिए तीन महीने बीजा मिलने में प्रतीक्षा करनी पड़ी तो सभी ने यहीं केंद्र बनाया। इस यात्रा में दुनिया के अनेक देशों के शांति सैनिक आए थे। जयप्रकाश नारायण जी ने भी जब नागालैंड शांति मिशन पर काम शुरू किया तो आश्रम का विशेष सहयोग रहा।

 मैत्री आश्रम द्वारा जमीन बंधक जो की गई उसे छुड़वाने, और जमीनहीन को जमीन दिलाने का कार्य तो हुआ ही। लेकिन अध्ययन का अदभुत काम भी यहां पर हुआ। यहां भावनात्मक एकता की।दृष्टि से विविध भाषाएं सिखाई जाती हैं। आश्रम का संबंध सभी नामघरों से है। यहां आध्यात्मिक साहित्य का हिंदी और मराठी अनुवाद भी हुआ है। मराठी ज्ञानेश्वरी जैसी कठिन ग्रंथ को भी रूपांतर किया गया है। यहां का प्रसिद्ध ग्रंथ    नामघोषा सार जिसका बाबा ने बहुत आदर किया है। उसका भी आसामी और देवनागरी में भाषांतर किया गया है।महादेव की कथा गीता का भी देवनागरी में प्रकाशन हुआ।

मैत्री आश्रम के रहवासी अन्न सब्जी फल और वस्त्र में आत्म निर्भरता लाने के लिए आध्यात्मिक साधना के।साथ प्रयासरत रहते हैं।  यहां खेती गौशाला सफाई बुनाई कताई प्रार्थना ध्यान अध्ययन जैसे कार्य चित्तशुद्धि के लिए किए जाते हैं।              बाबा विनोबा ने 62 वर्ष पहले 1962 में आज ही के पुन्यदिन पर सर्वत्र सख्य की कामना और भावना से जो छोटा सा पौधा रोपित कर बाबा आगे बढ़े थे, आज उसी की छाया में शांति प्रेम करुणा का फैलाव के लिए यह जीवन दानी बहनें समर्पित हैं।

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