बोन मैरो ट्रांसप्लांट क्या होता है, इससे कौन सी बीमारियां ठीक होती है, जानें इसके बारे में सबकुछ

What is bone marrow transplant, which diseases are cured by it, know everything about it.
बोन मैरो ट्रांसप्लांट क्या होता है, इससे कौन सी बीमारियां ठीक होती है, जानें इसके बारे में सबकुछ
लखनऊ : बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के जरिए खून से जुड़ी समस्याओं और अन्य जेनेटिक बीमारियों को ठीक किया जा सकता है. बीएमटी की प्रक्रिया में खराब बोन मैरो को सही बोन मैरो से बदल दिया जाता है. ट्रांसप्लांटेशन में बीमार व्यक्ति के खराब हिस्से को हटाकर डोनर का नॉर्मल पार्ट लगा दिया जाता है. जब किसी अंग का ट्रांसप्लांटेशन करना होता है तो प्रभावित अंग को निकाल दिया जाता है और उसकी जगह स्वस्थ लगा दिया जाता है. डॉ पवन कुमार सिंह, निदेशक - सेंटर फॉर बोन मैरो ट्रांसप्लांट ,बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, दिल्ली ने बताया की बोन मैरो लंबी और फ्लैट हड्डियों का इंटरनल हिस्सा होता है जहां रक्त कोशिकाएं बनती हैं. इस प्रक्रिया में पहले मरीज की मैरो कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी (टीबीआई-टोटल बॉडी इरैडिकेशन) के जरिए नष्ट की जाती है और फिर डोनर के स्टेम सेल्स (पूर्णतया मैच या पार्शियली मैच) को लगा दिया जाता है, ये ठीक खून की सप्लाई की तरह होता है.

बीएमटी के जरिए किन बीमारियों का इलाज किया जा सकता है


1- ब्लड कैंसर
2-रक्त कोशिकाओं की जेनेटिक डिजीज
3-मेटाबॉलिज्म की समस्याएं जैसे स्टोरेज डिसऑर्डर, ल्यूकोडिस्ट्रॉफी
4- ऑटो इम्यून डिजीज

बीएमटी के प्रकार


1- ऑटोलोगस: इस प्रक्रिया में स्टेम सेल मरीज के अपने शरीर से ही लिए जाते हैं. ऑटोलोगस बीएमटी में दो सिद्धांतों पर काम किया जाता है.
हाई डोज थेरेपी: मायलोमा और रिलैप्स लिम्फोमा जैसी बीमारियों में एएससीटी का सिद्धांत हाई डोज कीमोथेरेपी है जिसमें स्टेम सेल बचाए जाते हैं. इस तरह के मामलों में मरीजों को कीमोथेरेपी की हाई डोज दी जाती है ताकि लंबे समय तक बीमारी को कंट्रोल किया जा सके.
इम्यून सिस्टम की रि-सेटिंग: इसमें मरीजों के इम्यून सिस्टम का खास ध्यान रखा जाता है. उन्हें कीमोथेरेपी या इम्यूनोथेरेपी के जरिए स्ट्रॉन्ग इम्यून सिस्टम प्रोवाइड कराया जाता है. ऐसा करने से नए लिम्फोसाइट्स का गठन होता है जो ऑटो-रिएक्टिव नहीं होते हैं यानी अपने खुद के सेल्स नष्ट नहीं करते हैं. इम्यून सिस्टम रि-सेटिंग की प्रक्रिया का इस्तेमाल मल्टीपल स्क्लेरोसिस, सिस्टेमिक  स्क्लेरोसिस, डर्मटोमायोसिटिस, एसएलई और अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों का इलाज किया जाता है.

2-एलोजेनिक: बोन मैरो ट्रांसप्लांट की इस प्रक्रिया में मरीज के खराब बोन मैरो को डोनर के स्वस्थ बोन मैरो से रिप्लेस किया जाता है. एलोजेनिक बीएमटी में दो तरह के सिद्धांत पर काम किया जाता है.
ग्राफ्ट वर्सेज ल्यूकेमिया इफेक्ट: जब घातक कैंसर सेल्स को पहचानने में इम्यून सिस्टम फेल हो जाता है तो व्यक्ति के शरीर में कैंसर विकसित होने लगता है. एलोजेनिक बीएमटी प्रक्रिया में मरीज के हेमाटोपोईएटिक सिस्टम को डोनर के सिस्टम से बदल दिया जाता है और इस तरह मरीज को नया इम्यून सिस्टम प्राप्त हो जाता है. इस तरह मरीज को मिला ये नया इम्यून सिस्टम विकसित हो रही कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ लड़ता है और ये प्रक्रिया जीवीएल इफेक्ट (ग्राफ्ट वर्सेज ल्यूकेमिया/मैलिग्नैंसी) कहलाती है जो जीवनभर मरीज के अंदर कैंसर कोशिकाओं से लड़ता है. हालांकि, इसमें जीवीएचडी (ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिजीज) के विकसित होने का रिस्क भी रहता है. ऐसे में जीवीएचडी को भी तत्काल कंट्रोल करने की आवश्यकता रहती है और कई मामलों में इस पर अच्छे कंट्रोल किया जा सकता है और इसका इलाज किया जा सकता है.
डिफेक्टिव सिस्टम का रिप्लेसमेंट: इसमें डिफेक्टिव मैरो को ठीक किया जाता है जो एक्वायर्ड या जेनेटिक दोनों हो सकते हैं. एक्वायर्ड डिजीज में एप्लास्टिक एनेमिया, पैरोक्सीस्माल नॉक्टेर्नल हीमोग्लोबिन्यूरिया (पीएनएच) होती हैं.  जबकि जेनेटिक डिजीज में डिफेक्टिव रेड सेल्स डिसऑर्डर (थैलेसीमिया, सिकल सेल डिजीज), प्लेटलेट डिसऑर्डर, प्राइमरी इम्युनोडेफिशिएंसी डिजीज या मेटाबोलिज्म की जन्मजात परेशानियां (एंजाइम डिफेक्ट) होते हैं. हालांकि, ये इस पूरी प्रक्रिया में जीवीएचडी का खतरा रहता है और इस तरह के डिसऑर्डर में जीवीएचडी अफॉर्ड नहीं किया जा सकता है.

कौन हो सकता है डोनर?

एचएलए मैच फैमिली डोनर: एलोजेनिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट में एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन्स) जरूरी होता है. एक तिहाई परिवारजनों में एचएलए डोनर के फुल मैच होने की संभावना रहती है जबकि परिवार के अन्य सदस्यों के फुल मैच के 1 परसेंट चांस रहते हैं. 
एचएलए मिसमैच फैमिली डोनर: पिछले दो दशकों में इसमें काफी तरक्की हुई है और हैप्लो-आइडेंटिकल (हाफ मैच, 5/10) बीएमटी में अब अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं. मनुष्य के अंदर आधे से ज्यादा जीन्स उनके पैरेंट्स से आते हैं, ऐसे में सगे परिवारजनों में से कोई भी डोनर हो सकता है. अब इस प्रक्रिया में उन मरीजों को और सुविधा मिली है जिन्हें फुल मैच डोनर नहीं मिल पाते.
एमयूडी बीएमटी (मैच अनरिलेटेड डोनर): इसमें वो डोनर होते हैं जिन्होंने स्वेच्छा से अपनी मौत के बाद या किसी अन्य कारण से अपने अंग डोनेट करने के लिए रजिस्टर कराया हुआ होता है. जो डोनर 9/10, 10/10 मैच वाले मिल जाते हैं उनका इस्तेमाल कर लिया जाता है.

कैसे होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन?
बीएमटी के लिए पहले मरीज और डोनर दोनों की फिटनेस देखी जाती है. इसके बाद मरीज के कुछ ट्रीटमेंट स्टार्ट किए जाते हैं जैसे कीमोथेरेपी, टोटल बॉडी इरैडिकेशन, इम्यूनोथेरेपी. इसके बाद पहले दिन डोनर से लिए स्टेम सेल्स भरे जाते हैं. इसके 10-18 दिनों में डोनर के

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