युवाओं को आजादी के बलिदानियों से समाज, देश सेवा की सीख लेने की जरूरत है: राजीव जोली खोसला

Rajiv jolly khosla
 ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

नई दिल्ली। वीर बलिदानी शहीद खुदीराम बोस का श्रद्धांजलि समारोह राष्ट्रीय सैनिक संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल तेजेंद पाल त्यागी के नेतृत्व में आयोजन किया गया गया। खुदीराम बोस की महानता के बारे में संस्था के दिल्ली एनसीआर के अध्यक्ष राजीव खोसला ने बताया कि 11 अगस्त, 1908 को सुबह 6 बजे भारत की आज़ादी के इतिहास में पहली बार एक किशोर को फांसी दी गई.

उस समय उनके हाथ में गीता की एक प्रति थी। जेल के बाहर उन्हें विदाई देने के लिए एक बड़ी भीड़ वन्दे मातरम का नारा लगा रही थी। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने खुदीराम बोस की शहादत पर कई लेख लिखे। पुणे से प्रकाशित मराठा के 10 मई, 1908 के अंक में उन्होंने लिखा, गुरु तेग़ बहादुर की तरह बोस ने जान दी लेकिन नहीं झुके।

पूरे देश में खुदीराम बोस के चित्र बांटे गए। अपने एक व्याख्यान में साहित्यकार बालकृष्ण भट्ट को खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि देने के आरोप में अध्यापक की अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। बंगाल के दस्तकारों ने एक ख़ास धोती बुननी शुरू कर दी जिसके किनारी पर उनका चित्र लगा होता था। गीत की आख़िरी पंक्तियों में लिखा है- दश माश दश दिन पोरे, जन्मो नेबो माशीर घरे मा गो, तॉखोन जोदी ना चीनते पारिश, देखबी गोलाए फांशी (ओ मां, आज से 10 महीने 10 दिन के बाद मैं मौसी के घर फिर जन्म लेकर लौटूंगा, अगर मुझे न पहचान पाओ तो मेरे गले में फांसी से फंदे का निशान देखना।

मुख्य अतिथि ज्योतिषाचार्य पूज्य पवन सिन्हा ने कहा, युवाओं को आजादी के बलिदानियों से समाज देश सेवा की सीख लेने की जरूरत है।

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